नई दिल्ली (मानवी मीडिया) पसमांदा मुसलमानों का दिल जीतने का हर प्रयास भाजपा करना चाहती है। हाल ही में हैदराबाद में भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में प्रधानमंत्री मोदी ने पार्टी के नेताओं को साफ संदेश दिया था कि वे हर समुदाय के पिछड़ों और वंचितों को अपने साथ जोड़ें। इस बीच राष्ट्रीय उलेमा ने सरकारी नौकरियों में पसमांदा मुसलमानों के लिए आरक्षण की मांग की है।
दिल्ली के जामिया नगर में बाटला हाउस एनकाउंटर के बाद आजमगढ़ में राष्ट्रीय उलेमा काउंसिल नाम का संगठन बनाया गया था। पूर्वी उत्तर प्रदेश के लोगों के साथ कथित भेदभाव और शिक्षा, नौकरी के अवसरों की कमी को लेकर एक प्रोटेस्ट ग्रुप के रूप में इसे बनाया गया था। इसमें मुस्लिम समुदाया के कई नेताओं और बुद्धिजीवियों को शामिल किया गया। हालांकि बाद में यह एक राजनीतिक दल बन गया।
कौन होते हैं पसमांदा मुसलमान
पसमांदा फारसी का शब्द है जिसका मतलब होता है पीछे छूटे हुए या सताए हुए लोग। लगभग 100 साल पहले पसमांदा आंदोलन शुरू हुआ था। इसकते बाद 90 के दशक में दो बड़े संगठन बने। पहला था इंडिया यूनाइटेड मुस्लिम मोर्चा और दूसरा ऑल इंडिया पसमांदा मुस्लिम महज। ये दोनों संगठन पसमांदा मुसलमानों की वकालत करते हैं लेकिन धार्मिक नेता इन्हें स्वीकार नहीं करते।
क्या है अखिल भारतीय पसमांदा मुस्लिम महाज की मांग
बता दें कि अखिल भारतीय पसमांदा मुस्लिम महाज के संस्थापक अनवर अंसारी ने प्रधानमंत्री मोदी को खुला पत्र लिखा था। उन्होंने पसमांदा मुसलमानों के लिए भाजपा के रुख की आलोचना की थी। इसके अलावा उन्होंने यह मांग रखी थी कि ओबीसी में आने वाली दर्जनभर जातियों को अनुसीचित जाति का दर्जा दिया जाए। इसके अलावा उन्होंने जातिगत जनगणना की भी वकालत की थी जिसे केंद्र की सरकार पहले ही खारिज कर चुक है।
आरएसएस भी चाहता है पसमांदा का समर्थन!
पिछले कुछ दिनों से आरएसएस के बड़े नेताओं की बातों में काफी नरमी देखी जा रही है। हिंदुत्व पर बोलते हुए मोहन भागवत भी कई बार कह चुके हैं कि भारतीयों का डीएनए एक ही है। इसके अलावा आरएसएस का विवादित घर वापसी कार्यक्रम भी अब चर्चा में नहीं है। ऐसे में कहा जा सकता है कि भारत में आगे की राजनीति के लिए पिछड़े मुसलमानों के समर्थन की जरूरत दक्षिणपंथी संगठनों को भी महसूस हो रही है।