ये आदेश जस्टिस अरविंद कुमार मिश्रा और जस्टिस मनीष माथुर की बेंच ने सरोजनी नाम की एक लड़की के पत्र को बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका के तौर पर दर्ज करते हुए पारित किया. कोर्ट ने अपने आदेश में जोर देकर कहा कि पुलिसकर्मी के महज मौखिक आदेश पर किसी भी व्यक्ति के जीवन, स्वतंत्रता और सम्मान को हवा में नहीं उड़ाया जा सकता है. सरोजनी नाम की लड़की ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को पत्र भेज कर शिकायत की थी कि उसके माता-पिता को 8 अप्रैल को महिला थाना, लखनऊ पर फोन कर के पुलिस ने बुलाया. वहां जाने के बाद उसके माता-पिता को अवैध तरीके से हिरासत में ले लिया गया.
दरअसल पुश्तैनी सम्पत्ति का विवाद उसके माता-पिता और भाई-भाभी के मध्य चल रहा है. इसी विवाद को लेकर उसके माता-पिता को बुलाया गया था. मामले की पहली सुनवाई पर राज्य सरकार के अधिवक्ता ने कोर्ट को बताया था कि उन्हें प्राप्त निर्देशों के अनुसार ऐसे किसी भी व्यक्ति को न तो थाने पर बुलाया गया और न ही वे आए.
हालांकि कोर्ट द्वारा तलब की गई महिला थाने की इंचार्ज दुर्गावती ने शपथ पत्र देकर बताया कि 8 अप्रैल को हेड कांस्टेबल शैलेंद्र सिंह ने उक्त दम्पति को थाने पर बुलाया था. जिसकी जानकारी उन्हें नहीं थी. पहले दी गई गलत जानकारी के लिए उन्होंने कोर्ट से माफी भी मांगी. हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि दंपति को साढे़ तीन बजे जाने दिया गया था.।