क्या हमारे देश में न्याय पाने के लिए मरना जरूरी है? संपादकीय।         - मानवी मीडिया

निष्पक्ष एवं निर्भीक

.

Breaking

Post Top Ad

Post Top Ad

Thursday, October 8, 2020

क्या हमारे देश में न्याय पाने के लिए मरना जरूरी है? संपादकीय।        

लखनऊ (मानवी मीडिया) | हमारे देश में किसी भी बेटी को न्याय पाने के लिए पहले मरना क्यों पड़ता है? पहले यह साबित करना क्यों जरूरी है कि उसके साथ गैंगरेप हुआ है या उसके साथ बलात्कार हुआ है। यदि केवल उसके साथ अत्याचार हुआ हो तो पुलिस मीडिया और सरकार उसे गंभीरता से क्यों नहीं लेते?हाथरस की घटना ने अमानवीयता की सारी हदें पार कर दी हैं। इस घटना ने एक बार फिर महिलाओं के प्रति हमारे समाज की सोच को उजागर कर दिया है। इस हत्याकांड में हाथरस की 19 वर्ष की एक बेटी के साथ जिस प्रकार से हिंसा कर उसे इतनी बेरहमी से मारा-पीटा गया और उसकी रीढ़ की हड्डी तोड़ दी गई और कुछ दिनों के बाद उसकी मृत्यु हो गई, यह घटना पूरे समाज के लिए बहुत ही शर्मनाक है। जिस खेत में उसका बचपन बीता, वह खेल-कूद कर बड़ी हुई, वहीं उसे हवस और हिंसा का शिकार बना दिया गया। 19 वर्ष की इस बेटी के साथ जो कुछ भी हुआ, उसको सोच कर ही रूह कांप जाती है। उसे इतनी बेरहमी से मारा-पीटा कि उसकी रीढ़ की हड्डी टूट गई और कुछ दिनों के बाद उसकी मृत्यु हो गई। रात को 2:30 बजे चुपचाप उसे जला दिया जाता है। जिस खेत में उस बेटी का बचपन बीता था, वहीं उसकी चिता जला दी गई। यह सब हमारे सिस्टम की लापरवाही और नाकामी की ओर इशारा करता है।    जिस देश में बेटियों के साथ ऐसा दुष्कर्म और अत्याचार हो रहा है, उस देश का भविष्य क्या होगा? ऐसा लगता है मानो नैतिकता और मानवीय संस्कारों का घोर पतन हो चुका है और अब चारों ओर केवल पाशविकता और अमानवीयता का बोलबाला है। इस घटना ने हमारे समाज और सिस्टम की सच्चाई को उजागर कर के रख दिया है। आज का समाज और सिस्टम पूरी तरह मृत हो चुका है। हमारे सिस्टम में महिलाओं को न्याय देने के लिए क्या दो शर्तें निर्धारित कर दी गई हैं?पहली शर्त यह कि महिला के साथ दरिंदगी के साथ गैंगरेप होना चाहिए और दूसरी शर्त ये कि उसकी मौत हो जानी चाहिए तभी उसे न्याय मिलेगा। देश के लोगों का गुस्सा तब सामने आता है जब उसकी मृत्यु हो जाती है, तभी मीडिया रिपोर्टिंग करता है, तभी हमारे देश के नेता और पुलिस जागते हैं। जब-जब ऐसी घटनाएं होती हैं कुछ दिनों के लिए पूरे देश में जागरूकता आ जाती है।लोग न्याय मांगने के लिए सडक़ पर उतर आते हैं। जब तक अत्याचार होता रहता है पूरा समाज सोता रहता है। हाथरस में भी इस लडक़ी को न्याय दिलाने की मुहिम तब जाकर शुरू हुई जब गंभीर चोटों की वजह से इस लडक़ी की मौत हो गई। जब तक यह लडक़ी जिंदा रही, तब तक न पुलिस जागी,न मीडिया और न ही नेता और बुद्धिजीवी जागे। जैसे ही लडक़ी की मृत्यु हो गई, तुरंत पूरा सिस्टम एक्टिव हो गया। इससे एक बात तो साबित होती है कि न्याय पाने के लिए मरना जरूरी है। जो लोग जिंदा रहते हैं उन्हें न्याय नहीं मिल पाता। कुछ लोग इस मामले को इस बहस में उलझा रहे हैं कि 19 वर्ष की इस लडक़ी के साथ गैंगरेप हुआ था या नहीं। इस बात से क्या फर्क पड़ता है कि उस लडक़ी के साथ गैंगरेप हुआ था कि नहीं, उसके साथ अत्याचार तो हुआ ही था। बहस इस बात पर होनी चाहिए कि न्याय पाने के लिए यह क्यों साबित करना पड़ता है कि गैंगरेप हुआ है और मरने के बाद ही न्याय क्यों मिलता है?कब दरश दिखाओगे मुझको कब अपनाओगे तुम मोहन


Post Top Ad