केपटाउन (मानवी मीडिया) दक्षिण अफ्रीका में एक ऐसा भी गांव है जो कि यूरोप के किसी शहर से कम नहीं लगता है। खास बात यह भी है कि यहां श्वेत लोग ही रहते हैं। दूर से देखने पर तो यह किसी दूसरे छोटेशहर जैसा ही लगता है लेकिन अंदर जाने पर पता चलता है कि यह क्यों खास है। पश्चिमी देशों में आम तौर पर देखा जाता है कि अश्वेत कई जगहों पर छोटे काम करते हैं लेकिन यहां आपको गोरे सुपरमार्केट में पोछा लगाते, ब्लोअर चलाते या फिर खेतों में कटाई करते मिल जाएंगे।
ओरानिया दक्षिण अफ्रीका के ऐसा शहर है जिसने नस्लीय भेदभाव को खत्म करने की घोषणा कर दी है। बात 1991 की है जब नस्लभेद का अंत हो रहा था। डच लोगों के वंशजों ने 19 हजार एकड़ जमीन औरेंज नदी के किनारे खरीद ली। इसके बाद उन्होंने एक अलग शहर बनाया और यहां केवल गोरे ही रहते हैं। ओरानिया की आबादी अब 2500 तक पहुंच गई है।
यहां की आबादी 10 गुना तक बढ़ गई है और यहां की अर्थव्यवस्था भी काफी अच्छी है। यहां डच स्टाइल के घर बने हुए हैं जिनके बीच कोई दीवार नहीं बल्कि गार्डेन हैं। यहां की साफ सड़कों पर बच्चे साइकलिंग करते और बड़े जॉगिंग करते दिख जाएंगे। यहां छोटे नारंगी-सफेद और नीले झंडे लहराते नजर आ जाएंगे।
नस्लभेद के प्रति बेहद संवेदनशील यहां के लोगों का कहना है कि वे अपने सारे काम खुद ही करते हैं। अपनी सेवा करवाने के लिए किसी अश्वेत व्यक्ति को काम पर नहीं रखते। वहीं दक्षिण अफ्रीका की अन्य समस्याओं से यह शहर बहुत दूर है। यहां बिजली, सड़क और कानून का भी जिम्मा ये लोग खुद ही उठाते हैं।
दक्षिण अफ्रीका के संविधान के मुताबिक भी ओरानिया के पास अपने फैसले लेने का अधिकार है और यह सीधे केंद्र सरकार से स्वायत्ता के साथ संचालित होता है। इसकी अपनी अलग करेंसी है। सौर ऊर्जा के इस्तेमाल की वजह से इसे सरकार से बिजली नहीं लेनी पड़ती। यहां क्राइम भी बहुत कम है। यहां की अर्थव्यवस्था हर साल 17 फीसदी के दर से बढ़ रही है।