मुंबई (मानवी मीडिया): भारतीय रिजर्व बैंक ने एक अप्रत्याशित कदम उठाते हुए अपनी नीतिगत दर रेपो को बुधवार को 4 प्रतिशत से बढ़ाकर 4.4 प्रतिशत पर करने की घोषणा की। रेपो दरों में बढ़ोतरी के साथ कर्ज की EMI बढ़ जाएगी क्योंकि बैंकों की कर्ज लागत बढ़ेगी। रेपो दर वो दर होती है जिस पर बैंक रिजर्व बैंक से धन उठाते हैं। इसके बढ़ने के साथ ही बैंकों की कर्ज लागत बढ़ेगी और वो इसे ग्राहकों तक पहुंचाएंगे, इससे आने वाले समय में आपका होम लोन, ऑटो लोन या पर्सनल लोन सभी महंगा हो जाएगा।
आरबीआई के गवर्नर शक्तिकांत दास ने आरबीआई मुख्यालय पर इस फैसले की घोषणा करते हुए कहा कि दीर्घकालीन वृद्धि दर के हित में मुद्रास्फीति को काबू में रखना जरूरी है। उन्होंने वर्तमान आंतरिक और बाहरी परिदृश्यों को चुनौतीपूर्ण बताते हुए कहा कि केंद्रीय बैंक मुद्रास्फीति पर अंकुश रखने के साथ-साथ आर्थिक वृद्धि को समर्थन देने की नीति के प्रति प्रतिबद्ध है।
आरबीआई ने मई 2020 से अपनी रेपो दर (वह दर जिसपर केंद्रीय बैंकों को एक दिन के लिए धन उधार देता है) को 4 प्रतिशत पर बनाए हुए था ताकि कोविड से त्रस्त अर्थव्यवस्था को वृद्धि की राह पर आगे बढ़ाया जा सके। रेपो दर बढ़ाने की रिजर्व बैंक की घोषणा के बाद शेयर बाजार में तेज गिरावट दर्ज की गयी। बीएसई का 30 शेयरों वाले संवेदी सूचकांक सेंसेक्स कारोबार के दौरान में 1342 अंक तक नीचे आ गया था।
कोविड का संकट कम होने और आर्थिक गतिविधियों में तेजी के बीच अचानक रूस यूक्रेन युद्ध से जिंसों का अंतरराष्ट्रीय बाजार और आपूर्ति श्रृंखला प्रभावित होने के कारण मुद्रास्फीति का दबाव बढ़ गया है। मार्च में भारत में खुदरा मुद्रास्फीति बढ़कर 6.95 प्रतिशत तक पहुंच गयी जो इसका 17 महीने का उच्चतम स्तर है। फरवरी में भी मुद्रास्फीति 6.07 प्रतिशत थी जबकि रिजर्व बैंक को खुदरा महंगायी दर को 2-6 प्रतिशत के दायरे में रखने की जिम्मेदारी मिली हुयी है। आरबीआई गर्वनर ने कहा कि तमाम उभरती चुनौतियों के बावजूद भारतीय अर्थव्यवस्था बाहरी आधातों से निपटने के लिए पहले से बेहतर स्थिति में है।