नई दिल्ली (मानवी मीडिया) कोरोना से पूरी दूनिया में हाहाकार है। इस महामारी ने हमारे जीवन के हर पहलू को प्रभावित किया है। देश में रफ्तार की रीढ़् रेलवे भी इससे अछूता नहीं रहा। हालांकि नाम और नंबर बदलकर ट्रेनों का संचालन तो शुरू कर दिया गया लेकिन रेलवे के इतिहास में पहली बार वार्षिक टाइम टेबल पर ग्रहण लग गया। हालात ऐसे बने कि रेलवे 2020 में ट्रेनों की समय सारिणी तक नहीं छाप सका। जबकि 1934 से ही यह हर साल जून तक प्रकाशित होती रही है।
रेलवे के जानकारों के मुताबिक 1934 से टाइम-टेबल का प्रकाशन बदस्तूर जारी है। आमतौर पर यह जुलाई तक छपता है। क्योंकि रेलवे में नई समय सारिणी पहली जुलाई से ही लागू होती रही है। ऐसे में नई समय सारिणी इससे पहले ही स्टालों पर बिकने लगती थी। किसी साल कोई दिक्कत आई तो भी आमतौर पर अगस्त तक इसका प्रकाशन हो जाता था।इस बार मई से ही कोरोना संक्रमण पीक पर रहा। ट्रेनों के पहिये थमे रहे। अनलॉक में ट्रेनें शुरू भी हुईं तो उन्हें स्पेशल के रूप में चलाया जा रहा है। सूत्र बताते हैं कि स्पेशल ट्रेनों का किराया बढ़ाकर रेलवे घाटे की भरपाई करने की कोशिशों में जुटा है। ट्रेनों का संचालन कब तक पूरी तरह सामान्य होगा, इस पर तस्वीर अभी तक साफ नहीं है। समय सारिणी न छपने की एक वजह यह भी बताई जा रही है।
टाइम टेबल में स्थानीय ट्रेनों की एक-एक जानकारी होती है। ट्रेनों की टाइमिंग, फेरों के साथ ही शिकायतों के लिए टॉल-फ्री नम्बर भी अंकित रहते हैं। पूर्वोत्तर रेलवे के पूर्व मुख्य परिचालन प्रबंधक राकेश त्रिपाठी बताते हैं कि रेलवे टाइम टेबल की बहुत ही अहमियत होती है। जहां तक मेरी जानकारी है, मैंने 37 साल रेल में सेवा दी है, इस दौरान हर साल नियमित टाइम टेबल प्रकाशित होता रहा है।
आजादी से पहले एनईआर या आसपास के
अन्य रेलवे के पास टाइम टेबल प्रकाशन की व्यवस्था नहीं थी। उस समय टाइम
टेबल ढाका से छपकर आता था। यहां एनईआर के रिकॉर्ड में ढाका से प्रकाशित
1934 का टाइम टेबल आज भी मौजूद है।