यूपी (मानवी मीडिया) कागजी पार्टी बनाकर धन उगाही और करोड़ों की हेराफेरी का खेल खुल गया है। कानपुर में जनराज्य पार्टी के तीनों परिसरों पर दूसरे दिन भी आयकर विभाग की छापेमारी जारी रही। अब तक की छानबीन में पार्टी के दस्तावेज बोगस मिले हैं। इस पार्टी की राजनीतिक सक्रियता शून्य है लेकिन 125 कार्यकर्ताओं पर ही पार्टी ने 11.5 करोड़ रुपये का खर्च दिखा दिया। असल में राजनीतिक दलों को चंदा देने पर आयकर में छूट मिलती है। बहुत सारे लोग पार्टियों या एनजीओ को चंदा देते हैं जिसका लाभ उनको आयकर में छूट के तौर पर मिलता है। इसमें ही आरोप लगते हैं कि कागजी पार्टियां या एनजीओ कमीशन काटकर दान या चंदे में मिला पैसा देने वाले को कैश में लौटा देते हैं।
गुरुवार को पार्टी के पूर्व मुख्य महासचिव ओमेन्द्र सिंह के बयान भी आयकर विभाग ने दर्ज किए। आयकर विभाग की टीम रविशंकर के घर गई तो वहां पता चला कि वह प्रयागराज में हैं। कानपुर में जहां छापेमारी हुई, उसका पता ओमेंद्र सिंह का निकला। इसीलिए उन्हें पूछताछ के दायरे में लिया गया। पार्टी एवं पार्टी के पदाधिकारियों के बैंक स्टेटमेंट लिए गए हैं। इसमें यह जांच की जाएगी कि किन-किन लोगों ने पार्टी फंड में और पदाधिकारियों के खातों में पैसा ट्रांसफर किया है। ऐसे सभी लोगों की जांच की जाएगी।
चुनाव आयोग द्वारा चंदा बटोरने वाली पार्टियों की लिस्ट पर आयकर विभाग का छापा जारी है। यूपी की जनराज्य पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अभिषेक कृष्णा और संस्थापक रविशंकर सिंह यादव के यहां काकादेव, किदवई नगर और केशवनगर में छापे के दौरान कई खुलासे हुए हैं। सूत्रों के मुताबिक पार्टी पूरी तरह कागजी पाई गई है। कहीं राजनीतिक भागीदारी के कोई प्रमाणपत्र नहीं मिले। किसी तरह की गतिविधि नहीं मिली। एक पोस्टर या पम्फलेट तक नहीं पाया गया।
125 कार्यकर्ताओं का ही चला पता
पार्टी का जनाधार क्या है। कितने सदस्य हैं। कितने पदाधिकारी हैं। कितने राज्यों में सक्रियता में है। कितने चुनाव में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से हिस्सेदारी की है, इसके कोई प्रमाण नहीं मिले। सूत्रों के मुताबिक बमुश्किल 125 कार्यकर्ताओं और समर्थकों के बारे में पता चला है।
मालूम हो कि अपनी ऑडिट बैलेंस शीट में पार्टी ने चार साल में मिले 11.5 करोड़ रुपये के बारे में बताया है कि इसे कार्यकर्ताओं पर खर्च किया गया है। यानी एक कार्यकर्ता पर करीब 9 लाख रुपये खर्च कर दिए गए। ये दावा जांच एजेंसियों के गले नहीं उतर रहा है।
चंदे के नाम पर ब्लैक एंड व्हाइट का खेल
चंदे की आड़ में ब्लैक एंड व्हाइट के दृष्टिकोण से भी पूरे मामले की जांच की जा रही है। यही वजह है कि बैलेंस शीट में न तो दानदाताओं का नाम है और न ही पता। आधी अधूरी बैलेंस शीट से ही जांच की दिशा बदल रही है। कुछ दानवीरों ने पार्टी को 10-10 लाख का चंदा दिया है लेकिन आईटीआर में कमाई इतनी नहीं है जिसके हिसाब से लाखों रुपये चंदा दिया जा सके।
मनी लांड्रिंग को लेकर भी हो रही जांच
छह साल पहले पार्टी के तत्कालीन अध्यक्ष अरुणेश सिंह की एफआईआर को भी आयकर विभाग जांच रहा है। इस एफआईआर में उन्होंने आरोप लगाया था कि रवि शंकर सिंह, अभिषेक कृष्णा और अन्य साथी चंदे की आड़ में कमाई का रास्ता बना रहे थे। 10 से 20 फीसदी कमीशन लेकर लोगों की काली कमाई को सफेद करने के लिए पार्टी फंड का सहारा लेने की प्रयास किया था। इसी आधार पर एफआईआर भी दर्ज कराई गई। बाद में अभिषेक कृष्णा राष्ट्रीय अध्यक्ष और रविशंकर सिंह संस्थापक पद पर काबिज हो गए। उन्हीं के कार्यकाल में अधिकांश चंदा मिला। संदेह है कि नोटबंदी के बाद अपनी काली कमाई को पिछले चार साल में सैकड़ों लोगों ने पार्टी फंड के नाम पर सफेद किया है।
ओमेंद्र सिंह के विरोध पर हुई थी कलह
आयकर अफसरों ने गुरुवार को जनराज्य पार्टी के पूर्व मुख्य महासचिव ओमेन्द्र सिंह के बयान लिए जो 2011 में पार्टी के मुख्य महासचिव थे। उस समय पुनीत नाथ शुक्ला राष्ट्रीय अध्यक्ष थे। बाद में उन्होंने पार्टी छोड़ दी थी। बताया जाता है कि चंदे के नाम पर काले-सफेद के धंधे का ओमेन्द्र सिंह ने विरोध किया था। इसी के चलते पार्टी में कलह हो गई थी। बाद में उन्होंने पार्टी से अलग होकर अलग दल बना लिया था।