लखनऊ लोकसभा सीट पर दिलचस्प होगी जंग
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लखनऊ। लखनऊ लोकसभा सीट को भाजपा का गढ़ कहा जाता है। 1991 में जब से यहां पर दिवंगत प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी जीते, उसके बाद लगातार बीजेपी ही जीतती आई है। इस सीट पर पांचवें चरण में 6 मई 2019 सोमवार को वोट डाले जाएंगे। राजनाथ सिंह एक मिलनसार नेता है और राजधानी लखनऊ के विकास में अहम योगदान है जिसे नकारा नहीं जा सकता है, इसलिए दावें के साथ कहा जा सकता है कि लखनऊ से श्री सिंह का जीतना लगभग तय माना जा रहा है।
यहां से इस बार भी बीजेपी ने केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह को उतारा है। कांग्रेस ने संत प्रमोद कृष्णम को यहां से टिकट दिया है, जबकि समाजवादी पार्टी ने यहां से बीजेपी छोड़कर कांग्रेस का दामन थामने वाले बॉलीवुड अभिनेता शत्रुघ्न सिन्हा की पत्नी पूनम सिन्हा को टिकट दिया है।
2014 में हुए 16वीं लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने जहां राजनाथ सिंह को इस सीट से उतारा था, वहीं कांग्रेस ने रीता बहुगुणा जोशी को टिकट दिया था। इस चुनाव में राजनाथ सिंह को 54.2 प्रतिशत वोट मिले थे और वह यहां से विजेता रहे थे। रीता जोशी 27.9 फीसदी वोट पाकर दूसरे स्थान पर रही थीं। बीएसपी के खाते में इस सीट पर 6.2 फीसदी वोट आए थो, जबकि अन्य उम्मीदवारों को 11.7 फीसदी वोट से संतोष करना पड़ा था।
यह लखनऊ है, जहां की नवाबी लॉर्ड डलहौजी ने 1850 में ही खत्म कर दी थी। लेकिन यह दुनिया में मुहावरा बन कर अब भी मौजूद है। मशहूर उर्दू लेखक अब्दुल हलीम शरर ने अपनी किताब 'गुजिश्ता लखनऊ' में इस शहर के जाने कितने किस्से लिखे हैं। मसलन, जान-ए-आलम (नवाब वाजिद अली शाह) की दाल सोने की अशर्फी से छौंकी जाती थी। नवाबी तो नहीं रही, मगर लखनऊ का जलवा आज भी बरकरार है। लोकसभा चुनाव से ठीक पहले लखनऊ का मिजाज क्या है, मुद्दे क्या हैं और यहां के लोग क्या सोच रहे हैं, इसका जायजा लिया।
नजाकत और नफासत के शहर के रूप में मशहूर लखनऊ अपनी गंगा-जमुनी तहजीब के लिए भी पहचाना जाता है। यहां नवाब परिवार ने बड़े मंगल की शुरुआत की थी, तो यहां के तमाम हिंदू रोजे रखते थे। बीच शहर से गुजरती गोमती नदी ने न जाने कितने इतिहास बनते-बिगड़ते देखे हैं, लेकिन सुबह-ए-बनारस की तरह शाम-ए-अवध की रौनक भी कभी मंद नहीं पड़ी। यही लखनऊ इन दिनों चुनावी रंग में रंगा हुआ है। लखनऊ में बैठकर सपा और बसपा ने कई-कई बार उत्तर प्रदेश का राजकाज चलाया, लेकिन इस शहर ने आज तक इन पार्टियों को अपनी नुमाइंदगी का मौका नहीं दिया। सपा और बसपा लखनऊ लोकसभा सीट पर आज तक अपना खाता नहीं खोल पाईं। आजादी के बाद यहां से कांग्रेस जीतती रही तो 1991 से इस सीट पर भाजपा ने कब्जा कर लिया। भाजपा नेता अटल बिहारी वाजपेयी लखनऊ को कुछ ऐसे भाये कि 1991, 1996, 1998, 1999 और 2004 के लोकसभा चुनावों में यहां से वही चुने गए। जबकि उन्हीं को लखनऊ ने 1957 और 1962 में हरा कर लौटा दिया था। अटल के खिलाफ यहां राजबब्बर, नफीसा अली और मुजफ्फर अली जैसे सितारे उतारे गए, पर सब उनसे हार गए। साल 2009 में यहां से भाजपा के लालजी टंडन जीते और 2014 में राजनाथ सिंह ने 16वीं लोकसभा में यहां का प्रतिनिधित्व किया। इस बार फिर राजनाथ मैदान में हैं। उनसे मुकाबले के लिए कांग्रेस ने 'संत' प्रमोद कृष्णम् और सपा ने पूर्व अभिनेत्री पूनम सिन्हा को उतारा है। पूनम भाजपा छोड़कर कांग्रेस का दामन थाम चुके अभिनेता शत्रुघ्न सिन्हा की पत्नी हैं।
चैक-चैराहे पर ट्रैफिक 'जल्दी किसको है' की तर्ज पर रेंग रहा है। विक्टोरिया स्ट्रीट से दायें मुड़ने पर संकरी सड़क और बीच में लगा अस्थायी डिवाइडर बताता है कि जाम से निपटने के लिए कुछ इंतजाम तो बीते बरसों में हुए हैं।यहीं पर है लखनऊ का पुराना बर्तन बाजार। जीएसटी और नोटबंदी से हम परेशान जरूर हुए। हमारा समय अब कागजी कामों में भी जाता है। इसके बावजूद हमारा वोट देश की बेहतरी के लिए होगा, छोटी-मोटी दिक्कतों से क्या घबराना।