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- मनोरंजन08:08 pm बुधवार 8 जनवरी, 2020 मुंबई - दीपिका पादुकोण की 'छपाक' एक बार फिर से ट्विटर पर ट्रेंड कर रही है, लेकिन इस बार वजह कुछ अलग है। दरअसल, फिल्म में एसिड हमला करने वाले व्यक्ति का नाम नदीम खान से बदलकर राजेश कर दिया गया है। कई रिपोर्टों में यह दावा किया गया है कि निर्देशक मेघना गुलजार ने लक्ष्मी अग्रवाल पर हमला करने वाले व्यक्ति का नाम नदीम खान से बदलकर 32 वर्षीय व्यक्ति राजेश कर दिया है।ट्विटर पर कई यूजर्स ने इसे लेकर अपनी निराशा जाहिर की है। एक यूजर ने लिखा, "आप क्रोनोलॉजी को समझिए। छपाक फिल्म एसिड अटैक सर्वाइवर लक्ष्मी अग्रवाल पर आधारित है। वास्तविक जीवन में जिसने एसिड फेंका था उसका नाम नदीम खान था। फिल्म में हमलावर का नाम बदल कर हिंदू नाम राजेश कर दिया गया। ऐसे में दीपिका का जेएनयू जाना आश्चर्यजनक नहीं है।" एक ने लिखा, "हे दीपिका, फिल्म में जिसने लड़की पर हमला किया था, उसका नाम क्या है? हमने नदीम खान की जगह राजेश सुना है। आप इतनी नीचे कैसे गिर सकती हैं। आप हिंदू नाम को कैसे दिखा सकती हैं।"छपाक दरअसल लक्ष्मी अग्रवाल की बायोपिक है, जिन पर 2005 में नईम नाम के युवक ने दिल्ली के ख़ान मार्केट में एसिड फैंका था। इस मैगज़ीन में इसको लेकर छपे लेख में दावा किया गया था कि फ़िल्म में नईम की जगह राजेश नाम को इस्तेमाल किया गया है। लेख में आरोप लगाया गया था कि ऐसा इरादतन किया गया है।एक न्यूज एजेंसी ने दावा किया कि छपाक में नदीम या नईम नामों का कोई ज़िक्र ही नहीं किया गया है। राजेश मालती के एक दोस्त का नाम है, ना कि विलेन का। फ़िल्म में मुख्य किरदारों के नाम बदल दिये गये हैं। लक्ष्मी की जगह मालती और नईम की जगह बशीर ख़ान यानि बब्बू इस्तेमाल किया गया है। यूजर्स का कहना है कि जब यह फिल्म सच्ची घटना पर आधारित है तो इस फिल्म में लक्ष्मी अग्रवाल पर एसिड फेंकने वाले शख्स का नाम बदला तो ठीक है लेकिन उसको हिंदू क्यों दिखाया गया है। इस फिल्म में दीपिका के कैरेक्टर का नाम भी लक्ष्मी से बदलकर मालती कर दिया गया है।
क्या है लक्ष्मी अग्रवाल की कहानी?
यह 22 अप्रैल 2005 की बात है। लक्ष्मी दिल्ली के खान मार्केट से गुजर रही थीं तभी नदीम खान ने उन्हें गिरा दिया और चेहरे पर तेजाब फेंक दिया। उस समय लक्ष्मी की उम्र महज 15 साल थी और नदीम ने शादी के लिए प्रपोज किया था, जिसे लक्ष्मी ने ठुकरा दिया था। लक्ष्मी ने उस वाकये को याद करते हुए कहा था, 'जिस तरह से कोई प्लास्टिक पिघलता है, उसी तरह से मेरी चमड़ी पिघल रही थी। मैं सड़क पर चलती हुई गाड़ियों से टकरा रही थी। मुझे अस्पताल ले जाया गया, जहां मैं अपने पिता से लिपट कर रोनी लगी। मेरे गले लगने की वजह से मेरे पिता की शर्ट जल गई थी। मुझे तो पता भी नहीं था मेरे साथ क्या हुआ है। डॉक्टर मेरी आंखें सिल रहे थे, जबकि मैं होश में ही थी। मैं दो महीने तक हॉस्पिटल में थी। जब घर आकर मैंने अपना चेहरा देखा तो मुझे लगा की मेरी जिंदगी खत्म हो चुकी है।'