विश्व समाज से इन मामलों का कड़ा संज्ञान लेने का आग्रहजालंधर - पाकिस्तान में धार्मिक अल्पसंख्यक हिन्दू-सिख समुदायों पर निरन्तर बढ़ रही प्रताडऩा व अत्याचारों की घटनाओं पर चिन्ता जताते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने वहां के प्रधानमन्त्री इमरान खान से नेहरू-लियाकत समझौते का कड़ाई से पालन करने की मांग की है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पंजाब प्रान्त संघचालक स. बृजभूषण सिंह बेदी ने विश्व समाज से भी आग्रह किया है कि वह इस्लामिक गणराज्य पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों पर बढ़ रहे अत्याचारों की घटनाओं का संज्ञान लें और उनके मानवाधिकारों की रक्षा के लिए पाक सरकार पर दबाव बनाएं। संघ ने पाकिस्तान में हिन्दू युवती भारती बाई, महक कुमारी व सिख युवती जगजीत कौर के अपहरण व जबरन धर्मांतरण तथा निकाह और एक मन्दिर में तोडफ़ोड़ की घटनाओं को मध्ययुगीन सोच का प्रतीक बताते हुए इनकी कड़े शब्दों में भत्र्सना की है।अपने बयान में बेदी ने कहा कि सिन्ध प्रान्त के मटियारी जिले के हाला शहर में असमाजिक तत्वों द्वारा भारती बाई को शादी के मण्डप से उठा कर ले जाने व धर्मांतरण करवा कर उसकी मुस्लिम युवक से शादी करवाने की घटना इस बात का प्रमाण है कि पाकिस्तान में कानून का शासन अपने नागरिकों की सुरक्षा कर पाने में असमर्थ साबित हो रहा है। दु:खद बात यह है कि वहां की पुलिस ने भी पीडि़तों की बजाय अपराधियों का साथ दिया। स. बेदी ने कहा कि भारत की तरह पाकिस्तान को भी नेहरू-लियाकत समझौते का पालन कर अपने यहां रह रहे अल्पसंख्यकों की सुरक्षा और उनके विकास की तरफ ध्यान देना चाहिए क्योंकि यह लोग भी उनके देश के ही मूल निवासी हैं। संघ के पंजाब प्रमुख बेदी ने बताया कि पाकिस्तान के सिन्ध प्रान्त के थार जिले के छाचरो शहर में स्थित जिस देवल भिटानी मन्दिर को तोड़ा गया है वह हमारी एतिहासिक धरोहर रही है। यह मन्दिर सन 1373 (सम्वत 1444) में जन्मी माँ देवल के स्मृति में बनाया गया था, जिन्हें माँ हिंग्लाज देवी का सर्वकला अवतार माना जाता है। माँ देवल भवानी की केवल पाकिस्तान में ही नहीं बल्कि भारत में भी पूजा की जाती है। बेदी ने आश्चर्य जताया कि पाकिस्तान में इसी महीने जहां ननकाना साहिब पर उन्मादी हमला हुआ और अब एतिहासिक मन्दिर की पवित्रता को भंग किया गया है, वहां के कुछ उन्मादी लोग अपने ही देश की एतिहासिक धरोहरों को हानि पहुंचा रहे हैं और सरकार उनके सामने बेबस दिख रही है। पाकिस्तान सरकार को अल्पसंख्यकों की रक्षा के साथ-साथ उनके धर्मस्थलों व एतिहासिक धरोहरों की सुरक्षा के भी पुख्ता इंतजाम करने की आवश्यकता है।