सपा प्रत्याशी की हार की हुई समीक्षा, कई नेताओं पर गिर सकती है गाज मुस्लिम नेताओं की साख पर भी उठने लगीं उंगलिया  25 मई, 2019 - मानवी मीडिया

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Sunday, May 26, 2019

सपा प्रत्याशी की हार की हुई समीक्षा, कई नेताओं पर गिर सकती है गाज मुस्लिम नेताओं की साख पर भी उठने लगीं उंगलिया  25 मई, 2019





 


इस घोषणा पत्र को बाँट दो.                     बदायूं। सपा के गढ़ में धर्मेंद्र यादव की हार की समीक्षा शुरू हो गई। शुरुआती मंथन में कुछ के फूलछाप सपाई निकलने के बाद यह बात खुलकर सामने आ गई कि सपा के गढ़ में सेंधमारी ऐसे ही नेताओं के चलते हुई।साइकिल के अपने ही गढ़ में करारी हार मिलने के बाद फूलछाप सपाइयों की हकीकत खुलकर सामने आने लगी है।


नाम सामने आने के बाद धर्मेंद्र यादव ने फूलछाप सपाइयों को बुलाया तो वे किनारा कर गए। बुलाने पर एक-दो कार्यालय पहुंच गए तो उनकी ऐसी क्लास लगी कि वह कुछ बोल ही नहीं सके। तय माना जा रहा है कि सपा में जिला स्तर से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक के नेताओं पर कार्रवाई की जा सकती है।


गठबंधन के प्रत्याशी धर्मेंद्र यादव ने हार के बाद मंथन किया। उन्होंने अपने कार्यालय पर दरबार लगाया। इसमें ऐसे सपाइयों की भूमिका संदिग्ध लगी, जो फूलछाप हो चुके हैं। धर्मेंद्र ने ऐसे नेताओं को तलब कर लिया था, जो बार-बार बंपर जीत का आश्वासन देते रहे थे। धर्मेंद्र यादव के दरबार में कुछ ही कमलछाप पहुंचे। सपा प्रत्याशी ने उनकी जमकर क्लास लगा डाली। खास बात यह है कि कई वोटों के ठेकेदार भूमिगत हो गए और बुलावे पर भी नहीं पहुंचे। बरहाल गढ़ में सपा को ही मात दिलाने में कमलछाप कामयाब रहे हैं, लेकिन सपा के नेता समझ ही नहीं पाए।


मुस्लिम नेता की निष्ठा पर भी उठने लगीं अंगुलियां


बदायूं। सपा के गढ़ बदायूं में मिशन 2019 पर सपा हाईकमान और धर्मेंद्र यादव ने जिले के मुस्लिम नेता पर भरोसा जता लिया।चुनाव के शुरुआत दौर से लेकर अंत तक मुस्लिम नेता दौड़े तो मगर उनके दौडऩे का असर कोई नहीं दिखाई दिया है। सांसद को तो उसी दौरान भी खटक रही थी कि चुनाव लड़ाने के लिए वह अकेले ही आते हैं, भारीभरकम नजर नहीं आ रहे थे। मगर चुनाव की होड़ में धर्मेंद्र ने गौर नहीं किया, जो बात अब याद आई है। सूत्रों के मुताबिक कई मुस्लिम नेता की निष्ठा पर भी सपाइयों ने ही उंगली उठा दी है।


प्रदेश में पद लेकर चुनाव लड़ाने वाले नजर नहीं आए


बदायूं। लोकसभा चुनाव में बदायूं से सपा का किला ढह गया है। सपा की सुरक्षित सीट सपा के ही हाथ से निकल गई। इस सीट को बचाने के लिए सपा हाईकमान ने जिले में लाइन लगाकर प्रदेश महासचिव बनाए थे।मगर एक भी प्रदेश सचिव सपा को जिताने में काम नहीं आया। इसके चलते ही हार देखनी पड़ी है। धर्मेंद्र के हारने के बाद अगले दिन एक भी प्रदेश सचिव सांसद के सामने नजर नहीं आया है। जिसके बाद उनकी नजरों में ऐसे सभी प्रदेश सचिव आ गए हैं।


सहसवान, गुन्नौर क्षेत्र में सपा नेताओं पर सकती है हो कार्रवाई


बदायूं। वैसे तो बदायूं पूरा सपा का गढ़ था, लेकिन सहसवान और गुन्नौर धर्मेंद्र यादव के लिए बेहद करीब था और नेता भी घरेलू संबंध जैसे थे। मगर धर्मेंद्र यादव को मात यहीं पर मिली है। जिसके बाद सहसवान और गुन्नौर के नेताओं पर खतरे की तलवार लटक गई है। सहसवान, गुन्नौर के नेता धर्मेंद्र यादव को दिली दिलासा दिलाते रहे, मगर वोट में जनता को नहीं बदल पाए।


आबिद के बगावती तेवर के चलते सपा को देखना पडा हार मुंह


बदायूं। जिले से लेकर पार्टी हाईकमान तक सपा में धर्मेंद्र यादव के लिए ऊंचा कद और भारीभरकम के रूप में रहने वाले आबिद रजा लोकसभा चुनाव से पहले ही कांग्रेस में शामिल हो गए थे। आबिद रजा ने 2014 के चुनाव के अलावा हमेशा धर्मेंद्र यादव के लिए दल-बल के रूप में साथ रहे। मगर इस बार आबिद रजा कांग्रेस में पहुंच गए और इधर धर्मेंद्र यादव भी हार गए। जिसको लेकर राजनीतिक गलियारों में चर्चा हो रही है। लोग यह भी मान रहे हैं कि धर्मेंद्र का हारना कहीं आबिद रजा का कांग्रेस में जाना तो नहीं रहा। सहसवान व बिल्सी में मुस्लिम जागरूकता मिशन सपा के खिलाफ चला गया।



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