नई दिल्ली: (मानवी मीडिया) देश की आबादी की रफ्तार में गिरावट दर्ज की गई है। नैशनल फैमिली हेल्थ सर्वे ने एक रिपोर्ट जारी की है। रिपोर्ट के अनुसार, देश में बच्चे पैदा करने की रफ्तार 2.2% से घटकर 2% रह गई है। सर्वे में 35% पुरुषों का मानना है कि गर्भनिरोधक अपनाना महिलाओं का काम है। वहीं, 19.6% पुरुषों का मानना है कि गर्भनिरोधक का उपयोग करने वाली महिलाएं ‘स्वच्छंद’ हो सकती हैं।
एक सर्वे में देश के 28 राज्यों और 8 केंद्रशासित प्रदेशों के 707 जिलों से करीब 6.37 लाख सैंपल लिए गए। रिपोर्ट कहती है कि चंडीगढ़ में सबसे अधिक 69% पुरुषों का मानना है कि गर्भनिरोधक अपनाना महिलाओं का काम है और पुरुषों को इस बारे में चिंता करने की जरूरत नहीं है। केरल में सर्वेक्षण में शामिल 44.1 प्रतिशत पुरुषों के अनुसार गर्भनिरोधक का उपयोग करने वाली महिलाएं ‘स्वच्छंद’ हो सकती हैं। सर्वे में 55.2% पुरुषों का कहना है कि अगर कॉन्डम सही तरीके से इस्तेमाल किया जाए तो यह ज्यादातर मामलों गर्भधारण से बचाता है। केवल 5 राज्य ऐसे हैं जहां प्रजनन दर 2.1% से ज्यादा है। ये हैं - बिहार, मेघालय, उत्तर प्रदेश, झारखंड और मणिपुर।
मंत्रालय की तरफ से राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे एनएफएचएस-5 जारी किया। इसके अनुसार, यह भी पता चला है कि गर्भनिरोधकों को लेकर देश में जागरूकता का स्तर लगभग एकसमान है। 99 फीसदी शादीशुदा महिलाओं और पुरुषों को गर्भनिरोध का कम से कम एक आधुनिक तरीका पता था। यह बात दीगर है कि उनमें से केवल 54.6% ने ही उनका इस्तेमाल किया। नौकरी करने वाली ज्यादातर महिलाएं कॉन्ट्रासेप्शन यूज करने में यकीन रखते हैं। सर्वे में शामिल 66.3% फीसदी महिलाओं ने कहा कि उन्होंने आधुनिक गर्भनिरोधक इस्तेमाल किए हैं बेरोजगार महिलाओं में यह आंकड़ा 53.4% रहा।
परिवार नियोजन की जरूरत आर्थिक रूप से सबसे पिछड़े तबके में सबसे ज्यादा (11.4%) और सबसे रईस तबके में सबसे कम (8.6%) है। स्टडी के अनुसार, जैसे-जैसे आय बढ़ती है, गर्भनिरोधकों का इस्तेमाल बढ़ता जाता है। पॉपुलेशन फाउंडेशन ऑफ इंडिया की एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर पूनम मुतरेजा ने कहा, 'यह डेटा साबित करता है कि विकास ही सबसे अच्छा गर्भनिरोधक है।' उन्होंने कहा कि 'NFHS-5 के डेटा में खुश होने को बहुत कुछ है लेकिन हमारा फोकस उस पर होना चाहिए जो हम हासिल नहीं कर सके हैं। हमें समाज के शोषित हिस्से के लिए और काम करना होगा, जिन्हें शायद वर्ग, पहचान या भूगोल की वजह से अधिकार नहीं मिल पा रहे हों।