दरअसल 2002 में गठित सुभासपा का पहली बार 2017 के विधानसभा चुनाव में खाता खुला था। पार्टी के अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर खुद पहली बार विधायक चुने गए थे। 2017 में भाजपा के साथ मिलकर विधानसभा की 8 सीटों पर चुनाव लड़ने वाली सुभासपा के चार विधायक चुने गए थे।
इनमें ओमप्रकाश खुद गाजीपुर की जहूराबाद सीट से चुनाव जीते थे। त्रिवेणी राम भी इसी जिले की जखनिया और कैलाशनाथ सोनकर वाराणसी की अजगरा व रामानंद बौद्ध कुशीनगर की रामकोला सीट से विधायक चुने गए थे। इनमें राजभर को छोड़कर तीनों विधायक अनुसूचित जाति के हैं।
पार्टी के विश्वस्त सूत्रों की मानें तो सुभासपा के तीनों विधायक राजभर की उपेक्षा के चलते पहले से ही असंतुष्ट हैं। इसका अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि रामानंद बौद्ध को छोड़ शेष दो विधायकों ने लोकसभा चुनाव के दौरान राजभर के कार्यक्रमों से भी दूरी बनाए रखी। कैलाश नाथ सोनकर और त्रिवेणी राम पूरे चुनाव में कहीं नहीं दिखे। रामानंद ने भी अपनी भूमिका कुशीनगर तक ही सीमित रखी।
राजभर को बड़ा झटका देने की तैयारी में भाजपा
सूत्रों की मानें तो राजभर से नाराजगी का फायदा उठाने के लिए भाजपा के रणनीतिकारों ने तीनों असंतुष्ट सुभासपा विधायकों को अपने पाले में लाने का प्रयास तेज कर दिया है। तीनों विधायकों को अपने पाले में लाकर राजभर को तगड़ा झटका देने की भाजपा की तैयारी है।
सूत्रों का तो यहां तक कहना है कि तीनों विधायक सुभासपा से अलग होकर अपना नया दल बनाकर भी भाजपा के साथ आ सकते हैं। इसके बदले उन्हें सरकार में महत्वपूर्ण दायित्व दिया जा सकता है।
राज्यसभा चुनाव के बाद राजभर से दो विधायकों की बातचीत
सुभासपा की कोर कमेटी से जुड़े एक सूत्र का कहना है कि पिछले साल राज्यसभा के चुनाव में क्रॉस वोटिंग के आरोपों से घिरने के बाद से ही ओमप्रकाश राजभर की अजगरा व जखनिया विधायक से बातचीत बंद है।
तभी से दोनों विधायक न तो पार्टी की किसी बैठक में शामिल हुए और न ही उन्हें बुलाया गया। दोनों विधायक तभी से अपने लिए नए सियासी ठिकाने की तलाश में जुटे हैं। एक अन्य विधायक तटस्थ भूमिका में हैं, लेकिन दोनों विधायकों से उनकी खूब पटती है। तीनों विधायकों की भाजपा नेताओं से अच्छी केमिस्ट्री है।