प्रेस को अपने आवश्यक टिप्पणियों और विचारों के साथ समाचार सामग्री प्रकाशित करने का अधिकार - हाईकोर्ट       - मानवी मीडिया

निष्पक्ष एवं निर्भीक

.

Breaking

Post Top Ad

Post Top Ad

Monday, November 16, 2020

प्रेस को अपने आवश्यक टिप्पणियों और विचारों के साथ समाचार सामग्री प्रकाशित करने का अधिकार - हाईकोर्ट      

नई दिल्ली (मानवी मीडिया) 2018 में भी सुप्रीम कोर्ट ने सहनशील बनने की सलाह दी थी - एड किशन भावनानी*  गोंदिया - आज के युग में विश्व के किसी भी कोने में कोई भी गतिविधि होती है *तो हमे चंद क्षणों में उसकी जानकारी मिल जाती है और यह संभव हो पाता है हमारी इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के द्वारा और फिर परत दर परत लिखित रूप में हमे उपलब्ध हो पाता है*। प्रिंट मीडिया द्वारा, लेकिन अनेक बार कुछ ग़लत फहमियां, असहनशीलता या किन्हीं अन्य भ्रांतियों व परिस्थितियों वश कुछ भूल चूक हो जाती है जिसमें लोकतंत्र के चौथे स्तंभ को अदालतों में घसीटा जाता है और उसमें एक मानहानि का दावा ठोक दिया जाता है। इसी विषय को लेकर शुक्रवार दिनांक *13 नवंबर 2020 को एक केस केरला हाईकोर्ट (एर्नाकुलम) के समक्ष एक सदस्यीय बेंच न्यायमूर्ति पी सोमाराजन के समक्ष क्रिमिनल (अन्य) क्रमांक 7758/2016 जो कि 350/2016 सीजेएम से उदय हुआ था, आया और माननीय न्यायमूर्ति ने अपने 6 पृष्ठों और 4 प्वाइंटों में अपना आदेश सुनाया कि मुख्य संपादक, प्रबंध संपादक और प्रकाशक के खिलाफ दर्ज मानहानि की शिकायत को रद्द कर दिया है*। न्यायमूर्ति पी. सोमराजन ने विचार व्यक्त किया कि प्रेस को अपने आवश्यक टिप्पणियों और विचारों के साथ एक समाचार पत्र प्रकाशित करने का अधिकार है।इस तरह के अधिकार को तब तक हराया नहीं जा सकता जब तक कि मालाफिड अपने चेहरे पर स्पष्ट रूप से न दिखाई दें और लोक हित या सार्वजनिक हित के मामले से संबंधित नहीं हो.न्यायालय ने कहा कि समाचार सामग्री की तिरस्कारपूर्ण प्रवृत्ति, यदि उसका संबंध सत्य के आरोप से हो, जिसके लिए जनता के हित के लिए प्रकाशन की आवश्यकता है, मानहानि के अपराध को आकर्षित नहीं करेगी। शिकायत शिकायतकर्ता (आर. चंद्रशेकरन) तथा तीन अन्य के विरुद्ध सतर्कता रिपोर्ट के बारे में दैनिक प्रकाशित समाचार के विरुद्ध थी।शिकायत की संज्ञान लेते हुए मजिस्ट्रेट के आदेश के खिलाफ संपादकों और प्रकाशकों ने उच्च न्यायालय से संपर्क किया। अदालत ने, शिकायतकर्ता को संदर्भित किया और नोट किया कि शिकायतकर्ता को समाचार की मद में अभियुक्त के रूप में निर्दिष्ट किया गया था जिसमें रिपोर्ट का सही संस्करण था. *न्यायाधीश ने यह भी नोट किया कि उनके खिलाफ एक अपराध दर्ज किया गया था और बाद में एक संदर्भ रिपोर्ट प्रस्तुत की गई थी। अदालत ने कहा : आई पी सी की धारा 499 के प्रथम उपबंध को एक लोकतांत्रिक व्यवस्था में व्यापक प्रचार मिला है और एक समाचार वस्तु को अपने आवश्यक टिप्पणियों और विचारों के साथ प्रकाशित करने का अधिकार है*, यद्यपि कभी-कभी अवमानपूर्ण होने पर भी, पराजित नहीं किया जा सकता, जब तक कि मालाफिड अपने चेहरे पर स्पष्ट रूप से न दिखाई दें और लोक हित या लोक कल्याण के विषय में नहीं।समाचार मद की अवमानना, यदि यह सत्य के आरोप के साथ जुड़ा हुआ है, जिसके लिए सार्वजनिक हित के लिए प्रकाशन की आवश्यकता है, अपराध को आकर्षित नहीं करेगा और उसमें प्रथम अपवाद के साथ आई पी सी की धारा 499 को आकर्षित करने की आवश्यकता के संबंध में कोई गलतफहमी नहीं होगी.प्रकाशित समाचार आइटम इसलिए आईपीसी की धारा 499 के तहत परिभाषित मानहानि के अपराध को आकर्षित नहीं करेगा। अदालत ने आगे कहा कि इस मामले में निजी शिकायत वास्तव में चौथे संपत्ति में निहित गंभीर कार्य को हराने के लिए है.न्यायाधीश ने, आपराधिक कार्यवाही को रद्द करते हुए आगे कहा: इससे पहले भी दिनांक 9 जनवरी 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले में स्वताह संज्ञान लेकर कहा था कि प्रेस के बोलने की और अभिव्यक्ति की आजादी होनी चाहिए। *प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर और न्यायमूर्ति धनन्जय वाई चन्द्रचूड़ की तीन सदस्यीय खंडपीठ ने एक पत्रकार और मीडिया हाउस के खिलाफ मानहानि की शिकायत निरस्त करने के पटना हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर विचार करने से इनकार करते हुये कीं थी।* पीठ ने कहा था, ‘लोकतंत्र में, आपको (याचिकाकर्ता) सहनशीलता सीखनी चाहिए. किसी कथित घोटाले की रिपोर्टिंग करते समय उत्साह में कुछ गलती हो सकती है. परंतु हमें प्रेस को पूरी तरह से बोलने और अभिव्यक्ति की आजादी देनी चाहिए. कुछ गलत रिपोर्टिंग हो सकती है. इसके लिये उसे मानहानि के शिकंजे में नहीं घेरना चाहिए.’ कथित घोटाले की गलत रिपोर्टिंग में मानहानि का केस नहीं बनता। न्यायालय ने मानहानि के बारे में दंण्डात्मक कानून को सही ठहराने संबंधी अपने पहले के फैसले का जिक्र करते हुये कहा था कि यह प्रावधान भले ही सांविधानिक हो परंतु किसी घोटाने के बारे में कथित गलत रिपोर्टिंग मानहानि का अपराध नहीं बनती है। इस मामले में एक महिला ने एक खबर की गलत रिपोर्टिंग प्रसारित करने के लिये एक पत्रकार के खिलाफ निजी मानहानि की शिकायत निरस्त करने के उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती दी थी. महिला का कहना था कि गलत रिपोर्टिग से उसका और उसके परिवार के सदस्यों की बदनामी हुयी है। *यह मामला बिहार औद्योगिक क्षेत्र विकास प्राधिकरण द्वारा बिहिया औद्योगिक क्षेत्र में इस महिला को खाद्य प्रसंस्करण इकाई लगाने के लिये भूमि आबंटन में कथित अनियमित्ताओं के बारे में अप्रैल 2010 में प्रसारित खबर को लेकर था*। अतः उपरोक्त पूरे मामले पर अगर हम नजर डालें तो हम कह सकते हैं कि प्रेस लोकतंत्र का चौथा स्तंभ है जिसका सम्मान सब करते हैं। - *कर विशेषज्ञ एड किशन भावनानी गोंदिया (महाराष्ट्र)*


Post Top Ad