लखनऊ (मानवी मीडिया) पीएफ घोटाले में अब आईएएस अफसरों से पूछताछ नहीं होगी। ईओडब्ल्यू की जांच के आधार पर राज्य सरकार ने उन्हें क्लीन चिट दे दी है। इस घोटाले में तीन वरिष्ठ आईएएस अफसरों संजय अग्रवाल, आलोक कुमार प्रथम व अर्पणा यू की भूमिका की जांच की जा रही थी। सीबीआई ने कुछ समय पहले इन तीनों से पूछताछ की अनुमति मांगी थी। ईओडब्ल्यू को दिए बयान में संजय अग्रवाल ने अपने हस्ताक्षर को फर्जी बताया था। अब नियुक्ति व कार्मिक विभाग ने इन हस्ताक्षरों की फोरेंसिक जांच का हवाला देते हुए अनुमति देने से इनकार कर दिया है। ईओडब्ल्यू ने उनके हस्ताक्षरों की फोरेंसिक जांच करवाई थी जिसमें हस्ताक्षर फर्जी पाए गए थे।
उनके बाद चेयरमैन बने आलोक कुमार के इससे संबंधित एक कागज पर हस्ताक्षर जरूर मिले लेकिन उन्होंने यह हस्ताक्षर पूर्ववर्ती चेयरमैन के हस्ताक्षर देखकर कर किए थे। इसे गुड फेथ में किया गया हस्ताक्षर माना गया। अपर्णा यू के हस्ताक्षर इस मामले से संबंधित एक बैलेंस शीट पर मिले हैं लेकिन इससे यह पता नहीं चलता कि राशि कहां निवेश की गई है।
2019 में घोटाला आया सामने
उत्तर प्रदेश पॉवर कॉरपोरेशन लिमिटेड (यूपीपीसीएल) में 2019 में पीएफ घोटाला सामने आया था, पहले इसकी जांच ईओडब्लू ने की और बाद में यह मामला सीबीआई को सौंप दिया गया। सीबीआई ने इस मामले में छह मार्च 2020 को आईपीसी की धारा 409, 420, 467, 468 और 471 के तहत एफआईआर दर्ज की थी। यह एफआईआर लखनऊ के हजरतगंज थाने में दो नवंबर 2019 को दर्ज कराई गई एफआईआर पर आधारित है। तब सरकार ने इस मामले की जांच पुलिस की आर्थिक अपराध अनुसंधान संगठन (ईओडब्ल्यू) को सौंप दी थी। इस घोटाले में यूपीपीसीएल के तत्कालीन एमडी एपी मिश्रा, तत्कालीन निदेशक (वित्त) सुधांशु द्विवेदी, कर्मचारी भविष्य निधि ट्रस्ट के तत्कालीन सचिव प्रवीण कुमार गुप्ता व डीएचएफएल के क्षेत्रीय प्रबंधक अमित प्रकाश समेत 17 लोगों को गिरफ्तार किया था।
यह था घोटाला
इसमें अधिकारियों ने कर्मचारियों के पीएफ के पैसे को निजी कंपनी डीएचएफएल में निवेश कर दिया था। वर्ष 2017 के बाद यूपीपीसीएल ने पीएफ के लगभग 4100 करोड़ रुपये डीएचएफएल में निवेश किया, जिसमें से यूपीपीसीएल को केवल 1855 करोड़ रुपये ही वापस मिले। दिसंबर 2020 में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने भी इस मामले में केस दर्ज कर जांच शुरू की।