ये कार्य पहले होना चाहिए था। आज का पूरा दिन आपने माननीय महिला सदस्यों को लिए आरक्षित किया है। ये सभी अपनी बात रखेंगे। लेकिन शुरुआत में एक प्रारंभिक प्रस्तावन रखने के लिए यहां खड़ा हुआ हूं। मुझे महार्षि वेदव्यास की पंक्तियां याद आती है। जो उन्होंने नारी शक्ति के लिए कहा है..नास्ति मातृसमा छाया, नास्ति मातृसमा गति:। नास्ति मातृसमं त्राणं. नास्ति मातृसमा प्रिया। यानि मां के सामना कोई छाया नहीं, मां के सामान कोई सहारा भी नहीं, मां के सामान कोई रक्षक भी नहीं और मां के सामान कोई प्रिय भी नहीं होता है। मुझे लगता है कि मातृ शक्ति के प्रति ये सम्मान हर नागरिक के मन में आ जाए तो मुझे लगता है कुछ भी असंभव नहीं है। ऐसा नहीं पहली बार हो रहा हो, आजादी के बाद इस दिशा में बहुत अच्छे प्रयास हुए, काफी प्रगति भी हुई। आज उन पर चर्चा भी होगी।
भारत के अंदर बिना भेदभाव के पहले निर्वाचन से पुरुष और महिला को अपना मत देने का अधिकार है। यही नहीं इंग्लैंड जैसे कई देशों में ये अधिकार भारत के बाद मिला। भले वहां लोकतंत्र पहले से रहा हो। ये भारत की ताकत का एहसास पूरे भारत को कराता है।