संगोष्ठी में मुख्य अतिथि के तौर पर बोलते हुए उत्तर प्रदेश विधान परिषद के सभापति माननीय कुंवर मानवेंद्र सिंह ने कहा अट्ठारह सौ सत्तावन की क्रांति विश्व की एक महान, आश्चर्यजनक, अत्यंत प्रभावी तथा परिवर्तनकारी घटना थी। इसने न केवल ब्रिटिश साम्राज्यवाद की तथा उपनिवेशवाद की चूलों को हिला दिया अपितु यूरोप के प्रमुख राष्ट्रों में एक नवजीवन तथा चेतना जागृत की। यह क्रांति ध्वंसात्मक तथा सृजनात्मक दोनों थी। इसके दूरगामी प्रभाव तथा परिणाम हुए। उन्होंने कहा कि आज प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के 165 वर्ष पूरे हो चुके हैं।जिस स्वतंत्रता संग्राम ने भारत वासियों में एक नई चेतना का संचार किया जिसने अंग्रेजी सत्ता की जड़े हिला दी उस स्वतंत्रता संग्राम को विदेशी विचार व धन पर पोषित इतिहासकारों ने स्वतंत्रता संग्राम मानने के बजाय गदर का नाम दिया। यह वीर सावरकर थे जिन्होंने अट्ठारह सौ सत्तावन के स्वतंत्रता संग्राम को प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के रूप में हम सबके सामने रखा।
मुख्य वक्ता ऑल इंडिया पावर इंजीनियर्स फेडरेशन के चेयरमैन शैलेंद्र दुबे ने कहा 1857 का स्वतंत्रता संग्राम किसी उत्तेजना से उत्पन्न आंदोलन नहीं था। इस स्वतंत्रता संग्राम के राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक मायने थे। उन्होंने कहा यदि यह गाय और सुअर की चर्बी से उत्पन्न क्षणिक आवेश होता तो केवल सैनिकों तक सीमित रहता। क्रांति यदि केवल सैनिकों की थी तो आम लोगों का दमन क्यों किया गया ? 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में 10 लाख से अधिक आम लोगों को चौराहों पर और पेड़ों पर फांसी के फंदे पर लटका दिया गया। स्पष्ट है कि यह आमजन का संग्राम था। उन्होंने कहा भारत में अंग्रेजी वस्तु को लेकर यूरोप के लोगों ने जुलाहों, दर्जियों, बढ़ई, लोहार, मोचियों, ठठेरों को बेरोजगार कर उनका पैसा हड़प लिया था। इस प्रकार प्रत्येक भारतीय दस्तकार भिखारी की हालत में आ गया था। सभी सरकारी पदों पर सिर्फ भारतीयों की नियुक्ति और व्यापारिक अवसरों को भारतीयों के लिए सुरक्षित करना, आर्थिक स्वावलंबन, रोजगार के अवसर का भारतीयकरण यह स्वतंत्रता संग्राम का मुख्य एजेंडा था।उन्होंने रानी लक्ष्मीबाई,नाना साहब पेशवा,तात्या टोपे,वीर कुंवर सिंह,बहादुर शाह जफर,बेगम हजरात्महल और मङ्गल पांडेय के बलिदान का स्मरण किया।
शैलेन्द्र दुबे ने कहा 1857 के स्वतंत्रता संग्राम की सबसे बड़ी नायिका झांसी की रानी लक्ष्मीबाई थीं। रानी में सारे गुण एकत्रित थे।ऐसी संगठन कुशलता कम होती है। युद्ध में प्रवीण। यह भाग्य इंग्लैंड के हिस्से में नहीं था, इटली की राज्य क्रांति अपनी वैभव काल में भी कोई लक्ष्मीबाई पैदा नहीं कर पाई। वीर सावरकर ने लिखा है 1857 में मातृभूमि के हृदय में जो ज्योति प्रज्वलित हुई उसने आगे चलकर महा विस्फोट कर दिया। मेरठ से उठी चिंगारी से देश बारूद का भंडार बन गया। यह ज्वालामुखी का विस्फोट था किंतु बाबा गंगादास की कुटिया के पास जली चिता की ज्वाला 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के ज्वालामुखी से निकली सबसे तेजस्वी ज्वाला थी।
विशिष्ट अतिथि उत्तर प्रदेश विधानसभा के सदस्य राजीव सिंह ने कहा कि यह बड़े दुर्भाग्य की बात है कि स्वतंत्रता प्राप्ति के 75 वर्ष बाद स्वतंत्रता के अमृत महोत्सव वर्ष में भी आम जनता अपने देश के स्वतंत्रता संग्राम से अनभिज्ञ है। उसे वास्तविक तथ्य से जानबूझकर दूर रखा गया है । यह निर्विवाद सत्य है की मुट्ठी भर अंग्रेज देश की 33 करोड़ जनता पर अपना शासन चलाते थे। मुट्ठी भर अंग्रेजों के अधीन रहने के दो मुख्य कारण थे एक आत्महीनता और दूसरा आपसी फूट। आज स्वतंत्रता के 75वें वर्ष में हम विश्व शक्ति बनने की ओर बढ़ रहे हैं और एकता बद्ध होकर आत्म हीनता की ग्रंथि को तोड़ने में सफल हुए है।
रीना त्रिपाठी महामंत्री भारतीय नागरिक परिषद ने कहा कि अट्ठारह सौ सत्तावन की क्रांति की 165 वर्ष बाद भी सहादत झांसी की रानी लक्ष्मीबाई के किले में प्रवेश करते ही महसूस होती है वाकई त्याग और बलिदान की अनोखी मिसाल आज भी झांसी के किले के रूप में उपस्थित हैं।संगोष्ठी में विशिष्ट अतिथि परीक्षा ताप बिजलीघर के मुख्य महाप्रबंधक मनोज सचान, विद्युत वितरण क्षेत्र झांसी के मुख्य अभियंता पार्थिव सिंह, भारतीय नागरिक परिषद के अध्यक्ष चंद्र प्रकाश अग्निहोत्री, उपाध्यक्ष एच एन पांडे एवं राजीव सिंह, महामंत्री रीना त्रिपाठी, रेनू त्रिपाठी, नीलिमा यादव क्लब एसोसिएशन प्रेसिडेंट, उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत परिषद अभियंता संघ के महासचिव प्रभात सिंह ,राविप जूनियर इंजीनियर्स संगठन के महासचिव जय प्रकाश,बुन्देलखण्ड मुक्ति मोर्चा के उपाध्यक्ष दिनेश भार्गव, प्रो बाबू लाल तिवारी , एच एन पांडेय, विनय त्रिपाठी, एस के शुक्ला , अजय दिवेदी, आलोक श्रीवास्तव और अन्य गण्यमान लोगों ने अपने विचार रखे।
रीना त्रिपाठी