लखनऊ: (मानवी मीडिया)उत्तर प्रदेश के अपर मुख्य सचिव, चीनी उद्योग एवं गन्ना विकास संजय आर. भूसरेड्डी द्वारा गन्ना कृषक स्नातकोत्तर महाविद्यालय पूरनपुर पीलीभीत के 28वें स्थापना दिवस के अवसर पर "भारत में गन्ने की प्राकृति खेती विश्लेषण, विकास संभावनायें एवं चुनौतियां विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी में ऑनलाईन प्रतिभाग किया गया। उद्घाटन सत्र के प्रथम दिवस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि भूसरेड्डी ने गन्ने की प्राकृतिक खेती विषय पर ऑनलाईन सम्बोधन में अपने विचार रखे।
भूसरेड्डी ने अपने उद्बोधन में कहा कि प्राकृतिक खेती ने उन संसाधनों का प्रयोग होता है जिन्हें बाजार से खरीदने की आवश्यकता नहीं रहती तथा जिनके प्रयोग से मृदा में सूक्ष्म जावाणुओं की संख्या में उत्तरोत्तर वृद्धि होती रहती है। इससे एक ओर खेती की लागत कम हो जाती है तो दूसरी ओर मृदा का जीयांश स्तर एवं सूक्ष्म जीवाणुओं की संख्या खेत में हर वर्ष बढ़ती रहती है।
उन्होंने यह भी कहा कि आज हमने वैज्ञानिक कृषि तकनीकों के प्रयोग से खाद्यान्न की आत्मनिर्भरता तो प्राप्त कर ली, किन्तु उसके बदले में मिट्टी का जीवांश 1 प्रतिशत से घटकर 0.5 तक रह गया है। सांस लेने वाली प्राणवायु लगातार जहरीली होती जा रही है। भूजल का स्तर खतरनाक ढंग से घटता जा रहा है। रासायनिक उर्वरकों एवं कीटनाशकों के अन्धाधुन्ध प्रयोग से मानव स्वास्थ्य लगातार क्षरित होता जा रहा है। इन सभी ज्वलंत समस्याओं का सर्वोत्तम स्थाई समाधान है, प्राकृतिक खेती उन्होंने कहा कि यह प्रकृति का नियम है कि हम जो भी उत्पादन भूमि से ले रहे हैं उसके बदले भूमि को पर्याप्त पोषण देना ही होगा, जिसके लिये देशी गाय के गोबर व गौमूत्र से निर्मित खाद तथा जैव उर्वरकों का प्रयोग बढ़ाना होगा। रासायनिक कीटनाशकों के प्रयोग से खेती में लागत बढ़ने के साथ ही मृदा एवं पर्यावरण के स्वास्थ्य को भी क्षति हो रही है। अतः हमें गन्ने में कीट रोगों के नियंत्रण हेतु जैविक उपायों को बढ़ाना होगा। चूंकि एक आम उपभोक्ता जो अपनी जीविका हेतु परिवार सहित किसानों के उत्पादित अनाजों पर निर्भर है। उसे शुद्ध एवं विषमुक्त खाद्यान्न उपलब्ध कराना हमारी जिम्मेदारी है। प्राकृतिक खेती पूर्व रूपेण पर्यावरण हितैषी है, जो देशी गाय, देशी बीजों तथा मृदा जीवांश एवं जल संरक्षण में महती भूमिका निभाती है।
अपर मुख्य सचिव ने विभाग द्वारा कृषक हित में किये जा रहे प्रयासों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि पंचामृत योजना को अपनाकर महिला स्वयं सहायता समूहों द्वारा उत्पादित ट्राइकोकार्ड एवं गन्ना बीज का प्रयोग कर हमारे किसान कम लागत में खेती से अधिक लाभ कमा सकते हैं। गन्ना शोध परिषद द्वारा उपलब्ध ट्राइकोडर्मा का प्रयोग कर रोगों का सस्ता एवं प्राकृतिक नियंत्रण किया जा सकता है।
इसके अतिरिक्त उन्होंने कहा कि बढ़ते रसायनों के प्रयोग के कारण हमारी फसलों के उत्पाद अन्तराष्ट्रीय बाजार में प्रतिस्पर्धा नहीं कर पाते तथा अधोमानक होने के कारण उन्हें वापस कर दिया जाता है। रसायनों के अधिक प्रयोग से उपभोक्ताओं का स्वास्थ्य तो प्रभावित होता ही है वरन् खाद्य श्रंखला एवं पर्यावरण भी प्रभावित होता है अतः यह समय की मांग है कि हमारे किसानों को प्राकृतिक खेती अपनाने की ओर अग्रसर होना होगा। कार्यक्रम के अंत में उन्होंने मंचाशीन शिक्षाविदों एवं गन्ना विभाग के अधिकारियों, किसानों एवं विद्यार्थियों तथा आयोजक मण्डल को 28वें स्थापना दिवस की बधाई दी एवं राष्ट्रीय संगोष्ठी के आयोजन हेतु धन्यवाद ज्ञापित किया।