मंदिर निर्माण ना होने के कारण मतदाता नाराज़, सरकार बदलने के मूड में है
मंदिर निर्माण के लिए 'अपनों' का लगातार बढ़ता दबाव भाजपा नहीं झेल पा रही हैं. उन्हें अचानक संविधान, क़ानून और अदालत की मर्यादा की फ़िक्र हो आई है.राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और उसके परिवार के संगठनों के पैंतरों का नहीं लगा सकता. ! राम जन्मभूमि बाबरी मस्जिद विवाद के सद्भावपूर्ण समाधान के लिए कई पैरोकार सुलाह करने में लगे हुए थे.अलबत्ता, इस बहाने भी उन्हें दूसरे पक्ष का सम्पूर्ण आत्मसमर्पण ही अभीष्ट था और वे चाहते थे कि मोदी योगी से आतंकित मुसलमान एकतरफा तौर पर बाबरी मस्जिद पर अपना दावा वापस लेकर भव्य राममंदिर के निर्माण का रास्ता साफ कर दें.लेकिन अब, जब वे अपने उद्देश्य में विफल होते हुए दिख रहे हैं, साथ ही उनकी 'सद्भावकामना' की पोल खुल गई है और चुनाव आने वाले हैं, उनकी 'बोली बदल गई है.
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री योगी आदित्यनाथ समेत जो महानुभाव देश व उत्तर प्रदेश दोनों में पूर्ण बहुमत वाली भाजपा सरकारें बन जाने पर, आवश्यकता हुई तो कानून बनाकर भी, 'वहीं' मंदिर बनाने के वादे के साथ इस विवाद का भरपूर दोहन कर सत्ता या संवैधानिक पदों पर जा पहुंचे हैं और अब मंदिर निर्माण के लिए 'अपनों' का लगातार बढ़ता दबाव नहीं झेल पा रहे,है उन्हें अचानक संविधान, कानून और अदालत की मर्यादा की फिक्र को देखते हुए में कहा कि मंदिर निर्माण के रामकाज में जब तक प्रभु फ्री राम की कृपा नहीं होती, तब तक धीरज रखने को कहना शुरू कर दिया है .उन्हें याद नहीं रह गया है कि इससे पहले, दूसरे दलों के प्रधानमंत्रियों और मुख्यमंत्रियों के वक्त, वे स्वयं भी कहा करते थे कि हिंदुओं की आस्था का होने के कारण यह मामला सारे कानून-कायदों से ऊपर है. इस कारण अदालतें इसका फैसला ही नहीं कर सकतीं और हिंदुओं के धैर्य रखने की सीमा अब पार हो चुकी है.लेकिन उनके 'संत' हैं कि अब उनकी एक भी सुनने को तैयार नहीं. वह अपनी आक्रामकता छिपा पा रहे हैं, न ही खीझ और न झुंझलाहट. इनमें साध्वी ऋतम्भरा के गुरू स्वामी परमानंद सरस्वती भी शामिल हैं, जिन्हें उनके समर्थक युगपुरुष कहते हैं.गत 25 जून को अयोध्या में श्रीरामजन्मभूमि न्यास के अध्यक्ष महंत श्री नृत्यगोपाल दास के अस्सीवें जन्मदिवस समारोह में आयोजित संत सम्मेलन में मुख्यमंत्री श्री योगी आदित्यनाथ ने भी संबोधित करते हुए कहा था कि आस्था के प्रतीक श्री राम मंदिर का काम जल्द होगा, वही साधु संतों ने कहा कि श्री राममंदिर न बनाने में अब कौन-सा बहाना बचा है, केंद्र कथा उत्तर प्रदेश दोनों में भाजपा सरकारें हैं, राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, राज्यपाल और मुख्यमंत्री से लेकर अयोध्या के विधायक और महापौर भी 'अपने' हैं.मुख्यमंत्री से इसका कोई सीधा जवाब देते नहीं बना रहा है तो उन्होंने अदालती फैसले और संवैधानिक मर्यादाओं के पालन की मजबूरी बताते हुए कुछ दिन और धैर्य रखने का 'उपदेश' ही दोहरा डाला. लेकिन इसका कोई अर्थ नहीं था कि उसमें भाजपा के फायरब्रांड पूर्व सांसद श्री रामविलास वेदांती के इस सवाल का जवाब नहीं था कि अदालत के फैसले की प्रतीक्षा क्यों की जाये.? क्या बाबर ने किसी अदालती निर्णय के फलस्वरूप राममंदिर ढहाकर उसकी जगह मस्जिद बनाई थी? 1949 में 22-23 दिसंबर, 1949 की रात उस मस्जिद में रामलला का प्राकट्य क्या किसी अदालत के निर्देश पर हुआ था.? सवालों की इस झड़ी के बीच वेदांती ने यह भी याद दिलाया कि 1992 में श्री लालकृष्ण आडवाणी ने अपनी बहुप्रचारित रथयात्रा निकाली तो भी मामला अदालत में था और छह दिसंबर को हुई कारसेवा में बाबरी मस्जिद ढहाकर उसके मलबे पर अस्थायी मंदिर तो सर्वोच्च न्यायालय के यथास्थिति बनाये रखने के आदेश की अवज्ञा करके ही बनाया गया था. तब अदालती आदेश की परवाह नहीं की गई तो अब करने की क्या तुक हैं.?
विश्व हिंदू परिषद के 'बागी' श्री प्रवीण तोगड़िया ने वेदांती के सवालों यह कहकर नई धार दे दी कि अगर यही बहाना करना था कि मामला अदालत में है तो भाजपा ने यह वादा ही क्यों किया था कि वह सत्ता में आने पर राम मंदिर बनायेगी?1992 में श्री लालकृष्ण आडवाणी की रथयात्रा के समय मुंबई में लगा एक पोस्टर अगर मंदिर निर्माण के लिए भगवान श्री राम की कृपा पर ही निर्भर करना था तो कारसेवक यह नारा क्यों लगाते थे कि 'रामलला हम आये हैं, मंदिर बनाके जायेंगे.? तोगड़िया ने मोदी सरकार के चार महीनों में कानून बनाकर मंदिर निर्माण का रास्ता साफ न करने पर 'अयोध्या कूच' की भी धमकी दी। प्रसंगवश, श्री योगी आदित्यनाथ एवं श्री महंत नृत्यगोपाल दास के पिछले जन्मोत्सव में भी आये थे. अपनी उसी वक्त की गई घोषणा के अनुसार वे इस बार भी पधारे, लेकिन प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने लगातार चौथे साल भी अपने को उत्सव से किनारा किये रखा. अयोध्या से सायास परहेज के क्रम में वे महंत के अमृत महोत्सव में भी नहीं आये थे-सादर आमंत्रित किए जाने और पलक पांवड़े बिछाये के बावजूद.इससे स्वाभाविक ही इस अंतर्विरोध को भी हवा मिली कि अयोध्या मामले को लेकर मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री के सुरों में अभी भी कोई समन्वय नहीं है और अब तो उनके समर्थकों के अंतर्विरोध भी खूब उजागर हो रहे हैं, जिसे कई हलकों में उनकी चित और पट दोनों अपनी करने की चालाकी से जोड़कर भी देखा जा रहा है.भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के अयोध्या के वरिष्ठ नेता श्री सूर्यकांत पांडेय इसे इस रूप में परिभाषित करते हैं कि अटल सरकार के समय भाजपाई और अन्य संघ परिवारी कहते थे कि वे भाजपा का पूरा बहुमत न होने के कारण मंदिर नहीं बना पा रहे.जनता ने नरेंद्र मोदी की पूरे बहुमत की सरकार बनवा दी तो कहने लगे कि उत्तर प्रदेश में अपनी सरकार बनाये बिना कुछ नहीं कर सकते. उत्तर प्रदेश में भी उनकी सरकार बन गई और उनके पास अपने मतदाताओं से करने को कोई बहाना नहीं बचा तो अब अपने ही पुराने रवैये को काट और इधर-उधर की हांक रहे हैं.पांडेय कहते हैं, 'लेकिन हमें क्या, यह भाजपा और उसके मतदाताओं के बीच का मामला है. ये नाराज मतदाता ही आखिरकार उन्हें सबक सिखायेंगे. हम तो पहले से कहते आ रहे हैं कि उन्हें मंदिर-वंदिर कुछ नहीं, सरकारें ही बनानी थीं, सो, उन्होंने बना लीं, 'इसके बावजूद मुख्यमंत्री इस मामले में पांडेय जैसे सेकुलरिस्टों को भाजपा विरोधी साजिशों के इल्जाम से बरी नहीं कर रहे. कह रहे हैं कि अब तो मंदिर मुद्दे पर ऐसे लोग भी भाजपा से तलब कर रहे हैं, जो हमेशा राममंदिर निर्माण की राह में रोड़े ही डालते रहे.उन्होंने अपने संतों को ऐसे तत्वों से सावधान भी किया. लेकिन सूर्यकांत पांडेय पूछते हैं-'कैसी साजिश? वे जो वायदा करके आये हैं, उसे नहीं निभा रहे तो हम उनको कठघरे में खड़े करने का अपना लोकतांत्रिक अधिकार इस्तेमाल कर रहे हैं. लोगों को बता रहे हैं कि वह वादा नहीं सब्जबाग था और आगे उससे होशियार रहने की जरूरत है.
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री योगी आदित्यनाथ ने सोमवार, 25 जून, 2018 को अयोध्या में श्री राम जन्मभूमि ट्रस्ट के अध्यक्ष श्री गोपाल दास के 80 वें जन्मदिन का जश्न मनाने के लिए एक समारोह में शामिल हुए इसलिए और भी कि विपक्ष में रहने पर वे कहते हैं कि सरकार बन जाने पर मंदिर बनायेंगे लेकिन सरकार बन जाती है तो कहने लगते हैं कि श्री राममंदिर राजनीति या चुनाव का नहीं, धार्मिक आस्था का मुद्दा है. ऐसा है तो वे श्री राममंदिर की राजनीति क्यों करते हैं? उसे घोषणा पत्र में शामिल करके चुनाव क्यों लड़ते हैं.यों, एक तथ्य यह भी है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ 1986 में ही श्री राममंदिर निर्माण की निरर्थकता प्रतिपादित कर चुका है.1986 में अयोध्या-(फैजाबाद ) जनता बाबरी मस्जिद श्री राम जन्मभूमि विवाद के खात्मे का एक सर्वसम्मत व सर्वस्वीकार्य समाधान ढूढ़ निकाला और 'नासमझी' में विहिप नेता स्वर्गीय अशोक सिंघल ने भी उसका स्वागत कर दिया, तो उनके नेता विष्णुहरि डालमिया ने दिल्ली में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की एक बैठक में उन्हें यह कहकर बुरी तरह डांटा था कि श्री राम के मंदिर तो देश में बहुत हैं और हमें उसके निर्माण की चिंता छोड़कर उसके आंदोलन के जरिए जनता में जाग रही चेतना का लाभ उठाकर देश की सत्ता पर कब्जा करने में लगना चाहिए.अब वे देश और साथ ही प्रदेश की सत्ता पर काबिज हो गये हैं किसी भी तरह से श्री राम मंदिर बनाकर और क्या पायेंगे? चूंकि उनकी ओर से इस सवाल का जवाब नहीं मिल रहा इसलिए अयोध्या और उसके आसपास के जिलों में लोगों में आमधारणा है कि गोरखपुर, फूलपुर, कैराना और नूरपुर के उपचुनावों में भाजपा की करारी हार के बाद संघ बेहद चिंतित है
भाजपा श्री राम मंदिर मुद्दे की तरफ लौटाना चाहती है. लेकिन उसकी यह इच्छा पूरी होने की राह में दो बड़ी दिक्कतें हैं.पहली यह कि काठ की इस हांड़ी को बार-बार चढ़ाने के जोखिम भी कुछ कम नहीं हैं. दूसरी यह कि अब जैसे ही मंदिर की बात होती है, संघ परिवार के अंतर्विरोध भी बेपरदा होने लग जाते हैं