लखनऊ (मानवी मीडिया)कब तक घमंड और स्वार्थ में अलग-अलग बटे रहेंगे कर्मचारी संघठनऔर होता रहेगा पेंशन के नाम पर खिलवाड़*
*किसानों और पुजारियों ने अपने अहित में बने कानूनों को वापस करा लिया .............. यक्षप्रश्न उठता है कर्मचारियों के पेंशन की लडाई का स्तर क्या है*
सर्वविदित है उत्तराखंड चार धाम देवस्थानम प्रबंधन बोर्ड भंग कर दिया गया है और इससे संबंधित अधिनियम विधानसभा की अगली बैठक में वापस ले लिया जाएगा ।देवस्थानम प्रबंधन बोर्ड के खिलाफ हक-हकूकधारियों और पंडा समाज में जिस तरह असंतोष पनप रहा था, उसे देखते हुए धामी की पूर्ववर्ती तीरथ सिंह रावत सरकार ने भी बोर्ड पर कदम पीछे खींचने के संकेत दिए थे। बीते जुलाई माह में मुख्यमंत्री पद संभालने के बाद पुष्कर सिंह धामी ने राज्यसभा के पूर्व सदस्य मनोहरकांत ध्यानी की अध्यक्षता में उच्च स्तरीय समिति गठित की।चुनाव से ठीक पहले सरकार ने टकराव को टालते हुए देवस्थानम बोर्ड पर कदम पीछे खींच लिए।
*...... तो अधिनियम वापस लेने का दौर चल रहा है । तीन कृषि कानून वापस किए जा चुके है।ध्यान रहे देवस्थान प्रबंधन बोर्ड का विरोध तीर्थ पुरोहित कर रहे थे। पुरोहित देवस्थानम प्रबंधन बोर्ड से खुश नहीं थे। यह एक उदाहरण है कि चुनावी वर्ष में केंद्र से लेकर राज्य तक की सरकारें किस प्रकार से झुक रही हैं ।कहावत है झुकता है जमाना झुकाने वाला चाहिए।*
*किसानों ने ऐतिहासिक संघर्ष किया है ।बलिदान दिए हैं, बेमिसाल एकता का प्रदर्शन किया है ।उनके आंदोलन से वर्तमान में किसी भी आंदोलन की तुलना करना उचित नहीं है, किंतु किसानों के आंदोलन ने अन्य संघर्षरत लोगों को रास्ता दिखा दिया है कि संघर्ष अभी भी मायने रखता है।*................
*लेकिन उत्तराखंड के तीर्थ पुरोहित तो संख्या बल में भी बहुत कम है। स्मरण दिला दू कि पिछले माह उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत केदारनाथ धाम गए थे तीर्थ पुरोहितों ने उनकी लात घूंसों से आवभगत की और उन्हें मंदिर में नहीं जाने दिया पुरोहितों ने प्रधानमंत्री के दौरे के पहले भी चेतावनी दी थी किंतु बाद में मुख्यमंत्री के वार्ता करने पर तीर्थ पुरोहितों ने प्रधानमंत्री के कार्यक्रम के समय कोई व्यवधान नहीं डाला। लेकिन चुनाव से घबराई सरकार ने अंततः तीर्थ पुरोहितों के सामने भी घुटने टेक दिये। राज्यों के कर्मचारी और शिक्षक जो पुरानी पेंशन की मांग कर रहे हैं न अपनी एकता का प्रदर्शन कर पा रहे हैं, न ही तमाम कर्मचारी और शिक्षक संघों के पदाधिकारी एक साथ बैठ पा रहा है ।आज जब सरकार सबसे कमजोर दौर से गुजर रही है तब कर्मचारियों और शिक्षकों को यह समझ में नहीं आ पा रहा है कि यही समय है अपनी एकता और शक्ति के प्रदर्शन का। अब चूक गए तो पांच साल कोई पूछने वाला नहीं। पहले ही बहुत देर हो चुकी है। पांच साल बाद इतनी देर हो चुकी होगी कि शायद पुरानी पेंशन की मांग भी मांग पत्र से धीरे-धीरे तिरोहित होने लगे। अभी भी समय है*।
*चंदे और दिखावे से बाहर आकर क्या सभी ट्रेड यूनियन पदाधिकारी अपना अहम किनारे रखकर समय की महती मांग पहचान कर पुरानी पेंशन बहाली के लिए एकजुटता का परिचय देंगे*
वर्तमान किसानों और पुजारियों ने यह सिद्ध कर दिया है कि यदि लक्ष्य के प्रति ईमानदारी से लड़ा जाए तो वह विजय अवश्य मिलती है। *कर्मचारियों की पेंशन लड़ाई में पिछले 17 साल से क्या हुआ इसका जवाब कौन देगा।
रीना त्रिपाठी