वाराणसी (मानवी मीडिया) यूपी विधानसभा चुनाव के लिए सातवें और अंतिम चरण का मतदान चल रहा है। इस चरण में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वारा
णसी समेत नौ जिलों की 54 सीटों पर मतदान हो रहा है। वाराणसी में आठ सीटें हैं। इसमें दक्षिणी, उत्तरी और कैंट शहरी सीटें हैं। अन्य पांच सीटें शिवपुर, रोहनिया, असगरा, पिंडरा और सेवापुरी ग्रामीण क्षेत्र की मानी जाती हैं।
शहरी सीटों में दक्षिणी और कैंट पर सभी की नजरें हैं। शहर दक्षिणी में ही पीएम मोदी का ड्रीम प्रोजेक्ट काशी विश्वनाथ कॉरिडोर है। कैंट में बीएचयू समेत शहर की पॉश कालोनिया स्थित हैं। मतदान के नजरिये से देखें तो दोनों ही सीटों पर अब तक सबसे कम वोट पड़े हैं। कम मतदान वैसे तो सभी के लिए चिंता का विषय है लेकिन भाजपा ज्यादा चिंतित है।
दोपहर तीन बजे तक वाराणसी में शहर की सीटों उत्तरी-दक्षिणी और कैंट पर अन्य सीटों के मुकाबले कम वोटिंग हुई थी। सबसे कम कैंट में 40.7%, उत्तरी में 42.52% और दक्षिणी में 43.63% हुई थी। रोहनियाको छोड़कर अन्य सीटों पर 44 प्रतिशत से ज्यादा वोटिंग हो चुकी थी। पिण्डरा में 44.69%, अजगरा में 44.03%, शिवपुर में 46.1%, रोहनिया में 43.3% और सेवापुरी में 46.2% वोटिंग हुई थी।
लोगों ने नजरें वाराणसी की दक्षिणी और कैंट सीट पर लगी है। इन दोनों सीटों पर करीब तीन दशक से बीजेपी का कब्जा है। इस बार मुकाबला कड़ा हो गया है। शहर दक्षिणी में भाजपा ने एक बार फिर अपने मंत्री नीलकंठ तिवारी को मैदान में उतारा है। लगातार सात बार से विधायक बनते रहे श्यामदेव राय चौधरी का टिकट काटकर भाजपा ने 2017 में नीलकंठ तिवारी को मैदान में उतारा था। इसका विरोध भी हुआ था लेकिन भाजपा की लहर में दक्षिणी सहित सभी आठ सीटें भाजपा ने जीत ली थी।
इस बार भी कई कारणों से नीलकंठ का विरोध हुआ। नीलकंठ ने वीडियो जारी कर लोगों से माफी भी मांगी। दो दिन पहले ही उनके खिलाफ पोस्टर भी चिपकाए गए। इससे भाजपा को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। सपा ने यहां से महामृत्युंजय मठ के महंत किशन दीक्षित को उतारा है। इससे सपा ने एक तीर से कई निशाने लगाते की कोशिश की है।
किशन दीक्षित ब्राह्मण होने के साथ ही महत्वपूर्ण मंदिर के महंत भी हैं। छात्र राजनीति से जुड़े रहे और अधिवक्ता भी हैं। यहां से पिछली बार नीलकंठ को टक्कर देने वाले राजेश मिश्रा इस बार कैंट चले गए हैं। इससे बीजेपी की परेशानी दोतरफा बढ़ गई है। दक्षिणी पर राजेश रहते तो भाजपा के खिलाफ पड़ने वाला वोट सपा और कांग्रेस में बंट सकता था लेकिन इस बार ऐसा नहीं हुआ है।
दूसरा राजेश मिश्रा के कैंट जाने से वहां भी कड़ा मुकाबला हो गया है। कैंट से भाजपा ने एक बार फिर सौरभ श्रीवास्तव को उतारा है। सौरभ का ही परिवार तीन दशक से इस सीट पर विधायक होता रहा है। सौरभ से पहले उनकी मां ज्योत्सना श्रीवास्तव और उससे पहले पिता हरीशचंद्र श्रीवास्तव विधायक बनते रहे हैं।