अस्पतालों का बढ़ता आतंक :::संपादकीय ******************************* शुक्रवार 28 अगस्त 2020 | लखनऊ (मानवी मीडिया)आज कोरोनावायरस के दौर में जहां वैश्विक अर्थव्यवस्था बुरी तरह प्रभावित है, भारत में अब तक लाखों लोगों के रोजगार छिन चुके हैं बेरोजगारी दर में लगातार इजाफा देखने को मिल रहा है। मध्यम वर्ग के सामने आज भुखमरी का संकट उत्पन्न हो गया है। हालांकि अब सरकार द्वारा कुछ ढील दी गई है जिससे एक बार फिर से स्थिति सामान्य होती दिख रही है। मौजूदा समय में सबसे बड़ी समस्या स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर है। स्वास्थ्य सेवाओं के क्षेत्र में निजी क्षेत्र भारत में अग्रणी भूमिका में है। कुछ गिने चुने राज्यों को यदि छोड़ दिया जाए तो भारत के ज्यादातर राज्यों में सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति बदहाल है। आज इस संकट के दौर में प्राइवेट अस्पताल धन उगाही में लगे हुए हैं लेकिन सरकारों द्वारा इस पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है।कोरोना संकट के इस दौर में पूरे भारत से अब तक हजारों मामले सामने आ चुके हैं, जहां पर अस्पतालों द्वारा अमानवीय तरीके से आम जनमानस का शोषण किया गया है। निजी क्षेत्र के प्रतिष्ठित अस्पताल आज इस संकटकालीन परिस्थिति को उत्सव के रूप में ले रहे हैं। उदाहरण के रूप में आप मैक्स अस्पताल के हालिया मामले को ले सकते हैं, जहां पर एक व्यक्ति की मौत हो जाने के बावजूद भी उसको तीन से चार दिनों तक आईसीयू में रखा गया और उसके नाम पर लाखों का बिल भी परिजनों को थमा दिया गया। आखिर कोरोना के नाम पर निजी अस्पतालों की लूट कब तक चलती रहेगी, कब तक सरकारें आंखें मूंदकर बैठी रहेंगी। यह कोई पहला मामला नहीं है इस तरह के अभी तक के हजारों मामले सामने आ चुके हैं। क्या जिम्मेदार पदों पर बैठे राजनेताओं को सिर्फ चुनावों के समय में ही जनता का दुख दर्द दिखता है ? आखिर ऐसे अस्पतालों पर कार्रवाई क्यों नहीं होती ? समस्या यह है कि निजी स्वास्थ्य सेवाओं से जुड़े हुए लोगों को राजनेताओं का संरक्षण प्राप्त है। चुनावों के समय में राजनेताओं को इन्हीं व्यवसायियों से मोटी रकम प्राप्त होती है। जिसके बदले में सत्ता में बैठे लोग पांच वर्षों तक मौन रहते हैं। पहले से ही बदहाल स्थिति में चल रही है सरकारी स्वास्थ्य सेवाएं कोरोना काल में बदतर स्थिति में चली गई हैं। ऐसे में आम जनमानस को किसी भी स्वास्थ्य संबंधी समस्या के लिए निजी स्वास्थ्य सेवाओं का रुख करना पड़ रहा है। जिसका खर्च वहन करना आम आदमी की पहुंच से बाहर है। कोरोनावायरस ने प्राइवेट सेक्टर के चरित्र को उजागर कर दिया है। आम दिनों में भारतीय जनता से करोड़ों रुपयों का लाभ कमाने वाले उद्योगपति भी आज मदद के लिए सामने नहीं आ रहे हैं। आज यह साबित हो गया है कि प्राइवेट सेक्टर का उद्देश्य सिर्फ और सिर्फ लाभ कमाना होता है। जरूरत पडऩे पर यह बड़े-बड़े उद्योगपति कभी भी देश के साथ खड़े होने वाले नहीं हैं। अब तो निजीकरण की ट्रेन को आगे बढ़ा रही मौजूदा केंद्र सरकार को भी यह दिख गया होगा की सब कुछ उद्योगपतियों के हाथों में देने का परिणाम क्या हो सकता है ?इस संक्रमण काल के पूर्व तक भारत में एक बड़ा तबका निजीकरण का समर्थन करता रहा है। शायद आज निजी स्वास्थ्य सेवाओं के शोषण चरित्र को देखकर उनको भी यह अंदाजा हो गया होगा कि यदि इसी प्रकार से विभिन्न क्षेत्रों में निजी क्षेत्र को आगे लाया जाता रहा तो ऐसी ही स्थिति प्रत्येक क्षेत्र में देखने को मिलेगी। मौजूदा केंद्र सरकार को यह भी समझना होगा कि आज के यह बड़े-बड़े उद्योगपति पूर्व में राजाओं की भांति स्कूल, कॉलेज, जल प्याऊ और गरीबों के लिए आवास नहीं बनाने वाले हैं। इनका शोषणकारी चरित्र आज उजागर हो गया है, मौजूदा केंद्र सरकार को विभिन्न क्षेत्रों में चल रहे निजीकरण के कार्यक्रम को विराम देने की आवश्यकता है। जिससे सभी आवश्यक सेवाओं तक मध्यम वर्ग की पहुंच बनी रहे। मौजूदा संक्रमण के दौर से केंद्र सरकार और विभिन्न राज्य सरकारों को सीख लेने की आवश्यकता है। प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाओं को प्रथम वरीयता में रखकर सुधार कार्यक्रमों को चलाए जाने की जरूरत है, जिससे आम जनमानस को निजी स्वास्थ्य सेवाओं के चक्कर न लगाने पड़े। खबरो को देखने के लिए👇👇👇👇 - मानवी मीडिया

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Friday, August 28, 2020

अस्पतालों का बढ़ता आतंक :::संपादकीय ******************************* शुक्रवार 28 अगस्त 2020 | लखनऊ (मानवी मीडिया)आज कोरोनावायरस के दौर में जहां वैश्विक अर्थव्यवस्था बुरी तरह प्रभावित है, भारत में अब तक लाखों लोगों के रोजगार छिन चुके हैं बेरोजगारी दर में लगातार इजाफा देखने को मिल रहा है। मध्यम वर्ग के सामने आज भुखमरी का संकट उत्पन्न हो गया है। हालांकि अब सरकार द्वारा कुछ ढील दी गई है जिससे एक बार फिर से स्थिति सामान्य होती दिख रही है। मौजूदा समय में सबसे बड़ी समस्या स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर है। स्वास्थ्य सेवाओं के क्षेत्र में निजी क्षेत्र भारत में अग्रणी भूमिका में है। कुछ गिने चुने राज्यों को यदि छोड़ दिया जाए तो भारत के ज्यादातर राज्यों में सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति बदहाल है। आज इस संकट के दौर में प्राइवेट अस्पताल धन उगाही में लगे हुए हैं लेकिन सरकारों द्वारा इस पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है।कोरोना संकट के इस दौर में पूरे भारत से अब तक हजारों मामले सामने आ चुके हैं, जहां पर अस्पतालों द्वारा अमानवीय तरीके से आम जनमानस का शोषण किया गया है। निजी क्षेत्र के प्रतिष्ठित अस्पताल आज इस संकटकालीन परिस्थिति को उत्सव के रूप में ले रहे हैं। उदाहरण के रूप में आप मैक्स अस्पताल के हालिया मामले को ले सकते हैं, जहां पर एक व्यक्ति की मौत हो जाने के बावजूद भी उसको तीन से चार दिनों तक आईसीयू में रखा गया और उसके नाम पर लाखों का बिल भी परिजनों को थमा दिया गया। आखिर कोरोना के नाम पर निजी अस्पतालों की लूट कब तक चलती रहेगी, कब तक सरकारें आंखें मूंदकर बैठी रहेंगी। यह कोई पहला मामला नहीं है इस तरह के अभी तक के हजारों मामले सामने आ चुके हैं। क्या जिम्मेदार पदों पर बैठे राजनेताओं को सिर्फ चुनावों के समय में ही जनता का दुख दर्द दिखता है ? आखिर ऐसे अस्पतालों पर कार्रवाई क्यों नहीं होती ? समस्या यह है कि निजी स्वास्थ्य सेवाओं से जुड़े हुए लोगों को राजनेताओं का संरक्षण प्राप्त है। चुनावों के समय में राजनेताओं को इन्हीं व्यवसायियों से मोटी रकम प्राप्त होती है। जिसके बदले में सत्ता में बैठे लोग पांच वर्षों तक मौन रहते हैं। पहले से ही बदहाल स्थिति में चल रही है सरकारी स्वास्थ्य सेवाएं कोरोना काल में बदतर स्थिति में चली गई हैं। ऐसे में आम जनमानस को किसी भी स्वास्थ्य संबंधी समस्या के लिए निजी स्वास्थ्य सेवाओं का रुख करना पड़ रहा है। जिसका खर्च वहन करना आम आदमी की पहुंच से बाहर है। कोरोनावायरस ने प्राइवेट सेक्टर के चरित्र को उजागर कर दिया है। आम दिनों में भारतीय जनता से करोड़ों रुपयों का लाभ कमाने वाले उद्योगपति भी आज मदद के लिए सामने नहीं आ रहे हैं। आज यह साबित हो गया है कि प्राइवेट सेक्टर का उद्देश्य सिर्फ और सिर्फ लाभ कमाना होता है। जरूरत पडऩे पर यह बड़े-बड़े उद्योगपति कभी भी देश के साथ खड़े होने वाले नहीं हैं। अब तो निजीकरण की ट्रेन को आगे बढ़ा रही मौजूदा केंद्र सरकार को भी यह दिख गया होगा की सब कुछ उद्योगपतियों के हाथों में देने का परिणाम क्या हो सकता है ?इस संक्रमण काल के पूर्व तक भारत में एक बड़ा तबका निजीकरण का समर्थन करता रहा है। शायद आज निजी स्वास्थ्य सेवाओं के शोषण चरित्र को देखकर उनको भी यह अंदाजा हो गया होगा कि यदि इसी प्रकार से विभिन्न क्षेत्रों में निजी क्षेत्र को आगे लाया जाता रहा तो ऐसी ही स्थिति प्रत्येक क्षेत्र में देखने को मिलेगी। मौजूदा केंद्र सरकार को यह भी समझना होगा कि आज के यह बड़े-बड़े उद्योगपति पूर्व में राजाओं की भांति स्कूल, कॉलेज, जल प्याऊ और गरीबों के लिए आवास नहीं बनाने वाले हैं। इनका शोषणकारी चरित्र आज उजागर हो गया है, मौजूदा केंद्र सरकार को विभिन्न क्षेत्रों में चल रहे निजीकरण के कार्यक्रम को विराम देने की आवश्यकता है। जिससे सभी आवश्यक सेवाओं तक मध्यम वर्ग की पहुंच बनी रहे। मौजूदा संक्रमण के दौर से केंद्र सरकार और विभिन्न राज्य सरकारों को सीख लेने की आवश्यकता है। प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाओं को प्रथम वरीयता में रखकर सुधार कार्यक्रमों को चलाए जाने की जरूरत है, जिससे आम जनमानस को निजी स्वास्थ्य सेवाओं के चक्कर न लगाने पड़े। खबरो को देखने के लिए👇👇👇👇


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