सत्ता की चाबी हमेशा रामविलास पासवान के हाथ में रही!     संपादकीय       - मानवी मीडिया

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Monday, October 12, 2020

सत्ता की चाबी हमेशा रामविलास पासवान के हाथ में रही!     संपादकीय      

दलित राजनीति के पुरोधा एवं गरीबों के हितचिंतक रामविलास पासवान को राजनीति का पंडित कहे तो गलत नही होगा।कब किसकी सरकार बनेगी?किस पार्टी से गठबंधन करने में फायदा है? सत्ता की कुर्सी कैसे सुरक्षित रह सकती है?इन सब सवालो के जवाब रामविलास पासवान के मस्तिष्क में होते थे और वे राजनीति की हवा का रुख भांपकर ऐसा गठबंधन करते थे कि कम सांसद होने के बाद भी उनकी सत्ता में कुर्सी बनी रहती थी।वही केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान अब हमारे बीच नही है,उनका 74 वर्ष की आयु में निधन हो गया है। उनके सम्मान में एक दिन के राजकीय शोक की घोषणा की गई है और इस दौरान तिरंगा आधा झुका रहा। उनके पुत्र और लोक जनशक्ति पार्टी के अध्यक्ष चिराग पासवान ने पिता के निधन की सूचना साझा करते हुए ट्वीट किया, पापा....अब आप इस दुनिया में नहीं हैं लेकिन मुझे पता है आप जहां भी हैं हमेशा मेरे साथ हैं। मिस यू पापा।  लोजपा के संस्थापक और उपभोक्ता मामले, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण मंत्री राम विलास पासवान कई सप्ताह से  अस्पताल में भर्ती थे। हाल ही में उनके हृदय की सर्जरी हुई थी। फॉर्टिस एस्कॉर्ट हार्ट इंस्टीट्यूट द्वारा जारी बयान के अनुसार, पासवान के स्वास्थ्य में गिरावट आई और 8 अक्टूबर को शाम छह बजकर पांच मिनट पर उन्होंने अंतिम सांस ली।समाजवादी आंदोलन के स्तंभों में से एक रामविलास पासवान बिहार के प्रमुख दलित नेता के  रूप में उभरे और जल्दी ही राष्ट्रीय राजनीति में अपनी विशेष जगह बना ली थी। सन 1990 के दशक में अन्य पिछड़ा वर्ग के आरक्षण से जुड़े मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू करवाने में पासवान की भूमिका महत्वपूर्ण रही।रामविलास पासवान के निधन पर शोक व्यक्त करते हुए राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने लिखा, केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान के निधन से देश ने एक दूरदर्शी नेता खो दिया है। उनकी गणना सर्वाधिक सक्रिय तथा सबसे लंबे समय तक जनसेवा करने वाले सांसदों में की जाती है। वे वंचित वर्गों की आवाज़ मुखर करने वाले तथा हाशिए के लोगों के लिए सतत संघर्षरत रहने वाले जनसेवक थे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा, दुख बयान करने के लिए शब्द नहीं हैं; हमारे देश में ऐसा शून्य पैदा हुआ है जो शायद कभी नहीं भरेगा। श्री रामविलास पासवान जी का निधन व्यक्तिगत क्षति है। मैंने एक ऐसा मित्र और सहकर्मी खोया है जो पूरे जुनून के साथ हमेशा यह सुनिश्चित करना चाहता था कि हर गरीब व्यक्ति सम्मानपूर्वक जीवन व्यतीत करे। पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी ने अपने ट्विटर हैंडल पर लिखा, आदरणीय रामविलास पासवान जी के निधन से बहुत दु:खी हूं। दशकों से उनके साथ पारिवारिक संबंध रहा. आज हमारे घर में चूल्हा नहीं जलेगा. भगवान उनकी आत्मा को शांति प्रदान करे।' भारत की राजनीति में 'मौसम वैज्ञानिक' के नाम से भी पहचाने जाने वाले रामविलास पासवान का राजनीतिक सफर पांच दशक से भी अधिक पुराना है।  बीते दो दशकों में वे केंद्र की हर सरकार में मंत्री रहे। पांच दशकों में रामविलास पासवान 8 बार लोकसभा के सदस्य रहे। पासवान उस वक्त बिहार विधानसभा के सदस्य बन गए थे, जब लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार अपने छात्र जीवन में ही थे।  आपातकाल के दौरान इंदिरा गांधी के नेतृत्व में सत्तारूढ़ कांग्रेस  से लडऩे से लेकर पांच दशकों तक पासवान कई बार कांग्रेस के साथ, तो कभी खिलाफ चुनाव लड़ते रहे और जीतते रहे।सन 1977 के लोकसभा चुनाव में हाजीपुर सीट से जनता दल के टिकट पर चुनाव लड़े। पासवान ने चार लाख से ज्यादा वोटों से जीत दर्ज कर वल्र्ड रिकॉर्ड बनाया । इसके बाद सन 2014 तक उन्होंने आठ बार आम चुनावों में जीत हासिल की। वर्तमान में वे राज्यसभा के सदस्य थे।रामविलास पासवान का राजनीतिक सफर सन1969 में तब शुरू हुआ था, जब वे संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के टिकट पर चुनाव जीतकर बिहार विधानसभा के सदस्य बने थे। खगडिय़ा में एक दलित परिवार में 5 जुलाई 1946 को जन्मे रामविलास पासवान राजनीति में आने से पहले बिहार प्रशासनिक सेवा में अधिकारी थे। पासवान ने इमरजेंसी का पूरा दौर जेल में गुजारा। इमरजेंसी खत्म होने के बाद पासवान छूटे और जनता दल में शामिल हो गए। रिकॉर्ड जीत के बाद रामविलास पासवान फिर से 1980 और 1989 के लोकसभा चुनावों में जीते। इसके बाद बनी विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार में उन्हें पहली बार कैबिनेट मंत्री बनाया गया। अगले कई सालों तक विभिन्न सरकारों में पासवान ने रेल से लेकर दूरसंचार और कोयला मंत्रालय तक की जिम्मेदारी संभाली। इस बीच, वे भाजपा, कांग्रेस, राजद और जदयू के साथ कई गठबंधनों में रहे और केंद्र सरकार में मंत्री बने रहे। पासवान नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली दोनों सरकारों में खाद्य और उपभोक्ता मामलों के मंत्री रहे हैं।रामविलास पासवान ने सन 2002 के गोधरा दंगों के बाद तत्कालीन अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में मंत्री पद से इस्तीफा देकर एनडीए गठबंधन से भी नाता तोड़ लिया था। इसके बाद पासवान कांग्रेस के नेतृत्व वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) में शामिल हुए और मनमोहन सिंह कैबिनेट में दो बार मंत्री रहे।  हालांकि, 2014 आते-आते पासवान एक बार फिर यूपीए का साथ छोड़कर एनडीए में शामिल हो गए। देश की राजनीति में इतना लंबा समय गुजार चुके रामविलास पासवान की निजी जिंदगी परदे में ही रही। उनकी निजी जिंदगी पर बातें तभी हुई जब विवाद हुए। पासवान ने दो शादियां की थी। उनकी पहली पत्नी से दो बेटियां हैं, जबकि दूसरी पत्नी से एक बेटे चिराग पासवान व एक बेटी है। उनकी पहली पत्नी अब भी उनके गांव शहरबन्नी में रहती हैं और इन दिनों बीमार चल रही हैं।बिहार के खगडिय़ा में एक दलित परिवार में जन्मे रामविलास पासवान ने एमए और एलएलबी करने के बाद ही प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी की। उनका चयन डीएसपी के पद पर भी हो गया था। इसी दौरान वह जयप्रकाश नारायण के समाजवादी आंदोलन से जुड़े। यह संयोग ही है कि पासवान का निधन आठ अक्तूबर को हुआ और 41 साल पहले इसी तारीख को जयप्रकाश नारायण ने भी अंतिम सांस ली थी।पासवान समाजवादी नेता राम सजीवन के संपर्क में आए और राजनीति का रुख कर लिया।कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी ने कहा कि वे हमारी मां के लंबे समय तक पड़ोसी रहे। उनके साथ हमारे परिवार का निजी संबंध था। उन्होंने कहा है कि ऐसे संकट के समय में उनका परिवार चिराग पासवान और पूरे परिवार के साथ खड़ा है। रामविलास पासवान का जन्म 5 जुलाई 1946 को बिहार के खगडिय़ा जिले के शहरबन्नी गांव में हुआ था। उनके पिता का नाम जामुन पासवान और माता का नाम सिया देवी था। पासवान ने कोसी कॉलेज, पिल्खी और पटना विश्वविद्यालय से कानून में स्नातक और मास्टर ऑफ आट्र्स की डिग्री हासिल की थी।  रामविलास पासवान मंझे हुए राजनेताओं में से एक थे। वे एक  ऐसे कद्दावर नेता थे जिनके साथ छह प्रधानमंत्रियों की कैबिनेट में मंत्री के तौर पर काम करने की शानदार उपलब्धि जुड़ी है। वह 1987 में हरिद्वार लोकसभा सीट से चुनाव लड़े थे, तब सहारनपुर के नागल और देवबंद विधानसभा क्षेत्र हरिद्वार लोकसभा सीट में शामिल थे। सन 1987 से ही हरिद्वार क्षेत्र में उनके चाहने वालो की बड़ी संख्या रही।


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