पार्टी सूत्रों के अनुसार अखिलेश अपने पैतृक गांव सैंफई से मैनपुरी के लिये कुछ ही देर में रवाना होंगे जहां वह करहल विधानसभा के लिये अपना नामांकन पत्र दाखिल करने के बाद जनसंपर्क करेंगे। करहल में चुनाव के तीसरे चरण में 20 फरवरी को मतदान होना है। सैफई से सटे करहल को सपा के लिये सबसे सुरक्षित सीट माना जाता है। उम्मीद जतायी जा रही है कि अगले दो हफ्ते तक मैनपुरी और इटावा सपा के लिये राजनीति का महत्वपूर्ण केन्द्र बना रहेगा।
राजनीतिक जानकारों का कहना है कि करहल से अखिलेश के चुनावी समर में उतरने से समाजवादी बेल्ट माने जाने वाले आठ जिलों की 29 विधानसभा सीटों पर पार्टी अपनी पकड़ को और मजबूत कर सकेगी। इन सीटों में 2012 में जहां सपा सबसे मजबूत बनकर उभरी थी, वहीं 2017 के चुनाव में इस पट्टी में सपा को सर्वाधिक नुकसान भी उठाना पड़ा था।
अखिलेश के करहल विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ने का अर्थ है कि सैफई इन आठ जिलों के चुनाव का केंद्र बनेगी। चुनावी रणनीति लखनऊ में नहीं सैफई में बैठकर बनेगी।
सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव अपने चुनावी अभियान के केंद्र में इटावा और सैफई को ही रखते थे। फिरोजाबाद, एटा, कासगंज, मैनपुरी, इटावा, औरैया, कन्नौज, फर्रुखाबाद कुल आठ जिलों को समाजवादी बेल्ट माना जाता है। यह क्षेत्र प्रख्यात समाजवादी चिंतक डॉ. राममनोहर लोहिया की कर्मभूमि भी रही है। इसी वजह से समाजवादी विचारधारा का सर्वाधिक असर यहां की राजनीति में रहा है।
मुलायम सिंह यादव ने अपनी राजनीति का आधार भी इसी क्षेत्र को बनाया। इन जिलों में अपना प्रभुत्व कायम करके ही वे प्रदेश की राजनीति की मुख्य धुरी बन सके। 2012 के विधानसभा चुनाव में इन आठ जिलों की 29 सीटों पर सपा के पास 25, बसपा और भाजपा के पास एक एक और एक सीट निर्दलीय प्रत्याशी के खाते में गई थी। मैनपुरी से मुलायम, जसवंतनगर से शिवपाल सिंह यादव और कन्नौज से अखिलेश यादव और उनकी पत्नी डिंपल यादव मिलकर इस पूरी बेल्ट के समीकरण साध लेते थे।
2012 के विधानसभा चुनाव में सपा ने इस बेल्ट में अपना दबदबा दिखाते हुए प्रदेश में सरकार बनाई थी। कन्नौज जिले को अपनी कर्मभूमि बनाने वाले अखिलेश यादव सूबे के मुख्यमंत्री बने। 2017 के विधानसभा चुनाव में अखिलेश यादव और उनके चाचा शिवपाल सिंह यादव के बीच उपजे राजनीतिक मतभेदों का इस क्षेत्र के चुनावी समीकरणों पर सबसे ज्यादा बुरा असर पड़ा। चुनाव परिणाम एकदम उलट गए। सपा 25 सीटों से सिर्फ छह सीटों पर सिमट गई। भाजपा एक सीट के मुकाबले 22 सीटों पर सफल रही। समाजवादी बेल्ट में सपा का इतना खराब प्रदर्शन पहले कभी नहीं रहा।
पिछले चुनाव परिणामों से सबक लेते हुए सपा ने इस बार सबसे ज्यादा फोकस अपने इसी राजनीतिक किले को मजबूत बनाने की बनाई है। यही कारण है कि सपा मुखिया अखिलेश करहल से और चाचा शिवपाल सिह यादव जसवंतनगर से चुनाव लड़ेेंगे।
नामांकन के बाद वह करहल क्षेत्र में घर घर जाकर वोट मांगेगे। इस दौरान उनका क्षेत्र में एक रोड शो भी होगा। गौरतलब है कि कांग्रेस ने इस सीट से ज्ञानवती यादव को और बसपा ने कुलदीप नारायण को उम्मीदवार बनाया है। हालांकि इस सीट पर भाजपा के उम्मीदवार का नाम अभी घोषित नहीं हुआ है।