न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा कि यह एक गंभीर मुद्दा है और यहां तक कि उन्हें भी कोविड के दौरान ऐसा ही प्रेस्क्राइब किया गया था और कहा, जब मुझे कोविड था तो मुझसे भी ऐसा ही करने के लिए कहा गया था। उन्होंने कहा, यह एक गंभीर मुद्दा और मामला है। पीठ ने केंद्र का प्रतिनिधित्व कर रहे अतिरिक्त सॉलिस्टिर जनरल के.एम. नटराज को 10 दिनों के भीतर जवाब दाखिल करने को कहा है।
शीर्ष अदालत एक जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिसमें डॉक्टरों को उनकी दवाएं लिखने के लिए प्रोत्साहन के तौर पर मुफ्त उपहार देने के लिए दवा कंपनियों को जवाबदेह बनाने का निर्देश देने की मांग की गई थी।
याचिका में कहा गया है, याचिकाकर्ता स्वास्थ्य सेवा पेशेवरों के साथ अपने व्यवहार में फार्मास्युटिकल कंपनियों द्वारा अनैतिक विपणन प्रथाओं के बढ़ते उदाहरणों के मद्देनजर भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के अधिकार में निहित स्वास्थ्य के मौलिक अधिकार को लागू करने की मांग कर रहे थे। अत्यधिक या तर्कहीन दवाओं को प्रेस्क्राइब करना, ऐसी प्रथाएं हैं जो नागरिकों के स्वास्थ्य को सीधे प्रभावित करती हैं, संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत उनके अधिकारों का उल्लंघन करती हैं।
याचिका में कहा गया है कि यह उचित समय है कि स्वास्थ्य के अधिकार को सुनिश्चित करने में कमियों को तत्काल उचित कानून द्वारा भरा जाए। याचिका में कहा गया है कि ऐसे पर्याप्त उदाहरण हैं जो दिखाते हैं कि कैसे फार्मास्युटिकल क्षेत्र में भ्रष्टाचार सकारात्मक स्वास्थ्य परिणामों को खतरे में डालता है और मरीजों के स्वास्थ्य को खतरे में डालता है। दलील में तर्क दिया गया कि अनैतिक प्रथाओं में वृद्धि जारी है और कोविड-19 के दौरान भी ऐसी चीजें सामने आई हैं।