लखनऊ (मानवी मीडिया)लखनऊ में अंबर मस्जिद में अब महिलाओं के लिए अलग मस्जिद का निर्माण किया जा रहा है। जिसमें नीव की एक ईट रखने का मुझे भी सौभाग्य प्राप्त हुआ। निश्चित रूप से बचपन से मेरे मन में ही नहीं आपके मन में भी यह विचार आता होगा कि यदि मस्जिदों में मुस्लिम पुरुष इबादत कर सकते हैं तो महिलाएं क्यों नहीं???? पर इसका जवाब आज तक नहीं मिला।
एक दिन अचानक ऑल इंडिया मुस्लिम वुमन पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMWPLB) की अध्यक्ष शाइस्ता अंबर जी द्वारा महिलाओं के नमाज हेतु मस्जिद में स्थान बनाने की चर्चा हुई और इस कार्यक्रम में 2 फ़रवरी 2022 मुझे आमंत्रित किया। निश्चित रूप से किसी मुस्लिम इबादत गाह में यह मेरा पहला कदम था। नीव की ईट का सहयोग देना भगत सिंह अमर रहे ,विवेकानंद की जय हो ,इत्यादि के नारों के साथ वाकई रोमांचकारी अनुभव सिद्ध हुआ।
भारत देश विविधताओं का देश है यदि यहां मंदिर के घंटों से सुबह की शुरुआत होती है तो अजान की गुहार को हम नकार नहीं सकते। आज हिंदू मुस्लिम नफरत के हर संभव प्रयास के बीच हिंदू मुस्लिम एकता का एक छोटा सा उदाहरण बनी नीव की ईट।
बता दें अंबर मस्जिद की स्थापना 1997 में शाइस्ता अंबर ने की थी. शाइस्ता जी ने बताया की अब तक महिलाओं को छत के नीचे और परिसर में टेंट के पीछे अस्थायी व्यवस्था पर नमाज पढ़नी पड़ती थी जिससे महिला नमाजियों को धूप और बरसात में काफी दिक्कतें आती थी। महिलाओं के लिए प्रस्तावित अलग हॉल एक मंजिला संरचना है, जिसे 3 लाख रुपये से अधिक की लागत से बनाया जाएगा। इस ऐतिहासिक निर्माण में आप भी आर्थिक सहयोगी बन सकते हैं ।
निर्माण कार्य जोरों पर है उम्मीद है कि रमजान तक, जो अप्रैल में है, महिलाओं के लिए एक उचित हॉल होगा जहां वे न केवल नमाज अदा करेंगे बल्कि तरावीह, हदीस, उपदेश, जुमा खुतबा और अन्य धार्मिक कार्यक्रमों में भी हिस्सा लेंगी। महिला सशक्तिकरण की बात करना तो आसान है पर उनके लिए हक और अधिकार दिलाने की जद्दोजहद में कुछ करके दिखा देना शायद इसी को कहते हैं।
आमतौर पर शिया और सुन्नी मसलक के लोग अलग-अलग मस्जिदों में नमाज अदा करते हैं, लेकिन पीजीआई के पास स्थित अंबर मस्जिद में ऐसी कोई बंदिश या अलगाव नहीं है और अब महिलाएं भी नमाज पढ़ने की अधिकारी बनेगी। यहां शिया-सुन्नी एकता के पीछे महिलाओं का बड़ा योगदान है।
पीजीआई ट्रॉमा सेंटर के पास स्थित अंबर मस्जिद का निर्माण साल 1997 में हुआ। मुस्लिम महिला पर्सनल लॉ बोर्ड की अध्यक्ष शाइस्ता अंबर बताती हैं कि मस्जिद बनवाने के लिए उन्होंने जेवर बेचकर जमीन खरीदी। इस मस्जिद के मेन गेट पर संगमरमर पर बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा है कि यहां सभी मसलक के लोग नमाज पढ़ें, इस्तकबाल है। आज यहां सवा सौ से ज्यादा शिया-सुन्नी रोजेदार नमाज पढ़कर एक साथ रोजा खोलते हैं।
शाइस्ता जी ने दोनों मसलक के लोगों के लिए इस शर्त पर मस्जिद की तामीर करवाई कि वे एक साथ यहां अल्लाह की इबादत करेंगे। अंबर मस्जिद का उद्घाटन 2 फरवरी, 1997 को मौलाना अली मियां ने किया था। शाइस्ता जी के मुताबिक, सौर ऊर्जा के पैनल से लैस इस मस्जिद में मिलाद शरीफ के साथ शोहदा-ए-कर्बला का भी जिक्र होता है। मस्जिद के कैंपस में 15 अगस्त और 26 जनवरी को झंडारोहण भी होता है।
सामाजिक समरसता का उदाहरण प्रस्तुत करती है मस्जिद जहां रामनामी दुपट्टा, रुद्राक्ष की माला, गुरु ग्रंथ साहब , आचार्य शर्मा जी द्वारा रचित शांतिकुंज की महत्वपूर्ण पुस्तकें वा लेख के साथ-साथ बाइबल की उपलब्धता सभी धर्मों के सम्मान क जीता जाता उदाहरण प्रस्तुत करती है।
निश्चित रूप से मस्जिद के अंदर पहला कदम रखने का यह मेरा पहला अनुभव यादगार रहा इबादत आप किसी भी धर्म की करिए पर सम्मान सभी धर्मों का हो यह भारत की सहिष्णुता सभ्यता और संस्कार को बनाए रखने के लिए बहुत ही जरूरी है।
“ कुछ बात है कि हस्ती, मिटती नहीं हमारी। सदियों रहा है दुश्मन, दौर-ए-ज़माँ हमारा।। यूनान-ओ- मिस्र-ओ- रोमा, सब मिट गए जहाँ से । ..
.महिलाओं के हक अधिकार के लिए लड़ती एक महिला निश्चित रूप से हम सभी के स्नेह और श्रद्धा का जीवंत उदाहरण प्रस्तुत करती शाइस्ता अंबर चाहे तीन तलाक जैसे कुरीति को खत्म करने की लड़ाई हो या महिलाओं के लिए पूजा स्थानों में जगह दिलाने की बात पूरी मुस्तैदी से अपने कर्तव्य में लगी है निश्चित रूप से यह मेरे लिए सौभाग्य की बात है इस ऐतिहासिक जद्दोजहद में मुझे मेरे नाम की नीव की ईट रखने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।