साध्वी प्रज्ञा ठाकुर ने देश के प्रथम आतंकवादी नथूराम गोडसे (जी उसका सही नाम नथूराम ही है, न कि नाथूराम) को देशभक्त बताया है, जिसमें चकित होने जैसी कोई बात नहीं है।
प्रज्ञा जिस पाठशाला की छात्रा हैं, वह पूरी की पूरी पाठशाला ही नथूराम को देशभक्त मानती है। ये लोग महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू, नेताजी सुभाष, सरदार भगत सिंह, अंबेडकर से बेहद नफरत करते हैं और प्रेम सरदार पटेल से भी नहीं करते।
लेकिन समाज में स्वयं की स्वीकार्यता बढ़ाने के लिए इन्होंने सबसे पहले सरदार पटेल से नकली प्रेम दिखाना प्रारंभ किया और अपने इस प्रेम का आधार बनाया सोमनाथ मंदिर के जीर्णोद्धार को। नेहरू जी की सहमति से पटेल द्वारा किए गए इस कार्य को ये लोग इस तरह पेश करते हैं, जैसे पटेल ने किसी मस्जिद को तोड़कर मंदिर बनवा दिया हो, जबकि उन्होंने केवल इतना काम किया था कि एक पुराने मंदिर की जगह नया मंदिर बनवा दिया था। पटेल के इस काम को इन लोगों का दुष्प्रचार तंत्र इस तरह पेश करता है, जैसे पटेल हाफपैंट पहनकर दक्ष-आरम करते रहे हों।
फिर इनकी राजनीतिक विंग अस्तित्व में आई, जिसका नाम था जनसंघ। तब इनकी समझ में आया कि गांधी से प्रेम का दिखावा करना होगा, वरना राजनीति में दाल नहीं गलेगी और इसके बाद इन लोगों ने सार्वजनिक मंचों से गांधी का गुणगान प्रारंभ कर दिया। हालांकि, इनका दिमाग तब भी नहीं बदला।
कॉमरेड सरदार भगत सिंह से प्रेम की नौटंकी इन लोगाें ने इसलिए की ताकि जरूरत के वास्ते उनके कंधे का इस्तेमाल गांधी जी पर निशाना साधने के लिए किया जा सके। कॉमरेड नेताजी सुभाष के प्रति भी ये लोग इसलिए प्रेम का प्रदर्शन करते हैं, ताकि उनके बहाने गांधी-नेहरू पर निशाना साधा जा सके।
बाबा साहेब अंबेडकर को इन लोगों ने वोट की मजबूरी के चलते स्वीकार किया है। नेहरू को ये घूर्त अब भी स्वीकार नहीं कर करते।
अगर कोई ऐसा यंत्र हो जिससे इनके मन की थाह पाई जा सके, तो पता चलेगा कि केवल गांधी ही नहीं, भारत के सभी नायकों के प्रति इनके मन में जहर भरा हुआ है। लेकिन ये उसे छिपाने की कोशिश करते हैं।
अलबत्ता साध्वी प्रज्ञा जैसे भी कुछ लोग हैं, जो अभी अभिनय की कला में पारंगत नहीं हो पाए हैं, इसलिए उनके मन की बात जुबां पर आ जाती है। अत: उनके बयान पर चकित होने की जरूरत नहीं है।
भाजपा को राजनीति करनी है, इसलिए उसे प्रज्ञा के बयान की निंदा करनी पड़ी, वरना तो सभी विद्यार्थी एक ही पाठशाला से पास होकर बाहर निकले हैं। इसीलिए उनके विचारों में भी कोई अंतर नहीं है।
हरिबोल...