वाराणसी: विकास कार्यों के बूते मोदी सब पर भारी
वाराणसी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 2014 में पहली बार यहां से सांसद चुनने के साथ ही प्रधानमंत्री भी बने। भाजपा ने उन्हें फिर प्रत्याशी बनाया है। पांच साल में उन्होंने विकास के इतने कार्य कराए हैं कि विपक्ष के पास तार्किक ढंग से बोलने तक का मौका नहीं है। पिछले चुनाव में जमानत जब्त करा चुकी कांग्रेस ने अपने पुराने प्रत्याशी अजय राय को फिर मैदान में उतारा है। सीट पर भाजपा के बाद कांग्रेस का ही जनाधार है। सपा-बसपा गठबंधन ने अप्रत्याशित घटनाक्रम के बाद अंतत: जिन शालिनी यादव को उम्मीदवार बनाया है, मूलत: कांग्रेसी है। विपक्ष की नजर पिछली बार अरविंद केजरीवाल को मिले मतों और मुसलमानों पर है।
महराजगंज: गढ़ में भाजपा समेत सबका इम्तिहान
महराजगंज। इस सीट को भाजपा का गढ़ माना जाता है। वर्ष 1991 में पार्टी को पहली बार जीत मिली थी। तब से सिर्फ दो बार उसे हार का सामना करना पड़ा है। भाजपा उम्मीदवार पंकज चौधरी आठवीं बार मैदान में उतरे हैं। उन्हें मोदी लहर पर भरोसा है तो कांग्रेस उम्मीदवार सुप्रिया श्रीनेत 'न्याय'से उम्मीद लगाए हुए हैं। गठबंधन प्रत्याशी कुंवर अखिलेश सिंह दलित-यादव और मुस्लिम मतदाताओं के भरोसे मुकाबले में हैं।
घोसी : अतुल राय और राजभर आमने-सामने
घोसी। भाजपा ने मौजूदा सांसद हरिनारायण राजभर पर आखिरी दौर में दांव लगाया तो गठबंधन से बसपा ने अतुल राय को प्रत्याशी घोषित किया। 2014 में राजभर ने यहां पहली बार कमल खिलाया था, पर स्थिति पहले जैसे नहीं है। दूसरी ओर चुनाव प्रचार के चरम पर पहुंचने के दौरान दुष्कर्म के आरोपों के कारण राय की मुश्किल बढ़ी है। इन सबके बीच कांग्रेस के बालकृष्ण चौहान लड़ाई त्रिकोणीय बना रहे हैं।
राबर्ट्सगंज: गठबंधन प्रत्याशियों की परीक्षा
सोनभद्र। सपा-बसपा-रालोद गठबंधन प्रत्याशी भाईलाल कोल और अपना दल (एस), भाजपा व निषाद पार्टी के प्रत्याशी पूर्व सांसद पकौड़ी लाल कोल के बीच सीधी टक्कर है। पकौड़ी लाल सपा से सांसद रह चुके हैं। उनके लिए पीएम मोदी भी आ चुके हैं। कांग्रेस के भगवती प्रसाद चौधरी और प्रसपा (लोहिया) की प्रत्याशी पूर्व विधायक रूबी प्रसाद कहीं-कहीं दोनों उम्मीदवारों के समीकरण गड़बड़ा रही हैं।
बांसगांव: भाजपा-बसपा में दिलचस्प लड़ाई
गोरखपुर। बांसगांव (सुरक्षित) सीट पर कांग्रेस के कुश सौरभ का नामांकन खारिज होने के बाद अब मुकाबला भाजपा और गठबंधन के बीच है। भाजपा ने सांसद कमलेश पासवान पर तीसरी बार भरोसा जताया है। भाजपा को जहां मोदी-योगी के काम, नाम का सहारा है तो बसपा गठबंधन के सहारे चुनावी वैतरणी पार करने की कोशिश में लगी है। उसके प्रत्याशी सदल प्रसाद की सभी वर्गों में अच्छी पैठ है। दलितों को बांधे रखना गठबंधन के लिए भी चुनौती है। वहीं, पासवान से सवर्णों का एक वर्ग नाराज है।
सलेमपुर: जाति की बेड़ियां तोड़ने को आतुर
देवरिया। सलेमपुर का मतदाता इस बार जाति की बेड़ियों को तोड़कर नई इबारत लिखने को आतुर है। चुनाव में ज्यादातर जगह अगर राष्ट्रवाद की लहर है तो कहीं परिवर्तन की बयार भी है। भाजपा और सपा-बसपा गठबंधन ने कुशवाहा बिरादरी से ही उम्मीदवार उतारे हैं। भाजपा प्रत्याशी रवींद्र कुशवाहा मौजूदा सांसद भी हैं। लेकिन उनको विरोध का सामना भी करना पड़ा है। गठबंधन उम्मीदवार आरएस कुशवाहा बसपा के प्रदेश अध्यक्ष हैं।
देवरिया: लड़ाई किसी के लिए भी आसान नहीं
देवरिया। देवरिया लोकसभा क्षेत्र में लड़ाई त्रिकोणीय है। भाजपा प्रत्याशी रमापति राम त्रिपाठी मोदी के नाम और काम के सहारे आश्वस्त तो हैं, लेकिन बाहरी होने के कारण भितरघात की आशंका भी है। कांग्रेस के नियाज अहमद खां और बसपा से विनोद कुमार जायसवाल भी उलटफेर करने की क्षमता रखते हैं। विनोद भी बाहरी उम्मीदवार हैं। मुस्लिम वोट अभी असमंजस की स्थिति में है, लेकिन यह तय है कि जो भाजपा को हराता दिखेगा, उधर ही जाएगा।
गोरखपुर: भाजपा और गठबंधन में सीधी लड़ाई
गोरखपुर। इस सीट से मुख्यमंत्री एवं गोरक्ष पीठाधीश्वर योगी आदित्यनाथ की प्रतिष्ठा जुड़ी है। लोकसभा उपचुनाव में भाजपा को 29 साल बाद हार का स्वाद चखाने वाली गोरक्षनगरी की हवा इस बार बदली-बदली सी है। योगी ने धुआंधार सभाएं और बैठकें की हैं। भोजपुरी फिल्मों के स्टार रवि किशन यहां से भाजपा के उम्मीदवार हैं। इस चुनाव में मोदी के साथ योगी फैक्टर भी काम कर रहा है। गोरखपुर के विकास की चर्चा भी मतदाताओं में है। इन सबके बावजूद भाजपा और गठबंधन प्रत्याशी के बीच कांटे का मुकाबला है।
बलिया: भाजपा और गठबंधन में ही जंग
बलिया। भाजपा किसान मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष और भदोही से सांसद वीरेंद्र सिंह मस्त पहली बार यहां से मैदान में हैं। सपा-बसपा गठबंधन के ब्राह्मण प्रत्याशी सनातन पांडेय से इनकी सीधी टक्कर है। दोनों ही उम्मीदवार जातीय समीकरण इस हद तक साध रहे हैं कि भितरघात के हालात बन गए हैं। भरत सिंह और नीरज शेखर को टिकट न देने के कारण दोनों तरफ नाराजगी भी कम नहीं है।
गाजीपुर : कांटे की लड़ाई में फंसे सिन्हा
गाजीपुर । केंद्र सरकार में राज्यमंत्री मनोज सिन्हा फिर से उम्मीदवार हैं। सिन्हा को प्रधानमंत्री का विश्वस्त सहयोगी माना जाता है। यही कारण है चुनाव प्रचार करने से पहले भी पीएम दो बार गाजीपुर आए। जातीय समीकरण साधने के लिए मुख्यमंत्री से लेकर केंद्रीय मंत्रियों ने कोई कसर नहीं छोड़ी है। सिन्हा ने जिले के साथ-साथ पूर्वांचल में विकास कार्य भी कराए हैं। सपा-बसपा गठबंधन प्रत्याशी अफजाल अंसारी से उनका कड़ा मुकाबला है। मुख्तार अंसारी के भाई अफजाल 2004 में सपा से सांसद रह चुके हैं। उन्हें जातिगत और दलगत वोटों पर भरोसा है। कांग्रेस के अजीत प्रताप कुशवाहा को अपनी बिरादरी से पूर्ण समर्थन की आस है।
मिर्जापुर: अनुप्रिया को निषाद और त्रिपाठी की चुनौती
मिर्जापुर । केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल 2014 में अपना दल के टिकट पर एकतरफा मुकाबले में चुनी गई थीं। पांच साल के दौरान अनुप्रिया ने विकास कार्य ही खूब नहीं कराए, वह ओबीसी नेताओं में बड़ा चेहरा बन गई हैं। क्षेत्र में उनकी बिरादरी भी निर्णायक स्थिति में है। पीएम मोदी से लेकर गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने गठबंधन धर्म निभाते हुए उनके लिए सभाएं की हैं। सपा ने पूर्व प्रत्याशी के स्थान पर रामचरित्र निषाद को उतार कर लड़ाई को रोचक बना दिया है। उन्हें नाराज पटेल, ब्राह्मणों और बिंदों पर भरोसा है। कांग्रेस के पूर्व विधायक ललितेशपति त्रिपाठी को ब्राह्मणों और मुसलमानों के अलावा मड़िहान क्षेत्र के लोगों से खास उम्मीद है।
चंदौली : डॉ. पांडेय और डॉ. चौहान में फैसला
चंदौली । भाजपा प्रदेश अध्यक्ष डॉ. महेंद्र नाथ पांडेय 2014 के बाद एक बार फिर मैदान में हैं। सपा-बसपा गठबंधन प्रत्याशी डॉ. संजय चौहान के बीच सीधा मुकाबला है। डॉ. पांडेय को मोदी मैजिक के साथ-साथ वाराणसी जिले की दो विधानसभा क्षेत्र होने, पांच साल के दौरान केंद्रीय मंत्री के तौर पर क्षेत्र में कराए गए विकास कार्यों और कार्यकर्ताओं की मेहनत का सहारा हैं। इसके उलट डॉ. चौहान जातिगत समीकरण साधते दिख रहे हैं। यही उनकी जीत के दावे का आधार भी है। कांग्रेस समर्थित जन अधिकार पार्टी की शिवकन्या कुशवाहा अकेली महिला उम्मीदवार होने के कारण आमने-सामने का मुकाबला त्रिकोणीय बनाने के लिए प्रयासरत हैं।
कुशीनगर: जाति का चक्रव्यूह
कुशीनगर। इस संसदीय सीट का चुनावी माहौल जातीय समीकरण के चक्रव्यूह में उलझ गया है। सड़क, बिजली और बाढ़ इस इलाके की बड़ी समस्याएं हैं, पर मुद्दे इस चुनाव में गायब हैं। भाजपा को मोदी-योगी के भरोसे इस सीट पर दोबारा कब्जा करने की आस है तो कांग्रेस अपनी जीत का आधार जातिगत समीकरण मान रही है। भाजपा ने सांसद राजेश पांडेय का टिकट काट दिया और उनकी जगह दूसरा ब्राह्मण चेहरा पूर्व विधायक विजय कुमार दुबे पर भरोसा जताया है। कांग्रेस ने पूर्व केंद्रीय मंत्री आरपीएन सिंह पर ही दांव लगाया है। वे गांधी परिवार के करीबियों में से हैं। जबकि सपा-बसपा गठबंधन से नथुनी प्रसाद कुशवाहा चुनाव मैदान में हैं। जातिगत आधार होने के चलते गठबंधन प्रत्याशी भी किसी से कम नहीं है।