लखनऊ (मानवी मीडिया)08 अप्रैल-बलिदान दिवस पर मंगल पांडे और असेंबली बम धमाके के लिये भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त याद किया किए गए*
भारतीय नागरिक परिषद के तत्वावधान में आयोजित परिचर्चा में 08 अप्रैल बलिदान दिवस पर भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के प्रथम बलिदानी मंगल पांडे का स्मरण किया गया और आज के ही दिन 1929 में सेंट्रल असेंबली में बम धमाका कर ब्रिटिश हुकूमत को चुनौती देने वाले भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त को याद किया गया। परिचर्चा अंबेडकर विश्वविद्यालय के पास शहीद नगर में आयोजित की गई ।
परिचर्चा में मुख्य वक्ता के तौर पर बोलते हुए ऑल इंडिया पावर इंजीनियर्स फेडरेशन के चेयरमैन शैलेंद्र दुबे कहा की 08 अप्रैल भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक अविस्मरणीय ऐतिहासिक दिन है। आज के दिन 1857 में मंगल पांडे ने फांसी का फंदा चूम कर अमरत्व प्राप्त किया था और आज के ही दिन 1929 में भगत सिंह ने बटुकेश्वर दत्त के साथ सेंट्रल असेंबली में बम विस्फोट कर ब्रिटिश हुकूमत की चूले हिला दी थी।
उन्होंने बताया कि 29 मार्च 18 57 एक हाथ में तलवार व दूसरे हाथ में बंदूक लेकर बैरकपुर छावनी में मंगल पांडेय बाहर निकले और अन्य सिपाहियों को धर्म युद्ध में शामिल होने का आह्वान करने लगे। पता लगते ही मेजर ह्यूसन वहां आ गया ।उसने सामने खड़े सैनिकों को आज्ञा दी मंगल पांडे को गिरफ्तार करें पर कोई आगे नहीं बढ़ा। मंगल पांडे ने निशाना साध कर 18 57 की क्रांति की पहली गोली मेजर ह्यूसन पर चला दी और क्रांति की वेदी पर पहली बलि चढ़ गई। इतने में ही एडजुटेंट लेफ्टिनेंट बाघ तथा सार्जेन्ट हडसन घटनास्थल पर आ गये। मङ्गल पाण्डेय ने उनपर भी गोली चला दी पर निशाना चूक गया। मङ्गल पाण्डेय, हडसन और बाघ ने तलवारें निकाल लीं। मङ्गल पाण्डेय के सामने दोनों की एक न चली। हाय रे दुर्भाग्य शेख पलटू नामक सिपाही ने आगे बढ़ कर मङ्गल पाण्डेय का हाथ पकड़ लिया और मौका पाकर दोनों अंग्रेज भाग निकले।
अब जनरल हियरसे आ गया। उसने मंगल पांडे को पकड़ने का आदेश दिया पर सैनिकों ने कहा गिरफ्तार करना तो दूर हम पंडित जी को हाथ भी नहीं लगाएंगे। साथी सिपाहियो के सहयोग न देने से मंगल पांडे निराश हो चुके थे ।उन्होंने दुख से आत्महत्या करने की कोशिश की ।गोली छाती पर लगी और वह बेहोश होकर गिर पड़े ।उन्हें गिरफ्तार कर कोर्ट मार्शल का ड्रामा किया गया और 8 अप्रैल 1857 को फांसी की सजा सुनाई गई और उसी दिन फाँसी दे दी गई।मंगल पांडे के प्रति लोगों के मन में इतनी श्रद्धा थी कि बैरकपुर का कोई जल्लाद फांसी देने के लिए तैयार नहीं हुआ। अंततः कोलकाता से चार जल्लाद बुलाए गए ।भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में क्रांतिकारियों का यह पहला बलिदान है। इस बलिदान की कथा देश भर की छांवनियों में विद्युत गति से पहुंची ।हिंदुस्तानी सिपाही उन्हें धर्मवीर मानने लगे ।मंगल पांडे जी 24 नंबर पलटन के सिपाही थे। उस पलटन को सिपाहियो के शस्त्र और वर्दियां उतरवाकर भंग कर दिया गया। सेना के 500 सिपाही मंगल पांडे की वीर गाथा गाते हुए अपने अपने घरों को लौट गये।
08 अप्रैल 1929 को सेंट्रल असेंबली जिसे आज लोकसभा कहा जाता है, भगतसिंह ने बटुकेश्वर दत्त को साथ लेकर बम का धमाका किया। बम धमाके के बाद भगत सिंह और दत्त ने नारा लगाया - इंकलाब जिंदाबाद इंकलाब जिंदाबाद ।भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त सेंट्रल असेम्बली की दर्शक दीर्घा में जोर-जोर से बोल रहे थे - यह बम किसी को मारने के लिए नहीं है, बहरों को सुनाने के लिए धमाके की जरूरत होती है ।बम धमाके के बाद सारे देश में पर्चे बांटे गए जिसमें लिखा था कि बम धमाके का उद्देश्य बहरों को सुनाना था। इस पर्चे में स्पष्ट रुप से लिखा था कि भारतीय क्रांतिकारी दल का उद्देश्य समाजवाद की स्थापना है और हमारा नारा है इन्कलाब जिंदाबाद।
बम धमाके के बाद 8 अप्रैल 1929 को भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने स्वेच्छा से गिरफ्तारी दे दी और भागने का कोई प्रयास नहीँ किया।
परिचर्चा में बोलते हुए भारतीय नागरिक परिषद की महामंत्री रीना त्रिपाठी ने कहा की अत्यंत दुर्भाग्य का विषय है कि स्वतंत्र भारत में ऐसे महान बलिदानियों को भुलाया जा रहा है । उन्होंने कहा कि स्वतंत्रता संग्राम के वीर बलिदानियों और क्रांतिकारियों को पाठ्यक्रम में स्थान मिलना चाहिए।
परिचर्चा में भारतीय नागरिक परिषद के उपाध्यक्ष एचएन पांडे , अजय तिवारी, ओम ब्राह्मण सभा से धनंजय दिवेदी, त्रिवेणी मिश्रा, श्याम त्रिपाठी, रेनू त्रिपाठी, रचना तिवारी, किरण शर्मा, सरोजबाला सोनी, समाजसेवी नीता खन्ना, समाजसेवी पत्रकार अंशुमान दुबे, अनिल सिंह, शिव प्रकाश दिक्षित गीता वर्मा, अरविंद त्रिपाठी, महिमा त्रिपाठी मुख्यतया सम्मिलित हुऐ।
रीना त्रिपाठी