घटते प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण एवं उचित दोहन भविष्य की पीढ़ी के लिए आवश्यक: प्रो. ए के सिंह May 13, 2019 • - मानवी मीडिया

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Tuesday, May 14, 2019

घटते प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण एवं उचित दोहन भविष्य की पीढ़ी के लिए आवश्यक: प्रो. ए के सिंह May 13, 2019 •



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राष्ट्रीय वनस्पति अनुसंधान संस्थान में राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी दिवस मनाया गया
लखनऊl राष्ट्रीय वनस्पति अनुसंधान संस्थान द्वारा राष्ट्रीय विज्ञान दिवस मनाया गया। इस अवसर पर प्रो. ए के सिंह, पूर्वउपमहानिदेशक (प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन) भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली एवं पूर्व कुलपति, राजमाता विजयाराजे सिंधिया कृषि विश्वविद्यालय,
ग्वालियर, अतिथि के रूप में उपस्थित रहे। कार्यक्रम के प्रारम्भ में संस्थान के निदेशक प्रो. एस के बारिक ने उपस्थितजनों का स्वागत करते हुये मुख्य अतिथि का परिचय दिया। उन्होने इस अवसर पर संस्थान के इतिहास, लक्ष्यों एवं उपलब्धियों का उल्लेख किया एवं संस्थान द्वारा विकसित मधुमेह रोधी औषधि एवं सफ़ेद मक्खी प्रतिरोधी कपास का उल्लेख करते हुए कहा कि संस्थान मानव समाज एवं पर्यावरण के हित में निरंतर नयी प्रौद्योगिकियों के विकास के लिए प्रयासरत है | कार्यक्रम के मुख्य अतिथि प्रो. ए के सिंह ने 'प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन प्रौद्योगिकियों के माध्यम से सतत विकास लक्ष्यों का आंकलन' विषय पर आधारित अपने सम्बोधन में विभिन्न प्राकृतिक संसाधनों के विषय में अवगत कराते हुए कहा कि भारत में विश्व की लगभग 17.5% आबादी निवास करती है जिसमें से 50% आज भी जीवन यापन हेतु कृषि पर निर्भर है | ऐसे में यह एक चिंताजनक सत्य है कि ऐसे कृषि प्रधान देश को वर्ष 2006 में जल उपलब्धता के मामले में तनावग्रस्त घोषित किया जा चुका है | वहीं दूसरी ओर जलवायु तपन के चलते प्रति सेंटीग्रेट तापमान के बढ़ने से सिंचाई हेतु जल की मांग में 10% की वृद्धि हो जाती है | ऐसे में यह अनुमान है कि वर्ष 2025 तक पानी में 10% कमी की चुनौती के साथ भारत को अपनी बढ़ती जनसँख्या का पेट पालने के लिए 37% अधिक गेंहू एवं चावल उत्पन्न करना होगा | इतना ही नहीं वर्ष 2050 तक हमें अपनी भूमि उत्पादकता को चारगुना, जल उत्पादकता को तीन गुना, श्रम उत्पादकता को 6 गुना एवं ऊर्जा कुशलता को दुगना करने की चुनौती से भी निपटना है | इसके अतिरिक्त हमें अपनी बीमार मृदा का भी सुधार करना होगा जिसमें आवश्यक पोषक तत्वों की मात्रा में 50 से 80% तक की कमी देखी जा रही है | उन्होंने बताया कि देश की कुछ प्रमुख नदियों जैसे गंगा, नर्मदा एवं महानदी आदि के अतिरिक्त सभी नदियाँ पानी के अत्यधिक दोहन के चलते पानी की कमी से जूझ रही हैं जिसका असर कृषि, पर्यावरण एवं मानव जीवन पर पद रहा है | उन्होंने बताया कि भूगर्भीय जल के दोहन में हम विश्व में सबसे आगे चल रहे हैं एवं सबसे बड़ी जनसँख्या वाले देश चीन से दुगने से भी अधिक जल का दोहन कर रहे हैं | इस स्थिति को शीघ्रतिशीघ्र बदलने की आवश्यकता है | ऐसे में हमें चावल जैसी अधिक पानी मांगने वाली फसलों के लिए टपक सिंचाई, ऑर्गेनिक खेती, जैव उर्वरकों तथा अत्याधुनिक तकनीकों जैसे रोबोटिक खेती या वैज्ञानिक तकनीक आधारित सटीक खेती की दिशा में बढ़ना होगा | कार्यक्रम के अंत में संस्थान के मुख्य वैज्ञानिक डॉ. प्रमोद शिर्के द्वारा समस्त उपस्थितजनों आदि को धन्यवाद दिया गया।



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