कहते हैं मानव प्रजाति की जीवन कसौटी अच्छी शिक्षा और अच्छे स्वास्थ्य पर टिकी है। इसी बात को ध्यान में रखते हुए 1990 के बाद हर वर्ष संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम द्वारा मानव विकास सूचकांक जारी किया जाता है। यह सूचकांक किसी राष्ट्र में स्वास्थ्य, शिक्षा और जीवन के स्तर का मापन है। संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) द्वारा जारी किए गए वर्ष 2020 के मानव विकास सूचकांक (एचडीआई) में 189 देशों में भारत को 131वां स्थान प्राप्त हुआ है। भारत पिछले साल की अपेक्षाकृत दो पायदान नीचे खिसक गया है। जबकि भारत की वर्ष 2018 के मानव विकास सूचकांक में रैंक 130 थी।इस सूचकांक के माध्यम से यूएनडीपी किसी राष्ट्र में स्वास्थ्य, शिक्षा और जीवन के स्तर का मापन करता है।वर्ष 2020 के मानव विकास सूचकांक (एचडीआई) की रिपोर्ट के अनुसार, क्रय शक्ति समता (पीपीपी) के आधार पर 2018 में भारत की प्रति व्यक्ति सकल राष्ट्रीय आय 6,829 अमेरिकी डॉलर थी जो 2019 में गिरकर 6,681 डॉलर हो गई है।इसके अतिरिक्त , इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि वर्ष 2019 में भारतीयों की जीवन प्रत्याशा 69.7 वर्ष थी। भारत की एचडीआई वैल्यू 0.645 है।रिपोर्ट में नॉर्वे सबसे ऊपर रहा और उसके बाद आयरलैंड, स्विट्जरलैंड, हांगकांग और आइसलैंड का स्थान है। भारत के पड़ोसी देशों में भूटान 129वें स्थान पर, बांग्लादेश 133वें स्थान पर, नेपाल 142वें स्थान पर और पाकिस्तान 154वें स्थान पर रहा है। देश पहले ही बढ़़ती जनसंख्या, बेरोजगारी, भुखमरी, कुपोषण, शिशु मृत्यु जैसी समस्याओं से तो पहले ही जूझ रहा था। जो कि मानव सूचकांक के लुढ़कने का कारण बनी हुई थी परंतु इस बार इन सभी समस्याए उस समय फीकी पड़ गई जब वूहान से आए एक सूक्ष्म जीव ने भारत देश में दस्तक दी। मार्च में लगे लॉकडॉउन ने बहुत से लोगों को घर पर बैठने को मजबूर किया। लाखों लोग बेरोजगार हुए। देश पहले ही बेरोजगारी की दर से गुजर रहा था जो कि महामारी के कारण और बढ़़ गयी।भारत ही नहीं भारत से बाहर काम करने वाले लोग भी महामारी के चलते अपनी नौकरी छोडऩे को मजबूर हुए परिणाम स्वरूप बाहर से आने वाले रेमिटेंस में भी कमी देखने को मिली। कारखानों का काम बन्द होने से टैक्स कॉलेक्शंन मे कमी आयी जिससे सरकार की आमदनी भी घटी। जिसका परिणाम यह हुआ कि सरकार ज्यादा सरकारी योजनाओ और सब्सीडी में पैसा खर्च नहीं कर सकी,परिणाम स्वरूप हाशिये पर खड़े लोग जो पहले से ही बेरोजगार हो गए थे उन्हें जीवन यापन में भारी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। हालांकि सरकार ने अपनी जिम्मेवारी समझते हुए बीस हजार करोड़ का पैकेज रिलीज तो किया, परंतु महामारी और लॉकडॉउन से हुए नुक्सान को इतनी आसानी से भरना कठिन था। कोरोना का ग्रहण शिक्षा रूपी सूरज पर ऐसा लगा कि लॉकडॉउन खत्म होने के बाद भी जब सभी क्षेत्र पटरी पर उतरने लगे तो भी शिक्षण संस्थान पिंजरे में ही कैद रहे। सकूली शिक्षा ने ऑनलाईन शिक्षा का रूप लिया। अत: एक वर्ग जो की सभी संसाधनों से सम्पन्न था ऑनलाइन शिक्षा का फायदा उठाने के साथ निरंतर आगे बढ़ता रहा, परंतु अंतिम पंक्ति पे खड़ा एक ऐसा वर्ग जो कि विभिन्न तरह के संसाधनों से दूर है ऑनलाइन शिक्षा से विमुख रहा। साथ ही ताले में कैद स्कूलों और शिक्षण संस्थानों की ग्रोस एनरोल्मेंट पे भी महामारी का प्रकोप जारी रहा। लॉकडॉउन के समय मजदूरों के पलायन का जो सिलसिला जारी हुआ उस कारण भी बहुत से छात्र स्कूल छोडऩे पर विवश हुए। फलस्वरूप इस सूचक का नकारात्मक असर मानव विकास सूचकांक पर पड़ा। स्वास्थ्य क्षेत्र में भारत पहले से ही जूझ रहा था, साफ हवा, पानी से कई तरह के रोगों से लड़ते देश में जब अचानक वूहान से आये सुक्ष्मजीव से निपटने के लिए हमारे पास न पर्याप्त संस्थान थे न पर्याप्त साधन। संक्रमण के मामलों में जैसे -जैसे इजाफा होता रहा बाल मृत्यु दर में भी वृद्धि होती रही। क्योंकि वायरस से सबसे ज्यादा खतरा भी बच्चों और बुजुर्गों को ही था। साथ ही लॉकडॉउन के समय संस्थागत प्रसव में भी कमी आई। इसका सबसे बड़ा कारण था गाडिय़ों की आवाजाही पे रोक और लॉकडॉउन के सख्त नियम। फलस्वरूप शिशु मृत्यु दर में वृद्धि हुई और मानव विकास सूचकांक का यह मानक भी नीचे लुढ़का। इस वर्ष पहली बार संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) ने प्रत्येक देश के प्रति व्यक्ति कार्बन उत्सर्जनऔर उसके मैटेरियल फुटप्रिंट के कारण होने वाले प्रभाव को दर्शाने के लिए एक नई मीट्रिक की शुरुआत की है। यह वस्तुओं को बनाने के लिए और सेवाओं का उपभोग करने के लिए उपयोग किए जाने वाले जीवाश्म ईंधन, धातुओं और अन्य संसाधनों की मात्रा को मापता है। यूएनडीपी के मुताबिक अगर इस नई मीट्रिक को शामिल करते हुए भारत की स्थिति देखी जाएगी तो भारत वर्ष 2020 के मानव विकास सूचकांक (एचडीआई) में 8 पायदान ऊपर पहुँच जाएगा। इससे यह अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि भारत ने स्वच्छ ऊर्जा के क्षेत्र में अच्छा कार्य करके ग्रीन हाउस गैस के उत्सर्जन में कमी की है। अत: मानव विकास सूचकांक नीचे गिरने का कारण बेरोजगारी,बढ़़ती हुई जनसंख्या और कोरोना वायरस से उठा धुँआ,है जिसने भारत की मानव विकास सूचकांक की रैंकिंग को धुंधला किया है। सरकार को बढ़ती जनसंख्या को ध्यान में रखते हुए शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार के ऐसे मॉडल को अपनाने की ज़रूरत है जो तीनों क्षेत्रों में साम्जांस्य बिठा सके और भारत की रैंक मानव विकास सूचकांक में बेहतर बना सके।
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Thursday, December 24, 2020
गिरता मानव विकास सूचकांक और उठते सवाल
कहते हैं मानव प्रजाति की जीवन कसौटी अच्छी शिक्षा और अच्छे स्वास्थ्य पर टिकी है। इसी बात को ध्यान में रखते हुए 1990 के बाद हर वर्ष संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम द्वारा मानव विकास सूचकांक जारी किया जाता है। यह सूचकांक किसी राष्ट्र में स्वास्थ्य, शिक्षा और जीवन के स्तर का मापन है। संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) द्वारा जारी किए गए वर्ष 2020 के मानव विकास सूचकांक (एचडीआई) में 189 देशों में भारत को 131वां स्थान प्राप्त हुआ है। भारत पिछले साल की अपेक्षाकृत दो पायदान नीचे खिसक गया है। जबकि भारत की वर्ष 2018 के मानव विकास सूचकांक में रैंक 130 थी।इस सूचकांक के माध्यम से यूएनडीपी किसी राष्ट्र में स्वास्थ्य, शिक्षा और जीवन के स्तर का मापन करता है।वर्ष 2020 के मानव विकास सूचकांक (एचडीआई) की रिपोर्ट के अनुसार, क्रय शक्ति समता (पीपीपी) के आधार पर 2018 में भारत की प्रति व्यक्ति सकल राष्ट्रीय आय 6,829 अमेरिकी डॉलर थी जो 2019 में गिरकर 6,681 डॉलर हो गई है।इसके अतिरिक्त , इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि वर्ष 2019 में भारतीयों की जीवन प्रत्याशा 69.7 वर्ष थी। भारत की एचडीआई वैल्यू 0.645 है।रिपोर्ट में नॉर्वे सबसे ऊपर रहा और उसके बाद आयरलैंड, स्विट्जरलैंड, हांगकांग और आइसलैंड का स्थान है। भारत के पड़ोसी देशों में भूटान 129वें स्थान पर, बांग्लादेश 133वें स्थान पर, नेपाल 142वें स्थान पर और पाकिस्तान 154वें स्थान पर रहा है। देश पहले ही बढ़़ती जनसंख्या, बेरोजगारी, भुखमरी, कुपोषण, शिशु मृत्यु जैसी समस्याओं से तो पहले ही जूझ रहा था। जो कि मानव सूचकांक के लुढ़कने का कारण बनी हुई थी परंतु इस बार इन सभी समस्याए उस समय फीकी पड़ गई जब वूहान से आए एक सूक्ष्म जीव ने भारत देश में दस्तक दी। मार्च में लगे लॉकडॉउन ने बहुत से लोगों को घर पर बैठने को मजबूर किया। लाखों लोग बेरोजगार हुए। देश पहले ही बेरोजगारी की दर से गुजर रहा था जो कि महामारी के कारण और बढ़़ गयी।भारत ही नहीं भारत से बाहर काम करने वाले लोग भी महामारी के चलते अपनी नौकरी छोडऩे को मजबूर हुए परिणाम स्वरूप बाहर से आने वाले रेमिटेंस में भी कमी देखने को मिली। कारखानों का काम बन्द होने से टैक्स कॉलेक्शंन मे कमी आयी जिससे सरकार की आमदनी भी घटी। जिसका परिणाम यह हुआ कि सरकार ज्यादा सरकारी योजनाओ और सब्सीडी में पैसा खर्च नहीं कर सकी,परिणाम स्वरूप हाशिये पर खड़े लोग जो पहले से ही बेरोजगार हो गए थे उन्हें जीवन यापन में भारी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। हालांकि सरकार ने अपनी जिम्मेवारी समझते हुए बीस हजार करोड़ का पैकेज रिलीज तो किया, परंतु महामारी और लॉकडॉउन से हुए नुक्सान को इतनी आसानी से भरना कठिन था। कोरोना का ग्रहण शिक्षा रूपी सूरज पर ऐसा लगा कि लॉकडॉउन खत्म होने के बाद भी जब सभी क्षेत्र पटरी पर उतरने लगे तो भी शिक्षण संस्थान पिंजरे में ही कैद रहे। सकूली शिक्षा ने ऑनलाईन शिक्षा का रूप लिया। अत: एक वर्ग जो की सभी संसाधनों से सम्पन्न था ऑनलाइन शिक्षा का फायदा उठाने के साथ निरंतर आगे बढ़ता रहा, परंतु अंतिम पंक्ति पे खड़ा एक ऐसा वर्ग जो कि विभिन्न तरह के संसाधनों से दूर है ऑनलाइन शिक्षा से विमुख रहा। साथ ही ताले में कैद स्कूलों और शिक्षण संस्थानों की ग्रोस एनरोल्मेंट पे भी महामारी का प्रकोप जारी रहा। लॉकडॉउन के समय मजदूरों के पलायन का जो सिलसिला जारी हुआ उस कारण भी बहुत से छात्र स्कूल छोडऩे पर विवश हुए। फलस्वरूप इस सूचक का नकारात्मक असर मानव विकास सूचकांक पर पड़ा। स्वास्थ्य क्षेत्र में भारत पहले से ही जूझ रहा था, साफ हवा, पानी से कई तरह के रोगों से लड़ते देश में जब अचानक वूहान से आये सुक्ष्मजीव से निपटने के लिए हमारे पास न पर्याप्त संस्थान थे न पर्याप्त साधन। संक्रमण के मामलों में जैसे -जैसे इजाफा होता रहा बाल मृत्यु दर में भी वृद्धि होती रही। क्योंकि वायरस से सबसे ज्यादा खतरा भी बच्चों और बुजुर्गों को ही था। साथ ही लॉकडॉउन के समय संस्थागत प्रसव में भी कमी आई। इसका सबसे बड़ा कारण था गाडिय़ों की आवाजाही पे रोक और लॉकडॉउन के सख्त नियम। फलस्वरूप शिशु मृत्यु दर में वृद्धि हुई और मानव विकास सूचकांक का यह मानक भी नीचे लुढ़का। इस वर्ष पहली बार संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) ने प्रत्येक देश के प्रति व्यक्ति कार्बन उत्सर्जनऔर उसके मैटेरियल फुटप्रिंट के कारण होने वाले प्रभाव को दर्शाने के लिए एक नई मीट्रिक की शुरुआत की है। यह वस्तुओं को बनाने के लिए और सेवाओं का उपभोग करने के लिए उपयोग किए जाने वाले जीवाश्म ईंधन, धातुओं और अन्य संसाधनों की मात्रा को मापता है। यूएनडीपी के मुताबिक अगर इस नई मीट्रिक को शामिल करते हुए भारत की स्थिति देखी जाएगी तो भारत वर्ष 2020 के मानव विकास सूचकांक (एचडीआई) में 8 पायदान ऊपर पहुँच जाएगा। इससे यह अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि भारत ने स्वच्छ ऊर्जा के क्षेत्र में अच्छा कार्य करके ग्रीन हाउस गैस के उत्सर्जन में कमी की है। अत: मानव विकास सूचकांक नीचे गिरने का कारण बेरोजगारी,बढ़़ती हुई जनसंख्या और कोरोना वायरस से उठा धुँआ,है जिसने भारत की मानव विकास सूचकांक की रैंकिंग को धुंधला किया है। सरकार को बढ़ती जनसंख्या को ध्यान में रखते हुए शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार के ऐसे मॉडल को अपनाने की ज़रूरत है जो तीनों क्षेत्रों में साम्जांस्य बिठा सके और भारत की रैंक मानव विकास सूचकांक में बेहतर बना सके।
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