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Tuesday, May 7, 2019

मोदी सरकार पर चार लाख करोड़ रुपए के घोटाले का आरोप, सुप्रीम कोर्ट ने जारी किया नोटिस







 



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Supreme Court issues notice to government of India and Odisha, Jharkhand and Karnatka on extension of leases of 358 mines
 



मोदी सरकार पर खदानों के आवंटन में गड़बड़ी का आरोप है. फाइल फोटो.



 


केंद्र की मोदी सरकार पर इस कार्यकाल के दौरान हुए सबसे बड़े  भ्रष्टाचार का बड़ा आरोप लग रहा है. आरोप है कि सरकार ने देश भर में कच्चे लोहे और दूसरे अयस्कों की 358 खदानों की लीज यानी पट्टे का समय बढ़ा दिया. इसके लिए खदानों का वैल्यूएशन यानी उनकी कीमत का आंकलन भी नहीं किया गया. इससे सरकार को 4 लाख करोड़ रुपए का नुकसान हुआ है. इसे मनमोहन सिंह की सरकार के समय हुए 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले जैसा ही माना जाए. इसके लिए बाकायदा सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दाखिल की गई है. इस पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी करके पूछा है कि क्यों न इन माइनिंग लीज को रद्द कर दिया जाए?


याचिका में क्या आरोप लगाए गए हैं?
सुप्रीम कोर्ट में ये याचिका एडवोकेट एमएल शर्मा ने दाखिल की है. फाइनेंशियल एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक इसमें आरोप लगाए गए हैं कि


1-केंद्र सरकार ने राज्य सरकारों को बाध्य किया कि वे 288 खदानों की लीज का समय बढ़ा दें.
2-इसके लिए साल 2015 में माइन्स एंड मिनरल्स एक्ट में संशोधन किया गया.
3-कच्चे लोहे समेत दूसरे अयस्कों की 358 खदानों की माइनिंग लीज की अवधि बढ़ाई गई.
4-इसके लिए खदानों के मूल्य का आंकलन आज के समय के मुताबिक नहीं किया गया.
5-खदानों को दोबारा आवंटित करने के लिए नीलामी प्रक्रिया को भी नहीं अपनाया गया.
6-ज्यादातर खदानें उन्हीं कंपनियों को दे दी गईँ, जिनके पास पहले से वे खदानें थीं.
7-इसके लिए केंद्र सरकार ने सिर्फ एक आदेश जारी किया.


सुप्रीम कोर्ट में किस बात का केस किया गया है?


याचिका में कहा गया है कि MMDR यानी माइंस एंड मिनरल्स डेवलपमेंट एंड रेगुलेशन एक्ट की धारा 8ए अवैध है. इसी सेक्शन के जरिए खदानों को दोबारा उन्हीं कंपनियों को दे दिया गया, जिनके पास वे पहले से थीं. पट्टों की समयसीमा 50 साल या उसकी अवधि खत्म होने तक कर दी गई है. कोयला के अलावा दूसरे खनिजों की खदानों के पट्टे 5 से 20 साल के लिए बढ़ाए गए हैं. इसके लिए एमएमडीआर एक्ट के संशोधन का सहारा लिया गया है. नीलामी से पट्टे दिए जाते तो 80 से 100 फीसदी फायदा हो सकता था.


क्या खदानों के बदले भाजपा ने पैसा लिया है?


फाइनेंशियल एक्सप्रेस में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक याचिका में आरोप लगाया गया है कि इस पूरे खेल में जमकर भ्रष्टाचार हुआ है. आरोप है कि बड़ी-बड़ी कंपनियों को लीज दिया गया है. जिन कंपनियों को लीज दी गई है, उन कंपनियों ने डोनेशन भी दिया है, जो गंभीर आर्थिक अपराध है. इस पूरी प्रक्रिया में सरकारी खजाने को करीब 4 लाख करोड़ रुपए का नुकसान हुआ है.


फाइनेंशियल एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक गोवा की 160, कर्नाटक की 45 और ओडिशा की 31 खदानों का रिन्यूवल किया गया. इनमें से ज्यादातर खदानें वेदांता ग्रुप और टाटा ग्रुप के कंपनियों के अधीन थीं. खास बात ये है कि यही दोनों ग्रुप सत्ताधारी भाजपा को सबसे ज्यादा चंदा देते रहे हैं.


याचिका में मुख्य मांग क्या की गई है?

याचिका में गुजारिश की गई है कि खदानों का आवंटन रद्द करके सीबीआई जांच कराई जाए. ये पट्टे बिना किसी नए मूल्यांकन के या नीलामी प्रक्रिया अपनाए इन कंपनियों को दिए गए हैं. पट्टे बिलकुल फ्री दिए गए हैं. इनको रद्द करके नए सिरे से नीलामी के जरिए आवंटन किया जाए. और कंपनियों से मार्केट रेट के आधार पर पैसे की वसूली की जाए. इसके साथ-साथ MMDR एक्ट के सेक्शन 8ए को रद्द किया जाए.


सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?


सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका पर केंद्र सरकार के साथ-साथ ओडिशा, झारखंड और कर्नाटक की सरकारों को नोटिस जारी किया है. केंद्र सरकार से पूछा गया है कि क्यों न इन खदानों के आवंटन को रद्द कर दिया जाए? सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस एसए बोबडे और जस्टिस एस अब्दुल नजीर की बेंच ने सीबीआई को भी नोटिस जारी किया है. कोर्ट ने सीनियर एडवोकेट पीएस नरसिम्हा को केस में सहयोग के लिए नियुक्त किया है.


कौन हैं एमएल शर्मा, जो इस केस को सुप्रीम कोर्ट तक लेकर गए?


एम एल शर्मा का पूरा नाम है मनोहर लाल शर्मा. सुप्रीम कोर्ट में वकील हैं और जनहित याचिकाएं दाखिल करने के लिए जाने जाते हैं. कोयले के ब्लॉक आवंटन में हुए घोटाले को लेकर सुप्रीम कोर्ट में पहली पीआईएल मनोहर लाल शर्मा ने ही की थी. मनोहर लाल शर्मा ही वो वकील थे, जिन्होंने निर्भया गैंग रेप के दोषियों का केस लड़ा था. 2013 में जब सुप्रीम कोर्ट में एक इंटर्न के सेक्शुअल हैरेसमेंट का मामला आया था, तो एमएल शर्मा ने पीड़िता के खिलाफ ही याचिका दाखिल कर दी थी. इसके बाद एमएल शर्मा ने सुप्रीम कोर्ट में जजों की नियुक्ति के लिए बने नेशनल ज्यूडिशियल अपॉइंटमेंट कमीशन को भी कोर्ट में चुनौती दी थी. 2015 में सुप्रीम कोर्ट ने एमएल शर्मा को नोटिस जारी करते हुए पूछा था कि क्यों न अब से एमएल शर्मा को किसी तरह की जनहित याचिका दाखिल करने से रोक दी जाए. अब 2019 में एमएल शर्मा ने एक बार फिर से पीआईएल दाखिल की है और आरोप लगाया है कि एनडीए की सरकार में लोहे के अयस्कों के खदानों के आवंटन में 4 लाख करोड़ रुपये का घोटाला हुआ है.









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