इस बार शारदा और घाघरा की तीखी धार ने सैकड़ो आशियानों को अपने में मिला लिया है....। कोई भेद नहीं,कच्चा हो या पक्का....सब इसमें मिलते गए। सिवाय उस अभागी देहरी के जो शारदा के किनारे अब भी खड़ी होकर तबाही का मंजर बयां करती है...। बाढ़ से दो-दो हाथ कर जब एक आम गाँजरवासी मेहनत-मजदूरी करके किसी तरह से अपनी देहरी को अनाज से भरता है तो उसमें केवल अनाज नहीं होता बल्कि यह जस्ते की बटुली में उबलने वाली उम्मीदें होती हैं जिसे कभी पतरकी उबालती है तो कभी रग्घू तो कभी भगौती......। यह उबाल आने के लिए गाँजर में पसीने बहते हैं क्योंकि दुनिया के सबसे गरीब क्षेत्रों में से एक है जहाँ की जीवन-शैली जितनी सरल है जीवन उतना ही कठिन है।
शारदा की भाषा को पढ़ने मे असफल बढ़इनपुरवा कट गया है....क्योंकि शारदा का व्याकरण इस बार कठिन हो गया। लोगों के बीच गया हूँ...मायूसगी है...चिंता है....दर्द है....लेकिन कुछ भी चेहरे पर दिखता नहीं है....शायद शारदा जितनी ही गहराई है इनकी जिजीविषा में और इनके दिल में....लगभग सबकुछ गँवा चुके गाँजरवासियों की इस जीवटता को सल्यूट....। न जाने कब तलक मुझे ये जीवटता प्रेरित करती रहेगी....अनन्त समय और अनन्त काल तक यह स्मरण की जाती रहेगी।
शारदा शांत हो चली हैं लेकिन इसकी भीषणता का अंदाज़ा लगाने के लिए उस मकान के अभागे अवशेष "अभागी देहरी" अब भी किनारे पर खड़ी है....। दीवार कट गई लेकिन देहरी बच गयी....इंसान उजड़ गया लेकिन देहरी खड़ी है....। मानो शारदा से कह रही हो कि देहरियाँ फिर भरेंगीं....ये देहरियाँ मात्र मिट्टी की एक आदिम सी संरचना मात्र नहीं है बल्कि उन उम्मीदों का साकार रूप हैं जो हल-बैल लिए जुआठ में नधे हीरा-मोती नाम के बैलों के पीछे चलते किसी होरी के मन में बसती है।
गाँजर क्षेत्र में मिट्टी की देहरियाँ लगभग हर घर में मिलती हैं...। गाँजर ने अपनी आदिम पद्धति को त्यागा नहीं है ये अलग बात है कि वहाँ भी मोबाइल ने दूरसंचार के लिहाज़ से अपने पाँव पसार दिए हैं...। लोग छोटे-छोटे सोलर पैनल से इन मोबाइल्स को चार्ज करते हैं और रात घिरते ही नौटंकी,फिल्में और रामायण-महाभारत इन मोबाइल्स पर गड़क उठते हैं....उजाले के लिए छोटी एलईडी बल्ब भी जल उठतीं हैं...। एक आम गाँजरवासी ने बाढ़ को अपनी हथेली की भाग्य रेखा मान लिया है जो कभी बनती है तो कभी बिगड़ती है.....। इसे बाँचने वाला कोई हो न हो लेकिन मैंने महसूसा है इस रेखा ने गाँजर की जीवन रेखा को बहुत गहरे तक प्रभावित किया है....। भूगोल का इतिहास और अर्थव्यवस्था पर क्या प्रभाव पड़ सकता है यह उतना एनसीईआरटी से न समझ पाया था जितना शारदा की स्याही और घाघरा की घरघराती आवाज व कठिन हो चली भाषा ने सिखाया है.....।
शारदा और घाघरा की गोद में बसे गाँजर क्षेत्र में देहरियाँ न जाने कब तक तेज जलधार का मुक़ाबला करेंगीं लेकिन इनमें बसने वाली उम्मीदें और जीवटता सदियों तक याद की जाती रहेंगीं....।
विपिन सिंह भदोरिया
बढ़इनपुरवा--खमरियाशेखूपुर
बाढ़ क्षेत्र रेउसा,
बिसवां सीतापुर।।