लखनऊ, (मानवी मीडिया) राज्य संग्रहालय लखनऊ द्वारा भारत रत्न डॉ० भीमराव अम्बेडकर जी की जयंती की पूर्व संध्या पर आज दिनांक 13 जनवरी 2021 को प्रस्तर कला में बौद्ध धर्म विषयक प्रदर्शनी का आयोजन किया गया। जिसका उद्घाटन अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध शोध संस्थान,उत्तर प्रदेश के अध्यक्ष श्री भदन्त शांति मित्र ने किया। डॉ. भीमराव रामजी अम्बेडकर जिन्हं लोग बाबासाहेब के नाम से भी जानते हैं। उनकी पहचान एक न्यायविद्, अर्थशास्त्री, राजनीतिज्ञ और समाज सुधारक के रूप में होती है। भारत के संविधान के प्रमुख वास्तुकार अम्बेडकर के योगदान को देखते हुये प्रत्येक वर्ष उनके जन्मदिवस को अम्बेडकर जयंती के रूप में मनाया जाता है।
इस अवसर पर राज्य संग्रहालय, लखनऊ द्वारा आयोजित प्रस्तर कला में बौद्ध धर्म विषयक प्रदर्शनी के अन्तर्गत पुरातत्व अनुभाग में संग्रहीत प्रस्तर प्रतिमाओं में बौद्ध धर्म से सम्बन्धित कलाकृतियों एवं मनौती स्तूपों को प्रदर्शित किया गया ह,ै जिससे आम जनमानस को बौद्ध धर्म के प्रतिपादक महात्मा बुद्ध एवं बोधिसत्व के विषय में जानकारी प्राप्त हो सके। प्रदर्शनी में कुषाण काल से मध्यकाल तक की बौद्ध कलाकृतियों को प्रदर्शित किया गया है। बौद्ध मत की स्थापना और बुद्ध की मानवाकार प्रतिमा के निर्माण के बीच लगभग छः सौ वर्षों का अन्तराल था। बुद्ध एवं बोधिसत्व की प्रतिमाओं का निर्माण कुषाण काल में प्रारम्भ हुआ। कुषाण काल में मथुरा एवं गान्धार दो मुख्य कला केन्द्र थे, जहां से बौद्ध धर्म से सम्बन्धित असंख्य प्रतिमाओं का निर्माण किया गया।
मुख्य अतिथि भदन्त शांति मित्र ने बताया कि गौतम बुद्ध द्वारा प्रतिपादित बौद्ध धर्म में बुद्ध ने प्रत्येक व्यक्ति को स्वयं का दीपक बनने की शिक्षा दी। इसलिये उन्होंने अप्प दीपो भव का उपदेश दिया। उन्होंने बताया कि जातियां हमने बनायी हैं किसी देवी-देवता ने नहीं। सम्पूर्ण सृष्टि का धर्म एक है। देश, काल, परिस्थिति के अनुसार महापुरूषों द्वारा बनाये गये मार्ग धार्मिक मत हैं, पंथ हैं। उन्होंने जोर देते हुये कहा कि धर्म निरपेक्ष शब्द का प्रयोग करना अपराध है। पंथ निरपेक्ष, धर्म सापेक्ष ही सही होता है। भारत के संविधान में भी पंथ निरपेक्ष शब्द है। धर्म निरपेक्ष कहना धम्मं शरणं गच्छामि का अनादर है।
राज्य संग्रहालय के निदेशक डाॅ0 आनन्द कुमार सिंह ने बताया कि बाबा साहब डाॅ0 भीमराव अम्बेडकर की विचारधारा के मूल में सामाजिक समानता निहित है। अतः व्यक्ति को इन विचारधाराओेें को जीवन के मिशन के रूप में स्वीकार करना चाहिए। राज्य संग्रहालय लखनऊ में प्रत्येक वर्ष इस प्रकार के आयोजन किये जाते रहे हैं। इन अवसर पर इस प्रदर्शनी के माध्यम से आरक्षित संकलन से मूल कलाकृतियों को प्रदर्शित करने का एकमात्र उद्देेश्य आम जनमानस को बुद्ध एवं बौद्ध धर्म से परिचित कराना एवं आरक्षित संकलन में संग्रहीत कलाकृतियों को दर्शकों के अवलोकनार्थ प्रदर्शित करना है। संग्रहालय ज्ञान का वातायन, अतीत का संरक्षक एवं भविष्य का शिक्षक हैै। यह अनौपचारिक शिक्षा का केंद्र भी है। यह प्रदर्शनी दिनांक 14 मई, 2021 तक दर्शकों के अवलोकनार्थ खुली रहेगी।