विरह वेदना
May 11, 2019 •
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बादल घनश्याम
विरह वेदना खुशियों पर क्यों पड़ती भारी है,
मिलन खिलन पर खारे आँसू ,क्या लाचारी है ।
ह्रदय के हर स्पंदन में मीत प्रीत जब लिखी हुई ,
अंदर तक क्यों पैठी पीड़ा, हा - हाकारी है ।
फूल कलि खुशबू मांगे , मन आंगन महकाने को ,
कांटों से चांटों का पड़ना , पल पल जारी है ।
भला हुआ ना मिला मीत , गीत कहाँ तब गा पाता ,
प्रेम वासना बन मर जाता , अब तो हलचल तारी है ।
सच्चे साथी विरह वेदना, अंतिम पल तक साथ निभाते ,
बिन छुई सी छुअन भली , मन चंदन महकारी है ।