इस बार अक्षय तृतीया पर बन रहा है महासंयोग, इस शुभ मुहूर्त में खरीदें सोना साथ ही जानें पूजा विधि May 7, 2019 - मानवी मीडिया

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Tuesday, May 7, 2019

इस बार अक्षय तृतीया पर बन रहा है महासंयोग, इस शुभ मुहूर्त में खरीदें सोना साथ ही जानें पूजा विधि May 7, 2019



 


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-अक्षय तृतीया पर किया जाएगा मां मणिकर्णी का श्रृंगार, चक्र पुष्करिणी कुंड सिद्ध करेंगी माई
वाराणसी 7 मई। वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि 7 मई को पड़ रही है। इस तिथि को अक्षय तृतीया और आखा तीज मनाया जाता है। इस तिथि का हिंदू धर्म में बहुत अधिक महत्व है। जो कि सालभर में पड़ रहे है अबूझ मुहूर्तों में से एक मानी जाती है। जानें अक्षय तृतीया का शुभ मुहूर्त, सोना खरीदने का शुभ मुहूर्त सहित पूजा विधि के बारें में।
अक्षय तृतीया पूजा और सोना खरीदने का शुभ मुहूर्त


तिथि: 7 मई 2019, मंगलवार के दिन अक्षय तृतीया मनाई जाएगी.
पूजा का शुभ मुहूर्त: सुबह 5.40 बजे से दोपहर 12.17 बजे तक.
सोना खरीदने का मुहूर्त: सुबह 6.26 बजे से लेकर रात 11.47 बजे तक रहेगा
इस दिन लक्ष्मी नारायण की पूजा सफेद कमल अथवा सफेद गुलाब या पीले गुलाब से करना चाहिये।
''सर्वत्र शुक्ल पुष्पाणि प्रशस्तानि सदार्चने।
दानकाले च सर्वत्र मंत्र मेत मुदीरयेत्॥''
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महाश्मशान स्थित अनादि तीर्थ चक्र पुष्करिणी मणिकर्णिका कुंड का अपना महात्म्य है। लेकिन जानकर हैरानी होगी कि इसका जल जो त्रिविध पाप-ताप को स्नान मात्र से दूर करता है, वह मणिकर्णी माई के चरण पखार कर यह सब अर्जित कर पाता है। उस जल को हर साल सिद्ध करने खुद मणिकर्णी माई यहां स्नान करने आती हैं। हर वर्ष की तरह इस बार भी अक्षय तृतीया पर मंगलवार को मणिकर्णी माई की सवारी ब्रह्मनाल स्थित नौकुल सरदार व तीर्थ पुरोहित जयेंद्रनाथ दुबे बब्बू महाराज के आवास से निकाली जाएगी।
रात में माई की अष्टधातु वाली ढाई फीट ऊंची प्रतिमा तीर्थ कुंड स्थित 10 फीट ऊंचे पीतल के आसन पर विराजमान कराई जाएंगी। यहां देवी की फूलों व नए वस्त्र-आभूषण से झांकी सजाई गई। पानी निकाल कर पूरी तरह साफ किए गए कुंड में प्रतिमा स्थापना के बाद विधि-विधान से पूजन-अनुष्ठान और रात्रि जागरण किया जाएगा। अगले दिन बुधवार को दोपहर 12 बजे तक पानी भरते-भरते मातारानी के चरण स्पर्श कर जाएगा। देवी की प्रतिमा को कुंड में स्नान कर कर फिर सवारी निकाली जाएगी और देवी वापस ब्रह्मनाल प्रस्थान कर जाएंगी। इसके साथ ही कुंड में डुबकी लगाने की होड़ नजर आएगी। मान्यता है कि मणिकर्णी माई की अष्टधातु की प्रतिमा प्राचीन समय में इसी कुंड से निकली थी। यह प्रतिमा वर्षभर ब्रह्मनाल स्थित मंदिर में विराजमान रहती है। सिर्फ अक्षय तृतीया को सवारी निकालकर पूजन-दर्शन के लिए कुंड में स्थापित किया जाता है। माना जाता है कि मणिकर्णी माई के स्नान के बाद तीर्थ कुंड का जल अगले एक वर्ष के लिए पुन: सिद्ध हो जाता है और इसी जल में स्नान करने से श्रद्धालुओं के पाप-कष्ट दूर होते हैं। 
मान्यता है कि भगवान शंकर ने काशी बसाने के बाद भगवान विष्णु को सृष्टि पालन के लिए कहा। यहां हरि का चक्र गिरने से कुंड का आकार बना जिसे चक्रपुष्करिणी कहा गया। उन्होंने यहां 11 वर्षों तक तपस्या की और उनके पसीने से कुंड भर गया। भगवान शिव, देवी पार्वती संग यहां पहुंचे तो खुशी से झूम उठे। इससे उनकी कर्णिका (कान के कुंडल) की मणि कुंड में गिर गई। इसके बाद से ही इसे चक्रपुष्करिणी मणिकर्णिका कुंड के नाम से जाना गया।


स्नान-दान के साथ स्थिर लक्ष्मी का विधान : सनातन धर्म में वैशाख शुक्ल तृतीया का मान अक्षय तृतीया के रूप में है। इस दिन अक्षय पुण्य फल कामना से स्नान-दान, नियम-संयम-व्रत का विधान तो सनातन है। अक्षय तृतीया इस बार सात मई को पड़ रही है और मान्यता है कि इस दिन कोई शुभ कार्य, दान के साथ स्वर्णादि खरीदने पर वह भी अक्षय हो जाएगा। बदलते दौर में पुण्य कामना के साथ ही श्रीसमृद्धि की चाह ने इसमें स्वर्णादि खरीदने का प्रचलन दिया। इसे बाजार ने हाथों-हाथ लिया और इस बार भी दुकान-शोरूम खरीदार की अगवानी में तैयार हैं। ख्यात ज्योतिषाचार्य पं. ऋषि द्विवेदी के अनुसार देखा जाए तो इस आर्थिक युग में भौतिक संसाधनों का अत्यधिक महत्व बढ़ा है। बिना धन के कुछ भी संभव नहीं है। हालांकि अक्षय तृतीया का अर्थ होता है कि किसी का क्षय न हो। इस कारण यह तिथि अष्ट लक्ष्मी को प्रसन्न करने का भी दिन है। इसमें वैभव लक्ष्मी से अष्ट लक्ष्मी अर्थात धन लक्ष्मी तक का विधान होता है। धन लक्ष्मी में भी इस दिन आम जनमानस पूरे देश में जगह जगह स्वर्ण हीरा, पन्ना, नीलम समेत सभी तरह के आभूषणों का क्रय कर माता लक्ष्मी की अक्षय कृपा प्राप्त करने के लिए ताकि उनकी अनुकंपा प्राप्त होती रहे, इस निमित्त लोग स्वर्णाभूषण खरीदते हैं। इस दिन विधिवत स्वार्णाभूषण खरीद कर माता लक्ष्मी का पंचोपचार या षोडशोपचार पूजन आदि कर आभूषणों को अपनी तिजोरी में रखना चाहिए। वैसे इस दिन लक्ष्मी की आराधना करने से माता लक्ष्मी का आशीर्वाद प्राप्त होता है। माता को प्रसन्न करने के लिए इस दिन श्रीसूक्तम, कनकधारा स्रोत, लक्ष्मी सहस्त्रनाम सहित महालक्ष्मी का मंत्र जप कर बेल की लकड़ी पर गाय के घी से होम करने से स्थिर लक्ष्मी प्राप्त होती हैं।





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