लखनऊ,।(मानवी मीडिया) बसपा शासनकाल में हुए 1400 करोड़ रुपये के बहुचर्चित स्मारक घोटाले की विजिलेंस जांच में लंबे समय के बाद तेजी आई है। विजिलेंस ने घोटाले में पहली बार भूमिका सामने आने पर राजकीय निर्माण निगम के चार तत्कालीन बड़े अधिकारियों को गिरफ्तार किया है। इनमें तत्कालीन वित्तीय परामर्शदाता विमल कांत मुदगल, महाप्रबंधक तकनीकी एसके त्यागी, महाप्रबंधक सोडिक कृष्ण कुमार व इकाई प्रभारी रामेश्वर शर्मा शामिल हैं। यह चारों सेवानिवृत्त हो चुके हैं। आरोपित तत्कालीन अधिकारियों के विरुद्ध अभियोजन स्वीकृति मिलने के बाद विजिलेंस ने यह कार्रवाई की है। विजिलेंस करीब सात साल से मामले की जांच कर रही है। करीब छह माह पूर्व विजिलेंस ने छह आरोपितों के विरुद्ध कोर्ट में आरोप पत्र दाखिल किया था। सभी छह आरोपितों ने हाई कोर्ट से अरेस्ट स्टे हासिल कर लिया था। लिहाजा उनकी गिरफ्तारी नहीं हो सकी थी। विजिलेंस की जांच के घेरे में आए अन्य अधिकारियों व ठेकेदारों की मुश्किलें भी जल्द बढ़ सकती हैं।मायावती शासनकाल में हुए इस घोटाले की लोकायुक्त से लेकर पुलिस व विजिलेंस के स्तर पर हुई जांचों में सरकारी धन के दुरुपयोग की कहानी सामने आई है। विजिलेंस ने निर्माण निगम के दस्तावेजों की गहनता से छानबीन की, जिसमें कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं। पूर्व में हुई जांच में स्मारकों में लगे पत्थरों की कीमत, कङ्क्षटग व ढुलाई में भारी अनियमितता सामने आई थी। विजिलेंस ने पूर्व में खनन निदेशालय के तत्कालीन संयुक्त निदेशक सुहैल अहमद फारुखी व निर्माण निगम के तत्कालीन इकाई प्रभारी अजय कुमार समेत छह आरोपितों के विरुद्ध कोर्ट में आरोप पत्र दाखिल किया था।सूत्रों के मुताबिक जांच में यह भी सामने आया कि तत्कालीन अधिकारियों ने पत्थर की सप्लाई व कटिंग के कामों को लेकर उच्चस्तरीय कमेटी के निर्णय के विपरीत फैसले लिए थे, जिससे निर्माण कार्य की लागत कई गुना बढ़ गई थी। दूसरी ओर प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) भी स्मारक घोटाले में मनी लांड्रिंग का केस दर्ज कर छानबीन कर रहा है। ईडी ने बीते दिनों स्मारक घोटाले के मामले में सात ठिकानों पर ताबड़तोड़ छापेमारी भी की थी।सपा शासनकाल में स्मारक घोटाले की जांच सबसे पहले लोकायुक्त संगठन ने की थी। लोकायुक्त ने मई, 2013 में अपनी जांच रिपोर्ट सरकार को सौंपी थी, जिसमें करीब 1400 करोड़ रुपये का घोटाला सामने आया था। लोकायुक्त ने अपनी रिपोर्ट में एसआइटी गठित कर घोटाले की विस्तृत जांच कराने की संस्तुति की थी। साथ ही घोटाले से जुड़े आरोपितों की संपत्तियों की जांच व पत्थरों की सप्लाई करने वाली फर्मों की जांच कराने समेत कई अन्य अहम सिफारिशें भी की गई थीं।विजिलेंस ने लखनऊ के गोमतीनगर थाने में एक जनवरी, 2014 को स्मारक घोटाले की एफआइआर दर्ज कराई थी। एफआइआर में बसपा के तत्कालीन मंत्री नसीमुद्दीन सिद्दीकी व बाबू सिंह कुशवाहा समेत कुल 199 आरोपितों को शामिल किया गया था।
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Saturday, April 10, 2021
राजकीय निर्माण निगम के चार पूर्व अधिकारी गिरफ्तार
लखनऊ,।(मानवी मीडिया) बसपा शासनकाल में हुए 1400 करोड़ रुपये के बहुचर्चित स्मारक घोटाले की विजिलेंस जांच में लंबे समय के बाद तेजी आई है। विजिलेंस ने घोटाले में पहली बार भूमिका सामने आने पर राजकीय निर्माण निगम के चार तत्कालीन बड़े अधिकारियों को गिरफ्तार किया है। इनमें तत्कालीन वित्तीय परामर्शदाता विमल कांत मुदगल, महाप्रबंधक तकनीकी एसके त्यागी, महाप्रबंधक सोडिक कृष्ण कुमार व इकाई प्रभारी रामेश्वर शर्मा शामिल हैं। यह चारों सेवानिवृत्त हो चुके हैं। आरोपित तत्कालीन अधिकारियों के विरुद्ध अभियोजन स्वीकृति मिलने के बाद विजिलेंस ने यह कार्रवाई की है। विजिलेंस करीब सात साल से मामले की जांच कर रही है। करीब छह माह पूर्व विजिलेंस ने छह आरोपितों के विरुद्ध कोर्ट में आरोप पत्र दाखिल किया था। सभी छह आरोपितों ने हाई कोर्ट से अरेस्ट स्टे हासिल कर लिया था। लिहाजा उनकी गिरफ्तारी नहीं हो सकी थी। विजिलेंस की जांच के घेरे में आए अन्य अधिकारियों व ठेकेदारों की मुश्किलें भी जल्द बढ़ सकती हैं।मायावती शासनकाल में हुए इस घोटाले की लोकायुक्त से लेकर पुलिस व विजिलेंस के स्तर पर हुई जांचों में सरकारी धन के दुरुपयोग की कहानी सामने आई है। विजिलेंस ने निर्माण निगम के दस्तावेजों की गहनता से छानबीन की, जिसमें कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं। पूर्व में हुई जांच में स्मारकों में लगे पत्थरों की कीमत, कङ्क्षटग व ढुलाई में भारी अनियमितता सामने आई थी। विजिलेंस ने पूर्व में खनन निदेशालय के तत्कालीन संयुक्त निदेशक सुहैल अहमद फारुखी व निर्माण निगम के तत्कालीन इकाई प्रभारी अजय कुमार समेत छह आरोपितों के विरुद्ध कोर्ट में आरोप पत्र दाखिल किया था।सूत्रों के मुताबिक जांच में यह भी सामने आया कि तत्कालीन अधिकारियों ने पत्थर की सप्लाई व कटिंग के कामों को लेकर उच्चस्तरीय कमेटी के निर्णय के विपरीत फैसले लिए थे, जिससे निर्माण कार्य की लागत कई गुना बढ़ गई थी। दूसरी ओर प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) भी स्मारक घोटाले में मनी लांड्रिंग का केस दर्ज कर छानबीन कर रहा है। ईडी ने बीते दिनों स्मारक घोटाले के मामले में सात ठिकानों पर ताबड़तोड़ छापेमारी भी की थी।सपा शासनकाल में स्मारक घोटाले की जांच सबसे पहले लोकायुक्त संगठन ने की थी। लोकायुक्त ने मई, 2013 में अपनी जांच रिपोर्ट सरकार को सौंपी थी, जिसमें करीब 1400 करोड़ रुपये का घोटाला सामने आया था। लोकायुक्त ने अपनी रिपोर्ट में एसआइटी गठित कर घोटाले की विस्तृत जांच कराने की संस्तुति की थी। साथ ही घोटाले से जुड़े आरोपितों की संपत्तियों की जांच व पत्थरों की सप्लाई करने वाली फर्मों की जांच कराने समेत कई अन्य अहम सिफारिशें भी की गई थीं।विजिलेंस ने लखनऊ के गोमतीनगर थाने में एक जनवरी, 2014 को स्मारक घोटाले की एफआइआर दर्ज कराई थी। एफआइआर में बसपा के तत्कालीन मंत्री नसीमुद्दीन सिद्दीकी व बाबू सिंह कुशवाहा समेत कुल 199 आरोपितों को शामिल किया गया था।
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