नई दिल्ली (मानवी मीडिया) अभी हिजाब पर हंगामा ही थमा था कि अब देश में हलाल मीट को लेकर बवाल मच गया है। खास बात है कि इस मामले में कई राजनीतिक लोग भी उतर गए हैं और अपने-अपने पक्ष के अनुसार बात को रख रहे हैं। नरेंद्र मोदी सरकार में मंत्री शोभा करंदलाजे ने तो साफ बोला दिया है कि देश में हिंदुओं को हलाल मीट का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए क्योंकि ये सिर्फ समाज के एक वर्ग के लिए है।
केंद्रीय मंत्री का कहना है कि दूसरा वर्ग हलाल मीट खाए, हमें कोई आपत्ति नहीं है लेकिन किसी को फोर्स न किया जाए। सिर्फ मंत्री ही नहीं, सोशल मीडिय पर दो पक्ष में लोग इस मुद्दे पर बहस करते हुए नजर आ रहे हैं। ऐसे में आपके मन में सवाल होगा कि आखिर हलाल पर मचा बवाल क्या है और झटका और हलाल गोश्त के बीच का फर्क क्या है ? चलिए हम आपको बताते हैं।
हलाल और झटके में क्या है फर्क ?
हलाल एक अरबी शब्द है और इस्लाम के अनुसार जानवरों को हलाल करके ही मीट को मुस्लिम खा सकते हैं। हलाला की प्रक्रिया थोड़ी अलग भी है। इस प्रक्रिया में जब किसी जानवर को गोश्त के लिए काटा जाता है तो उसकी गर्दन की नस और सांस लेने वाली नली को काट दिया जाता है। इससे ठीक पहले छुरी चलाते समय एक दुआ भी पढ़ी जाती है और छुरी चलाने के बाद जानवर का पूरा खून निकलने का इंतजार किया जाता है। जब जानवर मर जाता है तो उसके हिस्से कर दिए जाते हैं। इसे इस्लाम में जिबाह करना भी कहा गया है। बकरीद पर सिर्फ हलाल तरीके से ही मुस्लिम समुदाय के लोग बकरी और भेड़ों की कुर्बानी करते है।
वहीं झटके की बात करें तो इस प्रक्रिया में जब जानवर को काटा जाता है तो किसी धारदार हथियार को सीधा उसकी गर्दन पर तेजी से मार दिया जाता है। ऐसा करने से जानवर सेकेंडों में ही मर जाता है और कहा जाता है कि इससे तड़प व दर्द कम होता है। इसे झटका इसलिए ही कहा भी जाता है क्योंकि झटके के साथ गर्दन को शरीर से अलग किया जाता है।