लखनऊ, (मानवी मीडिया) इंटरनेशनल यूनियन अंगेस्ट टीबी एंड लंग डिजीजेस (यूनियन) संस्था के तत्वावधान में ड्रग रेजिस्टेन्ट (डीआर) टीबी के उपचार को और गुणवत्तापूर्ण बनाने पर आयोजित दो दिवसीय प्रशिक्षण कार्यशाला का शुक्रवार को समापन हो गया।
समापन मौके पर केजीएमयू के रेस्पिरेटरी मेडिसिन विभाग के अध्यक्ष तथा उप्र क्षय उन्मूलन की स्टेट टास्क फोर्स के चेयरमैन डा. सूर्यकान्त ने कहा कि प्रधानमंत्री के वर्ष 2025 तक देश को टीबी मुक्त बनाने के संकल्प को साकार करने में अहम भूमिका निभाने को केजीएमयू पूरी तरह तैयार है। सेन्टर ऑफ एक्सीलेंस बनने के साथ ही केजीएमयू प्रदेश के सभी मेडिकल कालेजों और डीआर टीबी सेंटर की व्यवस्था को और चुस्त दुरुस्त बनाने में सहयोग को तत्पर है। इसके साथ ही स्क्रीनिंग, जाँच और उपचार से जुड़े स्वास्थ्य कर्मियों को प्रशिक्षित करने का भी काम किया जायेगा। प्रदेश के हर जिले में एक डीआर टीबी सेंटर बनाने पर भी स्वास्थ्य विभाग के साथ गंभीरता से विचार चल रहा है, अभी प्रदेश के 56 जिलों में डीआर टीबी सेंटर हैं। इसके अलावा 24 नोडल डीआर टीबी सेंटर मरीजों को बेहतर इलाज में हरसम्भव मदद कर रहे हैं।
डॉ. सूर्यकान्त ने टीबी से जुड़े सामाजिक, लैंगिक और आर्थिक समस्याओं पर भी प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि परिवार की यदि कोई महिला टीबी की चपेट में आती है तो उसके साथ किसी भी प्रकार का भेदभाव किसी स्तर पर नहीं होना चाहिए क्योंकि टीबी का इलाज पूरी तरह से संभव है। उसके साथ वैसा ही व्यवहार और मदद होनी चाहिए जिस प्रकार किसी पुरुष या बच्चे को टीबी होने पर होती है। टीबी ग्रसित बच्चों के साथ भी स्कूल या खेल के मैदान में किसी प्रकार का भेदभाव न होने पाए। उन्होंने कहा कि क्षय उन्मूलन अब एक जनांदोलन बन चुका है क्योंकि इससे प्रधान से लेकर प्रधानमंत्री तक जुड़ चुके हैं। टीबी की जाँच, उपचार के साथ इलाज के दौरान 500 रुपये भी निक्षय पोषण योजना के तहत सीधे बैंक खाते में भेजे जा रहे हैं।
डॉ. सूर्यकान्त ने कहा कि अब इस पर विशेष ध्यान देना है कि अपने गाँव, मोहल्ले, कस्बे, वार्ड को टीबी मुक्त बनाते हुए जिले को टीबी मुक्त बनाया जाए। उन्होंने कहा कि जम्मू-कश्मीर का बारामुला जिला देश का पहला ऐसा जिला है जो टीबी मुक्त हो चुका है तो दूसरे जिले क्यों नहीं हो सकते। क्षय उन्मूलन के लिए देश को छह जोन में बांटा गया है, जिसमें उत्तर प्रदेश उत्तरी जोन में आता है। उत्तरी जोन टास्क फ़ोर्स के चेयरमैन की जिम्मेदारी उन्हें सौंपी गयी है । इसके साथ ही अभी हाल ही में गांधीनगर में टीबी को लेकर हुए मंथन में यह भी तय किया गया है कि वर्ष 2015 से अब तक टीबी पर हुए रिसर्च का संकलन और अध्ययन कर क्षय उन्मूलन को लेकर नयी नीति भी तैयार की जाएगी। डा. सूर्यकान्त ने बताया कि उप्र की राज्यपाल आनन्दी बेन पटेल द्वारा टी.बी. रोगियों को गोद लेने का कार्यक्रम उप्र में पहली बार प्रारम्भ किया गया था, जो अब एक राष्ट्रीय कार्यक्रम बन चुका है।
प्रशिक्षण कार्यशाला में चिकित्सक, नर्सिंग व पैरामेडिकल स्टॉफ और शोधार्थी शामिल हुए। डा. सूर्यकान्त प्रशिक्षण कार्यशाला के समन्वयक रहे। प्रशिक्षण प्रदान करने वालों में यूनियन के साथ ही सेन्ट्रल टीबी डिवीजन एवं टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल सांइसेज के प्रशिक्षक शामिल रहे। प्रशिक्षण कार्यशाला में 40 लोगों ने प्रतिभाग किया। कार्यशाला के समापन सत्र में यूनियन से डॉ. मीरा भाटिया, डॉ. आदेश सोलंकी, डॉ. अभिमन्यु, सेन्ट्रल टीबी डिवीजन के डा. मयंक मित्तल और टाटा इंस्टीटयूट ऑफ सोशल सांइसेज के सचिन व श्वेता उपस्थित रहे। प्रशिक्षित होने के बाद यह सभी लोग उप्र के सभी मेडिकल कालेजों तथा सभी डीआर तथा नोडल डीआर टीबी सेन्टर के चिकित्सक एवं स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षित करेंगे। इन सभी को इलाज में सहयोग के साथ मरीजों के साथ उचित व्यवहार अपनाने की कला भी प्रशिक्षण के दौरान सिखाई गयी।