न्यायमूर्ति दिनेश कुमार सिंह की एकल पीठ ने राज्य सरकार की अपील पर यह फैसला सुनाया है। राज्य सरकार ने मुख्तार को गैंगस्टर एक्ट के मामले में निचली अदालत द्वारा बरी किये जाने के फैसले को चुनौती दी थी। इस मामले में 1999 में लखनऊ के हजरतगंज थाने में एफआईआर दर्ज कराई गई थी। लखनऊ स्थित एमपी एमएलए कोर्ट ने 23 दिसंबर 2020 को इस मामले में मुख्तार को बरी कर दिया था। इस मामले के सरकारी वकील राव नरेन्द्र सिंह ने बताया कि उच्च न्यायाल ने निचली अदालत द्वारा मुख्तार को बरी करने के फैसले को पलटते हुए, गिरोह बनाकर गंभीर अपराध करने के आरोप को सही ठहरा कर यह सजा सुनायी है। गौरतलब है कि राज्य सरकार ने मुख्तार को बरी किये जाने के निचली अदालत के फैसले को उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी।
अदालत ने अपने फैसले में निचली अदालत के फैसले में गंभीर गलती बताते हुए कहा कि कुछ अन्य मुकदमों में प्रतिवादी को बरी किये जाने के आधार पर किसी को आरोपमुक्त करना कानून सम्मत नहीं है। उल्लेखनीय है कि निचली अदालत ने महज इस आधार पर मुख्तार को निर्दोष बताया था कि उन्हें इस तरह के दूसरे मामलों में अदालत से बरी किया गया था। उच्च न्यायालय ने कहा कि अभियुक्त के विरुद्ध गैंगस्टर एक्ट सहित अन्य गंभीर अपराधों में लिप्त होने के तमाम मुकदमे विभिन्न अदालतों में विचाराधीन हैं। न्यायमूर्ति सिंह ने फैसले में कहा कि सबूतों एवं गवाहों के परीक्षण और दोनों पक्षों की दलीलों के आधार पर कहा जा सकता है कि प्रतिवादी अभियुक्त गैंगस्टर है और उसने तमाम गिरोहबंद अपराध कारित किये हैं। इसलिये अदालत उसे पांच साल के कठोर कारावास और 50 हजार रुपये के जुर्माने की सजा सुनाती है।
ज्ञात हो कि दो दिन पहले भी उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने जेलर को जान से मारने की धमकी देने से जुड़े एक अन्य मुकदमे में मुख्तार को 7 साल की सजा और 37 हजार रुपये के जुर्माने की सजा सुनायी है। इस मामले में भी निचली अदालत ने मुख्तार को बरी कर दिया था।