भेलसर(अयोध्या)सिर्फ भूखे रहने का नाम रोजा नहीं है।जुबान,आंख,कान,हाथ और पैर का भी रोजा होता है।रोजे की हालत में जुबान से अपशब्द से दूर रहना,आँखों से किसी बुराई को न देखना,कान से गलत बातों का न सुनना,हाथों से किसी पर ज्यादती न करना और पैरों से बुराई के रास्ते पर न जाना आदि रोजे के आदाब में शामिल है।यह बातें पूर्व चेयरमैन वसीम अंसारी वाली मस्जिद में बड़ी संख्या में मौजूद लोगों को सम्बोधित करते हुए मौलाना ग़ुलाम खैरुल बशर ने कही।
उन्होंने कहा कि जिस तरह बहार के मौसम में हर सुखे हुए पेड़ पौधों में जान आ जाती है और हर तरफ हरिया ली ही हरियाली नजर आती है,उसी तरह रमजान का महीना भी अपने साथ ऐसी बहार लेकर आता जिसमें गरीबों के प्रति हम दर्दी पैदा होती है और रोजेदार में एक खुशी का एहसास पैदा होता है।रोजा रखकर भूख और प्यास की शिद्दत का आभास होता है।जिससे भूखे और प्यासों के प्रति हमदर्दी पैदा होती है।इस हमदर्दी को बांटने का नाम ही रमजान है।उन्होंने आखिर में आपसी सौहार्द व मुल्क की शान्ती व् खुशहाली के लिए दुआऐं की।