पिछड़ा-अतिपिछड़ा के भेदभाव में कब तक संघ के शिकार होंगे* - मानवी मीडिया

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Saturday, May 25, 2019

पिछड़ा-अतिपिछड़ा के भेदभाव में कब तक संघ के शिकार होंगे*

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*क्या यादवों व जाटवों ने गैर यादव पिछड़ों व गैर जाटव दलितों की हकमारी किया?*
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ये सारे ठाकुर,ब्राम्हण,भूमिहार सवर्ण क्यों जी-जान से लगे हुए हैं मोदी को जिताने में, क्योंकि मोदी से उन्हें उम्मीद बढ़ी है।मोदी ने एक दो काम उनके करके सवर्णों का विश्वास जीता है।चाहे वह 13 प्वाइंट रोस्टर का मामला हो या सवर्णों को 10% आरक्षण का मामला हो।संविधान की प्रति जलाकर मनुस्मृति को लागू करने का उनका सपना मोदी ही पूरा कर सकते हैं, क्योंकि मोदी अपना पूरा जीवन संघ को समर्पित कर चुके हैं और संघ के एजेंडे को पूरा करना मोदी की प्रतिबद्धता है।मोदी अपने राजनीतिक जीवन में संघ के एजेंडे को पूरा करते हुए दिखते भी हैं।
किसी भी व्यक्ति को जीवन एक ही मिलता है। संघ को अपना जीवन देने के बाद मोदी जी के पास देश को देने के लिए दूसरा जीवन बचा ही कहां है?
यहीं ठाकुर, ब्राम्हण,भूमिहार,त्यागी जब कांग्रेस मजबूत थी, तो उसके साथ शिद्दत से खड़े थे।ज्यों-ज्यों प्रतियोगिता बढ़ी सवर्णों की मुश्किलें भी बढ़ती गयी और कांग्रेस धर्म निरपेक्षता का चोला उतारने को तैयार नहीं हुई।ऐसी परिस्थिति में सवर्णों को एकमात्र आसरा भाजपा का ही रह गया था,जो धार्मिक मुद्दों पर ही देश को चलाने की पक्षधर रही है।इसलिए जबतक भाजपा कमजोर रही उसे मजबूत होने का इंतजार सवर्ण करते रहे। ज्योंहि भाजपा सत्ता में आयी सवर्णों ने पाला बदल लिया।अब तो लगता है वे कांग्रेस को जानते ही नहीं हैं। कांग्रेस ब्राह्मण कार्ड धीमा खेल रही थी और भाजपा इस पिच पर तेज खेलती है।इसलिए सवर्णों को मोदी के रहते उनका लक्ष्य जल्द मिलने की इच्छा बलवती हो गयी है।आज उनको लगता है मोदी केवल प्रधानमंत्री ही नहीं उनके भाग्यविधाता बनके आये हैं। जो उनके अरमानों की सही तरीके से रक्षा कर सकते हैं और कमजोर हुई ब्राह्मणवादी व्यवस्था को पुनः मजबूत कर सकते हैं। हमें भाजपा व कांग्रेस को भूलकर तीसरे विकल्प के बारे में गहराई से विचार करने की आवश्यकता है।
अब हमें विचार करना है कि हमें क्या करना चाहिए ? इसके लिए तो पहली शर्त है कि हमें ब्राह्मणवादी व्यवस्था की तिलांजलि देनी होगी। बिना इस मकड़जाल से बाहर निकले कल्याण सम्भव नहीं है।ऐसी बातें करने पर अक्सर हमें देशविरोधी समझ लिया जाता है,जबकि यहां व्यवस्था विरोध की बात हो रही है। ब्राम्हणों ने चौतरफा यह व्यवस्था इतनी मजबूत कर ली है कि उन्हें भी यह भरोसा हो चला है कि उनका किला अभेद्य है।उसे कोई तोड़ नहीं सकता।लेकिन समाज में धीरे-धीरे ही सही जनजागृति बढ़ने से उनके भी माथे पर पसीना आना शुरु हो गया है। दलितों ने काफी हद तक राजनीतिक पैठ मजबूत कर ली है और सवर्णों से दूरी बनाकर प्रतिकार करना भी शुरू कर दिया है।पिछड़ा समाज जिस दिन अपनी दुर्दशा का कारण इन सवर्णों को समझने लगा उस दिन वह भी अपनी लाईन लेना शुरू कर देगा। इस बात को सवर्ण समझता है इसलिए पिछड़ों को भान ही नहीं होने देता और हिन्दू धर्म पर खतरा बताकर हमारा ध्यान मुस्लिमों की ओर मोड़ देता है और हम बिना दिमाग लगाये उनकी बातों में आकर मुसलमानों से दुश्मनी निभाने लगते हैं और सवर्ण हिन्दू के नाम पर सत्ता में आ जाता है और हमें फिर से शूद्र समझने लगता है और खुद उन्हीं मुसलमानों से रिश्ते व व्यापार का संबंध बनाकर रखता है। ब्राम्हणवाद को मजबूत करने के नाते ही हम सत्ता से दूर होते चले जा रहे हैं और ब्राम्हण अल्पसंख्यक होकर भी हम बहुसंख्यकों पर राज करने लग जा रहे हैं। अब ये व्यवस्थायें बदलनी चाहिए, अभी नहीं तो कभी नहीं !!
आरएसएस समर्थक ब्राह्मण व सवर्ण पिछड़ों,दलितों को बाँटने के षड़यंत्र में बड़ी सफाई से जुटा हुआ है।भाजपा संघ नियंत्रित राजनीतिक अंग है,जिसका उद्देश्य ही है-बांटों-छाँटो और शासन करो और उसमें वह सफल भी हुआ है।वर्णव्यवस्था की पोषक ताक़तों को भली भाँति पता है कि पिछड़ों-दलितों की ताकत को कमजोर किये बिना,उसकी डाल गलने वाली नहीं।सो,उसने पिछड़ा-अतिपिछड़ा,यादव-गैर यादव,दलित-अतिदलित,जाटव-गैर जाटव दलित की विभाजनकारी रेखाएं खींच भेदभाव व आपसी दुश्मनी जैसी कटुता,दुराव पैदा कर दिया है।
*क्या यादव,जाटव ने वास्तव में किया गैर यादव व गैर जाटव की हकमारी?*
यह अति गम्भीर व विचारणीय पहलू है कि यादव ने गैर यादव पिछड़ों-निषाद,मल्लाह,केवट,बिन्द, कश्यप,लोधी,किसान,राजभर,चौहान,कोयरी,काछी,पाल-बघेल,विश्वकर्मा, प्रजापति आदि की हकमारी की,इनके हक-हिस्से को हड़पा?मेरी समझ से यह आरोप व शिकायत आधारहीन है।इसी तरह यह आरोप भी गलत है कि जाटव/चमार ने धानुक,कोरी,धोबी,पासी,वाल्मीकि,खटिक का हक मारा है।सही तौर पर जनसंख्या की दृष्टि से उक्त गैर जाटव दलित जातियों ने जाटवों से बेहतर प्रतिनिधित्व पाया है।काश,कम भी होगा तो ये जातियाँ जाटव बच्चों के शैक्षणिक अभिरुचि,लगनशीलता व प्रतिस्पर्धा का भी आत्मावलोकन करें।
*2006 में माननीय नेता जी उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे।पुलिस,पीएसी में 38% यादव भर्ती हुए।सपा-बसपा में विरोध तल्ख था।2007 में मायावती मुख्यमंत्री बनीं।जब 2008 में पुलिस,पीएसी की भर्ती हुई,तो 42.3% यादव भर्ती हुए।सबसे मजेदार बात यह है कि भाजपा सबसे ज्यादा यादवों पर गैर यादव पिछड़ी जातियों का हिस्सा हड़पने का आरोप लगाती है और यही उसकी राजनीति का मुख्य आधार है।क्योंकि भाजपा भेदभाव व डिवाइड एन्ड रूल की पॉलिसी करती है।पिछले वर्ष योगी की सरकार ने पुलिस की भर्ती कराया,जिसमें 43% से अधिक यादव हुए।सच्चाई यह है कि पुलिस,पीएसी,सीआरपीएफ, सीआईएसएफ, बीएसएफ,आरपीएफ, आर्मी आदि में यादव अधिक चयनित होंगे,क्योंकि उनमें इसकी अर्हता पाई जाती है।*
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जनसंख्या की दृष्टि से यादव लगभग 9% व जाटव 11% से अधिक हैं।गैर यादव पिछड़ों में कुर्मी,निषाद, लोधी,कोयरी-काछी,पाल-बघेल,जाट,तेली,राजभर,चौहान,बढ़ई-लोहार,प्रजापति ही ऐसी जातियाँ हैं,जिनकी संख्या 1% से अधिक है।निषाद मछुआ समुदाय की बात की जाय तो इनकी संयुक्त संख्या जरूर यादव के बराबर है,पर ओबीसी में 6 जगह अलग अलग है।यही हाल कोयरी-काछी का भी है।इसकी संख्या लगभग 5% है,जो 5-6 जगह ओबीसी की सूची में है।
*यादव व अन्य पिछड़ों में व्यवहारिक अंतर-*
लोकसभा चुनाव के दौरान हमें कई जिलों में प्रवास का अवसर प्राप्त हुआ।यादव का लड़का पढ़ता, दौड़ता,व्यायाम करता दिखा,तो दूसरी तरफ मल्लाह,केवट,बिन्द, बियार, कहार,धीवर,तुरहा,कश्यप,किसान,लोधी,नोनिया,राजभर का लड़का तास खेलता,मोबाइल में भोजपुरी नाच-गाना देखता सुनता व ताल-तलैया,नहर-पोखरी,तालाब व नदी में मछली पकड़ता मिला।तब भी यह आरोप की यादव अतिपिछड़ों का हिस्सा हड़प लिए।बेहद शर्मनाक है। *जो पढ़ता है वह बढ़ता है।प्रतिनिधित्व प्रतिस्पर्धा से मिलता है ईर्ष्या-द्वेष से नहीं।* कान के कच्चे अतिपिछड़े सवर्णों के भड़कावे में आकर अपने बड़े भाई सरीखे यादवों को अपना दुश्मन मान अपने हर स्तर पर विरोधी के खेमे के अंग मान लेते हैं।यादव जाति सवर्णों व अतिपिछड़ों-अतिदलितों के बीच की वह मजबूत दीवाल है,जो सामन्तों के अत्याचार,अनाचार व उत्पीड़न से मुक्ति दिलाने में रक्षा-कवच का काम करता है।
*क्या ओबीसी का 3 श्रेणीयों में उपविभाजन से अतिपिछड़ों को मिलेगा लाभ?-*
वर्तमान आरक्षण व्यवस्था में ओबीसी का उपवर्गीकरण लाभकारी की बजाय नुकसानदायक है।जब तक ओबीसी को जनसंख्या अनुपाती आरक्षण कोटा नहीं,वर्गीकरण का कोई मतलब नहीं। *भाजपा ओबीसी,एससी की जातियों के मध्य नफरत पैदा कर इनकी ताक़त को कमजोर करने का षडयंत्र करती रही है।इसमें वह कई मोर्चों पर सफल हुई।भाजपा को अच्छी तरह पता है कि पिछड़े एक रहे तो उसकी डाल गलने वाली नहीं।गैर यादव पिछड़े व अतिपिछड़े बेवजह यादवों को अपना दुश्मन मान अपने असली दुश्मन सवर्ण पोषित भाजपा को बढाने में लगे हैं।*
भाजपा गठबंधन को अपेक्षा से काफी अधिक सीटें मिली हैं।जो चिन्ता का विषय है।सच कहूँ तो स्वयं भाजपा रणनीतिकारों को भी 200 का छूने का विश्वास नहीं था,पर उसे अप्रत्याशित सीटें मिलीं,जो हम जैसे सामाजिक न्याय चिंतकों के लिए चिंताजनक है।यह चिंता इसलिए नहीं कि हम जिस समाजवादी पार्टी के समर्थक हैं।चिंता का कारण सामाजिक न्याय पर मंडरा रहा खतरा है।पर,अतिपिछड़ों को इसका कोई भान नहीं है।जिस वाल्मीकि,भंगी,मेहतर,धरकार,बाँसफोर,दुसाध,खटिक,पासी,धानुक,कोल, कोरी,गोंड़ आदि हिन्दू सामाजिक स्तरीकरण में बहुत ही नीचे स्थान दिया गया,वह सबसे बड़ा हिन्दू बन रहा है और उसे ही मुसलमानों से खतरा दिख रहा है।भाजपा मुसलमानों से हिन्दू व हिंदुत्व को खतरा का नाटक करती है।पर,भाजपा व आरएसएस के बड़े नेता मुसलमानों को जीजा व दामाद बना रहे।न जाने तब इनका हिंदुत्व कहाँ रहता है?
*भाजपा ओबीसी,एससी आरक्षण को कर रही निष्प्रभावी-*
5 वर्ष में भाजपा की केंद्र सरकार ओबीसी,एससी व एसटी आरक्षण के कोटे की बाट लगा दिया है।भाजपा के अंधभक्त अतिपिछड़े अतिदलित चौकीदार पिछड़ों-दलितों के सामाजिक न्याय पर किये जा रहे कुठाराघात से बेखबर हैं।भाजपा बड़ी सफाई से ओबीसी,एससी आरक्षण को बड़े सफाई से निष्प्रभावी कर रही है।भाजपा शिकारी है जिसके शिकार अतिपिछड़े व अतिदलित हैं।
*क्या मोदी पिछड़ा-दलित हितैषी हैं-*
मोदी नैसर्गिक पिछड़े नहीं हैं।बल्कि आरएसएस की रणनीति के तहत 2001 में अपनी जाति को ओबीसी में शामिल कर दिए।2014 में अपने को पिछड़ी जाति का बताते थे।इस चुनाव में इन्होंने व अमित शाह ने अतिपिछड़ी जाति का प्रचारित किया।जब गुजरात में अतिपिछड़ी जाति की कटेगरी नहीं,तो मोदी अतिपिछड़े कैसे? *मोदी सरकार के कुछ पिछड़ा-दलित विरोधी बानगी को देखें-*
1.सेन्सस-2011 के अनुसार एससी, एसटी,धार्मिक अल्पसंख्यक(सिख,ईसाई, बौद्ध,जैन,पारसी,मुस्लिम,रेसलर आदि) ही नहीं,ट्रांसजेंडर व दिव्यांग की जनगणना रिपोर्ट उजागर कर दी गयी,पर अपने को पिछड़ी जाति का बतलाने वाले पीएम ने ओबीसी की जनसंख्या को उजागर नहीं किया।
2.13अगस्त,1990 को मण्डल कमीशन की सिफारिश के तहत ओबीसी को 27% आरक्षण की अधिसूचना जारी की गई,जिसका विरोध भाजपा ने किया।42 ब्राह्मण सवर्ण अधिवक्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका डालकर विरोध किया।इंदिरा साहनी व अन्य वनाम भारत सरकार के मामले में मुख्य न्यायाधीश कानिया की अध्यक्षता में गठित 9 जजों की पूर्णपीठ ने 16 नवम्बर,1992 को 2/3 बहुमत से ओबीसी के 27% आरक्षण को वैध करार दिया।
न्यायालय ने अपने निर्णय में कहा कि ओबीसी को 27 प्रतिशत कोटा तो हरहाल में देना होगा।यदि खुली प्रतियोगिता में कोई ओबीसी अभ्यर्थी सामान्य के लिए निर्धारित कट ऑफ मेरिट के बराबर या अधिक अंक अर्जित करता है,तो उसको अनारक्षित कोटा में स्थान मिलेगा,न कि ओबीसी में।पर मोदी सरकार ने 1994 के ओएमआर में बदलाव कर नियम बना दिया कि अब किसी भी स्थिति में ओबीसी,एससी, एसटी को कोटा से बाहर कोटा नहीं मिलेगा यानी आरक्षित वर्ग जिसकी संख्या 85-87% को 49.5% में ही सीमित रहना होगा।जो घोर अन्याय है।भाजपा सरकार ने अघोषित तौर पर सवर्णों को 50.5%आरक्षण दे दिया।पर,मोदी भक्त चौकीदार बेखबर हैं।
3.संविधान से परे जाकर मोदी सरकार ने 72 घण्टे के अंदर 13-15% सवर्णों को आर्थिक आधार पर 10% कोटा दे दिया और फटाफट इसे केंद्र व राज्यों में लागू कर दिया गया।फिर भी यादव विरोधी अतिपिछड़े मोदी व भाजपा के अंधभक्त व चौकीदार बन हुए हैं।
4.पिछड़ों ,दलितों को मुसलमानों से नहीं सामंती मनुवादी सवर्णों से खतरा है।एकलव्य का अंगूठा यादवों या मूसलमानों ने नहीं सवर्ण ब्राह्मण द्रोणाचार्य ने कटवाया।शम्बूक ऋषि की गर्दन राम से ब्राह्मणों ने ही कटवाया।
5. *"सौ में नब्बे शोषित हैं,नब्बे भाग हमारा है"*,की मांग करने वाले बाबू जगदेव प्रसाद कुशवाहा की हत्या सामंती सवर्णों ने ही किया।
*उच्च शिक्षा में रोस्टर सिस्टम-*
विश्वविद्यालय व महाविद्यालय में प्रोफेसर पद पर भर्ती में मोदी ने संस्थान आधारित 200 पॉइंट रोस्टर सिस्टम को खत्म कर विभाग आधारित 13 पॉइंट रोस्टर सिस्टम लागू कर पिछड़ों-दलितों के प्रतिनिधित्व से वंचित कर दिया।फिर अतिपिछड़े-अतिदलित मोदी के अंधभक्त व चौकीदार बने हुए हैं।
*राउंड अप नियम को राउंड ऑफ सिस्टम में परिवर्तन-*
जब मोदी के अंधभक्त चौकीदार बनने में ही खुश हैं,तो उनके सामने राउंड अप व राउंड ऑफ की बात करना उसी तरह है,जैसे- *भैंस के आगे बिन बजाए,भैंस पगुराये जाए""।*
राउंड अप का मतलब अग्रेतर क्रम(आरोही) में पूर्णता व राउंड ऑफ का मतलब अवरोही क्रम में में पूर्णता होता है। यानी-राउंड अप नियम के अनुसार-1.67.....1.99 का मतलब 2 होता था,पर भाजपा ने राउंड ऑफ में तब्दील कर दिया,जिसके अनुसार 1.67.... 1.75 .... 1.99 का मतलब 2 नहीं 1 होगा,जिसे ओबीसी,एससी कोटे का नुकसान या हकमारी है।इस नियम से 0.99 का मतलब 1 नहीं 0 होगा।
*बड़ी विनम्रतापूर्वक बताना चाहता हूँ कि मैंने अपने दौरे के अनुसार देखा कि यादव का लड़का गाय,भैंस भी चरा रहा था,तो वह किसी पेड़ की छाँव में किताब लिए पड़ता मिला,पर को बदनाम करने व हकमारी का आरोप लगाने वाले निषाद, बिन्द, केवट,मल्लाह,राजभर,बियार, चौहान, धीवर, कहार के लड़के मंदिर या पेड़ के नीचे तास, जुआ खेलते व नदी,नहर,ताल,गड़ही, पोखरी में मछली पकड़ते व शाम को दारू के ठेके पर दिखाई दिए।अपुन प्रैक्टिकल की बात करता है,थ्योरी की नहीं।
*ओबीसी के उपवर्गीकरण का नफा-नुकसान:-*
गैर यादव पिछड़ी जातियाँ आरोप लगाती हैं कि हमारा हक हिस्सा यादव खा गया।इसलिए ओबीसी को 3 श्रेणियों में बांट दिया जाय तो अतिपिछड़ों अत्यंत पिछड़ों को उनका हक मिलने लगा और यही लॉलीपॉप आरएसएस व भाजपा के फिरकापरस्त दिखाते हैं।क्योंकि अतिपिछड़ों,अतिदलितों के आधार पर ही भाजपा की राजनीति टिकी हुई है।भाजपा तो डिवाइड एन्ड रूल की पालिसी पर चलती है और दुष्प्रचार कर पिछड़ों को लड़ाकर राजनीतिक लाभ उठाती है।
*माना रोहिणी आयोग के अनुसार पिछड़ों को 3 उपश्रेणियों में विभक्त कर 9-9 आरक्षण कोटा दे दिया जाय और किसी विभाग में 10 पद की रिक्तियां निकले तो ओबीसी को 27% कोटा के नियमानुसार 27/10=2.7 हिस्सा मिलेगा और ओबीसी उपविभाजन के बाद 2.7/3=0.90 यानि राउंड ऑफ सिस्टम के अनुसार ओबीसी,एमबीसी,ईबीसी को कोई प्रतिनिधित्व नहीं मिल पायेगा।*
(अगली बार कुछ और विशेष जानकारी के साथ मिलूँगा)
*चौ.लौटनराम निषाद*
9415761409/8795265347


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