। इस तकनीक से जहां सड़कें सामान्य परंपरागत तकनीक से बनाई गई सड़कों से कहीं अधिक टिकाऊ होंगी, वहीं इनकी निर्माण लागत भी अपेक्षाकृत कम होगी ।यही नहीं इनके निर्माण में कार्बन उत्सर्जन में कमी होने से पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा मिलेगा ।गत वर्ष विभाग द्वारा पायलट प्रोजेक्ट के रूप में 9 सड़कों को लिया गया जिन पर अधिकांश काम हो गया है ,सड़कों का निर्माण अल्प समय में हो जाता है ।ग्रामीण अभियंत्रण विभाग ने इस वर्ष 5500किमी कार्य किया जायेगा, जिसकी शुरुआत भी कर दी गई है ।इस वर्ष तकरीबन
रू० 5 हजार करोड़ से अधिक के कार्य इस तकनीक से होने हैं।इस तकनीक में कुछ सीमेंट में एक विशेष प्रकार के केमिकल को मिलाकर एक पर्त बिछाई जाती है और पुरानी बनी ,लेकिन खराब हो चुकी सड़क की,एक विशेष प्रकार की मशीन से खुदाई करके उस सड़क की पुरानी गिट्टी,पत्थर आदि का उपयोग किया जाता है।अलग से पत्थर, गिट्टी आदि क्रय करने की आवश्यकता नहीं पड़ती है ।
ग्रामीण अभियंत्रण विभाग के मुख्य अभियंता वीरपाल सिंह राजपूत बताते हैं कि इस तकनीक के दूरगामी और सफल परिणाम हासिल होंगे और सड़कों के निर्माण के क्षेत्र में यह तकनीक एक नई क्रांति की जनक साबित होगी। इस तकनीक से उत्तर प्रदेश गत वर्ष पायलट प्रोजेक्ट के रूप मे 9 मार्गों को लिया गया ,जिन पर अधिकांश काम हो गया है ,जिन्हें कई प्रदेशों के सड़कों के निर्माण से जुड़े विशेषज्ञ व अधिकारी देखने आ रहे हैं।इस तकनीक से सड़कों का उच्चीकरण अपेक्षाकृत कम समय में हो जाता है और कार्बन उत्सर्जन में बहुत कमी होती है।