पणजी (मानवी मीडिया) : लोकपाल व लोकायुक्त अधिनियम, 2013 के तहत केंद्र के लिए लोकपाल के लिए लोकायुक्त संस्था की व्यवस्था की गई है। ये संस्थाएं बिना किसी संवैधानिक दर्जे वाले वैधानिक निकाय हैं। ये सरकारी अधिकारियों के खिलाफ लगे भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच करते हैं। वहीं, गोवा में करीब साढ़े 4 साल तक लोकायुक्त रह चुके रिटायर्ड जस्टिस प्रफुल्ल कुमार मिश्रा ने इस व्यवस्था को ही खत्म करने की मांग की है। राज्य सरकार के रवैये से असंतुष्ट जस्टिस (रिटायर्ड) मिश्रा का कहना है कि अपने कार्यकाल में उन्होंने कई अधिकारियों और नेताओं के खिलाफ 21 रिपोर्ट दीं, लेकिन राज्य सरकार ने एक भी रिपोर्ट पर एक्शन नहीं लिया। सरकार से मोहभंग होने पर रिटायर्ड जस्टिस प्रफुल्ल कुमार मिश्रा ने सोमवार को गोवा भी छोड़ दिया।मीडिया ने एक रिपोर्ट में रिटायर्ड जस्टिस प्रफुल्ल कुमार मिश्रा ने कहा, 'अगर आप मुझसे एक वाक्य में पूछें कि गोवा में लोकायुक्त के रूप में इन शिकायतों से निपटने में मेरा अनुभव क्या है? तो मैं कहूंगा कि उन्हें लोकायुक्त की संस्था को समाप्त कर देना चाहिए। जनता के पैसे को बिना मतलब क्यों खर्च किया जा रहा है? अगर लोकायुक्त अधिनियम को इतनी ताकत के साथ कूड़ेदान में डाला जा रहा है, तो लोकायुक्त को खत्म करना ही बेहतर है ना।' 73 वर्षीय मिश्रा ने 18 मार्च 2016 से 16 सितंबर 2020 तक गोवा के लोकायुक्त के रूप में अपनी सेवाएं दीं। उन्होंने कहा कि जिन लोगों के खिलाफ रिपोर्ट दी गई, उनमें पूर्व मुख्यमंत्री और एक मौजूदा विधायक भी हैं। रिपोर्ट के मुताबिक, रिटायर्ड जस्टिस प्रफुल्ल कुमार मिश्रा के कार्यकाल के दौरान लोकायुक्त ऑफिस को कुल 191 शिकायतें मिलीं। इनमें से 133 शिकायतों का निपटारा किया गया। 58 पेंडिंग केस में 21 ऐसे हैं, जिनकी रिपोर्ट राज्य सरकार को भेजी गई; मगर कोई एक्शन ही नहीं लिया गया।जस्टिस मिश्रा ने कहा, 'लोकायुक्त व्यवस्था में कुछ कमियां हैं। मौजूदा अधिनियम गोवा के लिए पर्याप्त नहीं है। कर्नाटक और केरल के अधिनयमों में लोकायुक्त को अभियोग की शक्तियां दी गई हैं, लेकिन गोवा में ऐसा नहीं है। गोवा में लोकायुक्त के आदेशों की अवहेलना पर अवमानना का कोई प्रावधान भी नहीं है, जो इस अधिनियम को कमजोर करता है।'जस्टिस मिश्रा कहते हैं, 'मेरी किसी रिपोर्ट पर कोई सुनवाई नहीं हुई। मैं हमेशा से असहाय रहा। मेरे पास खुद के आदेशों की तामील की शक्तियां नहीं थी। अब राज्य सरकार और सिस्टम से मोहभंग हो गया है। लोकायुक्त का पद खत्म ही कर देना बेहतर है।'लोकपाल या लोकायुक्त अनुचित शासन, अनुचित लाभ पहुंचाने या भ्रष्टाचार से संबंधित किसी मंत्री या केंद्र या राज्य सरकार के सचिव के द्वारा की गई कार्यवाही से पीड़ित व्यक्ति द्वारा लिखित शिकायत करने पर अथवा स्वतः संज्ञान लेते हुए जांच प्रक्रिया शुरू कर सकता है, लेकिन न्यायिक कोर्ट के निर्णय के संबंध में किसी प्रकार की जांच नहीं की जा सकती।
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Tuesday, October 6, 2020
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सरकार से नाराज जस्टिस पीके मिश्रा ने गोवा को कहा अलविदा, बोले- लोकायुक्त की व्यवस्था को खत्म कर देना चाहिए.
सरकार से नाराज जस्टिस पीके मिश्रा ने गोवा को कहा अलविदा, बोले- लोकायुक्त की व्यवस्था को खत्म कर देना चाहिए.
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