निजीकरण देश के लिए हितकारी या हानिकारक? संपादकीय - मानवी मीडिया

निष्पक्ष एवं निर्भीक

.

Breaking

Post Top Ad

Post Top Ad

Wednesday, October 7, 2020

निजीकरण देश के लिए हितकारी या हानिकारक? संपादकीय

वर्ष1990 के दशक से भारतीय अर्थव्यवस्था में नया दौर आया क्योंकि उस समय की भारत सरकार ने निजीकरण शुरू किया। उस वक्त कुछ सार्वजानिक क्षेत्र के उपक्रमों में छोटे-छोटे स्टेक्स की बिक्री से देश में निजीकरण की शुरुवात हुई। तब से निजीकरण का फार्मूला लोगों के सामने आया। फिर अलग अलग अर्थशास्त्री इस विषय पर अध्ययन करने लगे और अपनी अपनी राय देने लगे। दरअसल निजीकरण का अर्थ है कि किसी सरकारी संस्था का नियंत्रण प्राइवेट यानि निजी संगठन के हाथों में जाना। फिर उस संस्था पर सरकार का अधिकार - क्षेत्र खत्म हो जाता है। वह सरकारी से निजी संस्था में तब्दील हो जाती है। साधारण शब्दों में कहा जाए तो सरकार के स्वामित्व वाले व्यवसायों को निजी संस्था को बेचना निजीकरण है। प्राचीन काल में भी निजीकरण का अस्तित्व पाया गया है।


20वी सदी से पूर्व यूनान में वहाँ की सरकार ने लगभग सभी सरकारी संस्थाओ को निजी क्षेत्र को सौंप दिया था। रोमन साम्राज्य ने भी अधिकतर सरकारी विषयों को निजी संस्थाओ को सौंपा हुआ था। 20वी सदी के बाद नाजी हुकूमत ने जर्मनी में कई सरकारी फर्मो को निजी संस्थाओ को बेच दिया।1950 के दशक में इंग्लैंड ने भी इस्पात उद्योगों का निजीकरण कर दिया था। अब भारत में भी निजीकरण की मांग उठ रही है। सबसे पहले यह सवाल है कि निजीकरण से भारत को क्या लाभ होगा। सबसे पहले तो निजी संस्था होनें से काम की गुणवत्ता में सुधार होता है क्योंकि सरकारी संस्था में नौकरशाही का बोलबाला होता है जिससे काम की गुणवत्ता बहुत खराब रहती है। निजी संस्था के काम में निपुणता अधिक होतीं है। निजी संस्था के काम में अधिक विकल्प मिलते है क्योंकि निजी व्यवसाय मानव और वित्तीय संसाधनों पर केंद्रित रहते है जोकि सरकारी संस्था में कतई संभव नहीं है।  


 सबसे खास तो यह है कि निजी संस्था में भ्रष्टाचार की बहुत कम गुंजाईश है क्योंकि सरकारी संस्थाओ में रिश्वतखोरी की बड़ी समस्या है और निजी संस्था में सरकारी संस्थाओ के भांति राजनैतिक हस्तक्षेप नहीं रहता। निजी संस्था में जवाबदेही सीधे उपभोक्ता को संस्था और उसके मालिक की होगी परन्तु सरकारी संस्था में संस्था की जवाबदेही राजनीतिक हितधारियों को होगी। निजीकरण के कुछ नुकसान भी है। निजीकरण से निजी संस्थाएँ मुनाफाखोरी में लग जाती है। निजी संस्थाएँ आपस में प्रतिस्पर्धा में लग जाती है जिससे आम लोग दुविधा में पड़ जाते है। निजी संस्थाएँ मुलाजिमों को ठीक से तनख्वाह भी नहीं देती। निजीकरण से बेरोजगारी भी बढ़ सकती है क्योंकि आर्थिक मंदी में छँटनी होनें की पूरी संभावना रहती है और इससे बहुत मुलाजिमों की नौकरी जाने का खतरा बना रहता है। सरकारी संस्थाओ पर सरकार दबाव बनाकर सामाजिक भलाई के लिए भी प्रेरित कर सकती है। निजी संस्थाओ से सरकार की आंख हट जाती है। सरकार की जिम्मेदारी खत्म हो जाती है जिसका कुछ निजी संस्थाएँ फायदा उठाने की कोशिश करती है।                                                                                


निजीकरण उदारवाद का प्रतीक है। हमारा देश मिश्रित अर्थव्यवस्था वाला है। भारत में पूर्ण निजीकरण लाभदायक नहीं है ज्यादा से ज्यादा 80 प्रतिशत तक जरूरी है। कुछ संस्थाएँ सरकार के नियंत्रण में भी जरूरी है जिससे अर्थव्यवस्था का ठीक संतुलन बना रहे। निजीकरण से देश काफी तरक्की करेगा। भारतीय अर्थव्यवस्था को सरकार और निजी निवेश दोनो की जरूरत है। सरकार को निजी क्षेत्र में बाहरी मदद जारी रखनी होगी ताकि निजी संस्थाएँ नाजायज फायदा ना उठा पाए और सच में जनता का भला हो ना कि उन्हें तकलीफ पहुंचे। इसलिए निजीकरण एक सीमा तक हितकारी है परन्तु पूर्ण निजीकरण हानिकारक है।    


Post Top Ad