फिल्मी हस्तियों पर नशे का बदनुमा दाग   --------   संपादकीय - मानवी मीडिया

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Monday, September 28, 2020

फिल्मी हस्तियों पर नशे का बदनुमा दाग   --------   संपादकीय

फिल्म अभिनेता सुशांत की आत्महत्या के कारणों तक पहुंचा जायेगा या नहीं, पर उनकी आत्महत्या की जांच से फिल्मी एवं टीवी सीरियलों की दुनिया में व्याप्त ड्रग्स एवं नशे की घातक एवं त्रासद स्थितियोंं ने अवश्य चिन्ता को बढ़ाया है। नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो ने अनेक चर्चित फिल्म अभिनेत्रियों को इस नशे का शिकार होने के कारण तलब करके पूछताछ की। टीवी सीरियल अभिनेताओं और अभिनेत्रियों के घर से ड्रग्स बरामद हो रहे हैं। नशे के खिलाफ ‘उड़ता पंजाब’ फिल्म का निर्माण करने वाले प्रोडयूसर भी ड्रग्स मामले की चपेट में आ गए। फिल्मों के जरिये समाज में नायक एवं आदर्श बने चेहरों एवं चरित्र का यह घिनौना स्वरूप न केवल विडम्बनापूर्ण है बल्कि डरावना भी है। फिल्मी दुनिया एवं उसके नायक-नायिकाओं में बढ़ती हुई ड्रग्स, मद्यपान, तंबाकू, सिगरेट की लत एवं नशीले मादक द्रव्यों, पदार्थों को महिमामंडित करने की स्थितियों के कारण अनेक जिंदगियां आज मौत की अंधी सुरंगों में धंस रही है। सुविख्यात अभिनेत्रियों का इस नशे की लत का शिकार होना कोई नई बात नहीं है लेकिन पकड़े गए लोगों में कुछ ने तो अभी युवा होने की उम्र ही पार की है, जिनके सामने लम्बा करियर पड़ा हुआ है। बालीवुड ही क्यों दक्षिण भारत में भी ड्रग्स मामले में बेंगलुरु में अभिनेत्रियों की गिरफ्तारी हुई है। छोटे एवं बड़े परदे ही नहीं, बल्कि नायक-नायिकाओं में पसरा ड्रग्स का जाल देश की अस्मिता एवं अस्तित्व पर एक बदनुमा दाग है।देश को निर्मित करने की जिम्मेदारी निभाने की जगह ये हस्तियां देश को तोडऩे एवं बदनुमा करने का काम कर रही है, फिर ये किस तरह और क्यों हमारे आदर्श हो सकती है? इन तथाकथित फिल्मी हस्तियों के कारण नशा अपराध एवं दुष्प्रवृत्ति न होकर एक प्रतिष्ठा का कारण बनता गया है। इन्हीं फिल्मी हस्तियों के कारण नई पीढ़ी इस जाल में बुरी तरह कैद हो चुकी है। आज हर तीसरा व्यक्ति किसी न किसी नशे का आदी हो चुका है। नशीले पदार्थों के छोटे-छोटे पाउचों से लेकर तेज मादक पदार्थों, ड्रग्स, औषधियों तक की सहज उपलब्धता इस आदत को बढ़ाने का प्रमुख कारण है। इस दीवानगी के लिए प्रचार माध्यमों एवं फिल्मी दुनिया ने बहुत भटकाया है। यह सर्वविदित है कि नशे की संस्कृति युवा पीढ़ी को गुमराह कर रही है। भारत युवाओं का देश है, वहां इस प्रवृत्ति के बढऩे का अर्थ है देश को पंगु एवं बीमार करना। अगर यही प्रवृत्ति रही तो सरकार, सेना और समाज के ऊंचे पदों के लिए शरीर और दिमाग से स्वस्थ व्यक्ति नहीं मिलेंगे। एक नशेड़ी पीढ़ी का देश कैसे अपना पूर्व गौरव प्राप्त कर सकेगा?    अनेक सिने कलाकार नशे की आदत से या तो अपनी जीवन लीला समाप्त कर चुके हैं या बरबाद हो चुके हैं। नशे की यह जमीन कितने-कितने आसमान खा गई। विश्वस्तर की ये प्रतिभाएं नशे की लत के कारण कीर्तिमान तो स्थापित किए हैं, पर नई पीढ़ी के लिए स्वस्थ विरासत नहीं छोड़ पाई हैं। सिंथेटिक ड्रग्स तो इतने उत्तेजक होते हैं कि सेवन करने वालों को तत्काल ही आसपास की दुनिया से काट देते हैं, पंगु बना देते हैं और उनके सोचने-विचारने-काम करने की क्षमताओं को विनष्ट कर देते हैं। अनेक फिल्मी कलाकारों का असमय में मौत का ग्रास बनने के कारणों में यह नशा ही प्रमुख कारण बना हैं। देश युवाओं के बल पर विकास के पथ पर प्रगतिशील होने का दम्भ भर रहा है, वहीं युवा पीढ़ी अब नशे में घुलती जा रही है, यह चिन्ता का विषय होना ही चाहिए। इस डरावनी स्थिति के लिये जिम्मेदार लोगों पर सख्त कार्रवाही जरूरी है, क्योंकि इनके कारण नशे की ओर बढ़ रही युवा पीढ़ी बौद्धिक रूप से दरिद्र बन रही है। जीवन का माप सफलता नहीं सार्थकता होती है। सफलता तो गलत तरीकों से भी प्राप्त की जा सकती है। जिनको शरीर की ताकत खैरात में मिली हो वे जीवन की लड़ाई कैसे लड़ सकते हैं? मुम्बई में माफिया डान दाउद ने इन फिल्मी हस्तियों के सहयोग से आर्थिक राजधानी को नशे की राजधानी बनाने में सफलता प्राप्त की, भले ही महाराष्ट्र पुलिस ने डी गिरोह का नेटवर्क काफी हद तक विध्वंस किया था लेकिन राजनीतिक प्रभाव एवं फिल्मी हस्तियों के सहयोग से अरबों रुपए का ड्रग्स का धंधा बंद नहीं हो सकता। अब सवाल यह है कि नशे की गिरफ्त में जकड़ी यह फिल्मी दुनिया दोषी है, अपराधी है तो उनका बहिष्कार होना चाहिए या नहीं? यह सवाल सत्ता के सामने है और समाज के सामने भी है। गहन जांच एवं कठोर कार्रवाई जरूरी है, तभी इन चंद छोटी मछलियों पर नकेल कसने के बाद ही बड़ी मछलियों तक पहुंच बन पायेगी। मुम्बई शहर पर नशे के घातक हमले का गंभीरता से विश्लेषण किया जाए तो वहां 80 फीसदी आबादी किसी-न-किसी प्रकार का नशा करती मिल जाएंगी। शराब का सेवन भी युवाओं में तेजी से फैल रहा है, जिससे महिलाएं भी अछूती नहीं रही।पिछले दो दशकों में मद्यपान करने वाली एवं ड्रग्स लेने वाली महिलाओं की संख्या में तेजी से वृद्धि हुई है। विशेष कर उच्च तथा उच्च मध्यम वर्ग की महिलाओं में यह एक फैशन के रूप में आरंभ होता है और फिर धीरे-धीरे आदत में शुमार होता चला जाता है। महिलाओं में मद्यपान की बढ़ती प्रवृत्ति के संबंध में किए गए सर्वेक्षण दर्शाते हैं कि करीब 40 प्रतिशत महिलाएं इसकी गिरफ्त में आ चुकी हैं। इनमें से कुछ महिलाएं खुलेआम तथा कुछ छिप-छिप कर शराब, सिगरेट एवं अन्य नशों का सेवन करती हैं। ड्रग्स की आदत भी बढ़ती जा रही है।  महानगरों और बड़े शहरों की कामकाजी महिलाओं एवं छात्रावासों में यह बहुत ही आम होती जा रही है।पंजाब में आतंकवाद ही नहीं, ड्रग्स के धंधे ने व्यापक स्तर पर अपनी पहुंच बनाई है, जिसके दुष्परिणाम समूचे देश ने भोगे हैं। शहरों एवं ग्रामीण क्षेत्रों से हर रोज युवाओं की मौत की खबरें हो या विधवाओं का क्रंदन समूचा देश हिला है। कितनी मांओं की गोद उजड़ गई और कितने वृद्ध पिताओं की सहारे की लाठी टूट गई। नशीले पदार्थों का धंधा सीमाओं से होते हुए देश की रग-रग में पसरता गया है। पाकिस्तान, नेपाल, बांगलादेश के जरिए नशीले पदार्थ की तस्करी की जाती है। बालीवुड और दक्षिण भारत का फिल्म उद्योग में पांव जमा चुके नशे के ग्लैमर की चकाचौंध ने चिंताजनक स्थितियां खड़ी कर दी है। टीवी चैनलस् पर ड्रग्स पार्टियों, रेव पार्टियों और इनमें नामी सितारों के बच्चों के नशे करने के दृश्यों ने समस्या को और अधिक गहराया है। जो सितारे आदर्श बने हुए हैं, उनके बच्चे खुद कितने बिगड़े हुए हैं-ये दृश्य बता रहे हैं। ये तो वे उदाहरणों के कुछ बिन्दु हैं, वरना करोड़ों लोग अपनी अमूल्य देह में बीमार फेफड़े और जिगर सहित अनेक जानलेवा बीमारियां लिए एक जिंदा लाश बने जी रहे हैं पौरुषहीन भीड़ का अंग बन कर। चिकित्सकीय आधार पर देखें तो अफीम, हेरोइन, चरस, कोकीन, तथा स्मैक जैसे मादक पदार्थों से व्यक्ति वास्तव में अपना मानसिक संतुलन खो बैठता है एवं पागल तथा सुप्तावस्था में हो जाता है। ये ऐसे उत्तेजना लाने वाले पदार्थ हैं, जिनकी लत के प्रभाव में व्यक्ति अपराध तक कर बैठता है।मामला सिर्फ स्वास्थ्य से नहीं अपितु अपराध से भी जुड़ा हुआ है। कहा भी गया है कि जीवन अनमोल है। नशे के सेवन से यह अनमोल जीवन समय से पहले ही मौत का शिकार हो जाता है या अपराध की अंधी गलियों में धंसता चला जाता है। इन फिल्मी हस्तियों के साथ-साथ हजारों-लाखों लोग अपने लाभ एवं अनुचित कमाई के लिए नशे के व्यापार में लगे हुए हैं और राष्ट्र के चरित्र एवं स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं। चमड़े के फीते के लिए भैंस मारने जैसा अपराध कर रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी हाल में ‘ड्रग्स-फ्री इंडिया’ अभियान चलाने की बात कहकर इस राष्ट्र की सबसे घातक बुराई की ओर जागृति का शंखनाद किया है। उन्होंने चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि हमारे देश के युवा गुटका, चरस, गांजा, अफीम, स्मैक, शराब और भांग आदि के नशे में पड़ कर बर्बाद हो रहे हैं। इस कारण से वे आर्थिक, सामाजिक, मानसिक और आध्यात्मिक रूप से विकलांगता की ओर अग्रसर हो रहे हैं। किसी विद्वान ने कहा है कि अन्धकार का कोई अस्तित्व नहीं होता है। प्रकाश का अभाव ही अंधकार है। कमरे में फैले अंधेरे को लाठी से भगाने से वह दूर नहीं होगा इसके लिए एक दीपक जलाने की आवश्यकता है। इसके लिये नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो को अधिक सक्रिय एवं सशक्त होने की जरूरत है।नरेन्द्र मोदी रूपी रोशनी का भारत ।


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