नई दिल्ली (मानवी मीडिया) देश की राजधानी दिल्ली के महरौली स्थित कुतुब मीनार परिसर में 27 हिंदू और जैन मंदिरों के जीर्णोद्धार के संबंध में दायर एक अपील पर मंगलवार को साकेत कोर्ट में सुनवाई हुई। अदालत ने सभी पक्षों की दलीलें सुनने के बाद मामले में फैसले के लिए 9 जून की तारीख तय की है। इससे पहले भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) ने अदालत में एक हलफनामा दायर कर यह भी बताया कि कुतुब मीनार एक निर्जीव इमारत है जहां किसी को भी पूजा-पाठ या किसी भी तरह की धार्मिक गतिविधि करने का कानूनी हक नहीं है। कोर्ट में क्या हुई बहस, पढ़ें पूरा ब्योरा
मामले की सुनवाई शुरू होते ही याचिकाकर्ता जैन ने कहा कि एक बार कोई भगवान है तो वो हमेशा के लिए भगवान है। मंदिर के ध्वंस के बाद इसका चरित्र नहीं बदल जाएगा और न ही ये अपनी गरिमा खोएगा। मैं एक उपासक हूं। आज भी देवी-देवताओं की ऐसी छवियां हैं जो वहां देखी जा सकती हैं। मेरी याचिका पर अदालत ने पिछली सुनवाई में मूर्ति को संरक्षित करने की बात कही थी। वहां एक लौह स्तंभ भी है जो 1600 साल पुराना है।
याचिकाकर्ता ने आगे कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने कहा है देवता हमेशा जीवित रहते हैं और अगर ऐसा है तो पूजा करने का अधिकार भी जीवित रहता है। इस पर अदालत ने कहा कि अगर देवता 800 साल तक बिना पूजा हुए जीवित रह सकते हैं तो उन्हें वैसे ही रहने दिया जाए।
अदालत ने आगे कहा कि, प्रश्न ये है कि क्या पूजा का अधिकार एक स्थापित अधिकार है, यह सांविधानिक है या अन्य कोई अधिकार है? मूर्ति का होना विवाद का विषय नहीं है। यहां प्रश्न पूजा के अधिकार को लेकर है। मेरा सवाल है कि कौन सा कानून इस अधिकार का समर्थन करता है? हम यहां ये बहस नहीं कर रहे कि वहां कोई मूर्ति है या नहीं। हम यहां सिविल जज के आदेश के खिलाफ बात कर रहे हैं।
यह अपील गुण-दोष के आधार पर नहीं है
अदालत ने आगे कहा, यह अपील गुण-दोष के आधार पर नहीं है। यहां एकमात्र सवाल ये है कि क्या याचिकाकर्ता को किसी कानूनी अधिकार से वंचित किया गया है? इस पर याचिकाकर्ता ने कहा कि हां संवैधानिक अधिकार को नकारा गया है। कोर्ट ने पूछा कैसे तो याची ने कहा आर्टिकल 25 के तहत। इस पर अदालत ने पूछा कि आपका मतलब है कि पूजा का अधिकार मौलिक अधिकार है? याचिकाकर्ता ने आर्टिकल 25 का हवाला देते हुए कहा कि, भारत में 1000 साल पुराने कई मंदिर हैं, इसी तरह यहां भी पूजा की जा सकती है। निचली अदालत ने मेरे अधिकार का फैसला नहीं किया है, उनका फैसला गलत है।
याची ने आगे कहा कि, यह न्यायिक प्रक्रिया द्वारा निर्धारित किया जाना है कि मेरा कोई अधिकार नहीं है। अपील में यह तय नहीं किया जा सकता है कि मेरे पास अधिकार है या नहीं। अयोध्या फैसले में, यह माना गया है कि एक देवता सदैव जीवित रहते हैं। अगर ऐसा है, तो मेरा पूजा करने का अधिकार भी रहता है। इस दौरान याची ने निचली अदालत के फैसले को पूरी तरह से गलत ठहराया और उसके कुछ अंश पढ़कर कहा कि निचली अदालत ने अपनी सीमा का उल्लंघन किया है।
इस पर साकेत कोर्ट ने कहा कि मेरा प्रश्न ये है कि उन्हें ऐसा लगा होगा कि राहत देना कानून का उल्लंघन होगा या परेशान करने वाला होगा। इसलिए मैं आपसे कानून का उद्देश्य पूछ रहा हूं। इस पर जैन ने 1958 के एएमएएसआर एक्ट के सेक्शन 16 का हवाला दिया।
सुनवाई के दौरान अदालत में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के वकील सुभाष गुप्ता पेश हुए। उन्होंने कोर्ट में कहा कि निचली अदालत के फैसले में दखल देने का कोई मतलब नहीं है। इमारत का कैरेक्टर 1958 के कानून के बनने के बाद से निश्चित होता है। जो तब तय हो गया वह बदला नहीं जा सकता। यही दिल्ली हाईकोर्ट ने सुनिश्चित किया है। कोर्ट ने सभी पक्षों की बात सुनी और अगली सुनवाई 9 जून को तय की है।