यूपी में जिन तीन लोकसभा सीटों पर उपचुनाव से गठबंधन की नींव पड़ी थी, वहां सपा को करारी हार का सामना करना पड़ा है। साल भर में ही यहां गठबंधन का वोट बैंक बिखर गया। तीनों सीटों पर भाजपा के जनाधार में काफी वृद्धि हुई है।
इसके बाद सांसद हुकुम सिंह के निधन के चलते कैराना में उपचुनाव हुआ। इस सीट पर रालोद उम्मीदवार का सपा, बसपा व अन्य दलों ने समर्थन किया। गोरखपुर व फूलपुर में कांग्रेस ने प्रत्याशी उतारे थे, लेकिन कैराना में रालोद का समर्थन किया। रालोद ने इसे 44 हजार से ज्यादा वोटों के अंतर से जीता। तीनों सीटों पर उपचुनाव के नतीजों ने गठबंधन की नींव तैयार की थी। समर्थन के लिए आभार जताने अखिलेश यादव, मायावती से मिलने के लिए उनके आवास पर गए। यहीं से बात बढ़ी और सपा-बसपा-रालोद का गठबंधन बना।. गोरखपुर में 3 लाख, फूलपुर में 1.71 लाख से जीती भाजपा
इस चुनाव में गोरखपुर में भाजपा के रवि किशन ने सपा के रामनिषाद भुआल को तीन लाख से ज्यादा मतों से हरायाा। फूलपुर में भाजपा की केशरी देवी पटेल ने सपा के पंधारी यादव को 1.71 लाख मतों से हराया। कैराना में भाजपा के प्रदीप कुमार 90 हजार से ज्यादा मतों से जीते। तीनों क्षेत्रों में सपा के वोटों में काफी गिरावट आई। गोरखपुर में 2018 के उपचुनाव में 48.87 प्रतिशत वोट हासिल करने वाली सपा को अब केवल 35 प्रतिशत मत मिले हैं। इसी तरह फूलपुर उपचुनाव में सपा को 46.95 प्रतिशत मत मिले थे जो अब घटकर 38.1 फीसदी रह गए हैं। कैराना में 2018 में मिले 52.26 फीसदी वोट अब 42.24 प्रतिशत रह गए हैं।
मुलायम को थी आपत्ति
मुलायम सिंह ने लखनऊ में फरवरी में हुई बैठक में कार्यकर्ताओं से कहा था कि उनकी आपत्ति के बावजूद अखिलेश ने बसपा से गठबंधन किया है, आधी सीटें बांटी है। इसका आधार क्या है? इनमें से 25-26 सीटें जीतने योग्य थीं। इतनी मजबूत पार्टी बनाई थी, जो तीन बार सत्ता में आई, तीनों बार वे सीएम बने। लेकिन अब पार्टी के ही लोग पार्टी को नुकसान कर रहे हैं।
सीट बंटवारे में सपा के गढ़ लेकर जीती बसपा
चुनावी नतीजों में बसपा को सपा से दो गुनी सीट मिलते ही सवाल उठने लगे हैं कि क्या बसपा का वोट सपा प्रत्याशियों को ट्रांसफर नहीं हुआ? सवाल से पहले यह जानना जरूरी है कि गठबंधन में बसपा की बेहतर सफलता के पीछे कारण मायावती को पसंदीदा सीटें दिया जाना है। बसपा जिन 10 सीटों पर चुनाव जीती है, उनमें पिछले चुनाव में 6 सीटों पर सपा दूसरे नंबर पर रही थी।
बसपा जिन 38 सीटों पर चुनाव लड़ी उनमें कई सपा का मजबूत गढ़ रही हैं। इनमें से कई सीट बसपा ने बंटवारे में अपने हिस्से में ले लीं। नगीना, बिजनौर, अमरोहा, श्रावस्ती, गाजीपुर व लालगंज में सपा दूसरे नंबर पर रही थी। ये सीट सपा के लिए मुफीद मानी जाती रही हैं। इन पर इस बार बसपा चुनाव लड़ी और दलित-मुस्लिम समीकरण ऐसा बना कि उसकी आसानी से जीत हो गई। केवल तीन सीट ऐसी हैं जिन पर बसपा 2014 में रनर-अप रही थी। इनमें अंबेडकर नगर, जौनपुर और घोसी सीट शामिल हैं। जौनपुर भी यादव बहुल है जहां बसपा ने श्याम सिंह यादव को प्रत्याशी बनाया। सहारनपुर मेें कांग्रेस दूसरे और बसपा तीसरे नंबर पर रही थी।
नगीना, अमरोहा व बिजनौर में 30-40 फीसदी मुस्लिम वोटर
नगीना, अमरोहा व बिजनौर सीट पर मुस्लिम मतदाता 30 से 40% के बीच हैं, जबकि मुरादाबाद में 45%, संभल में 41 व रामपुर में लगभग 50% फीसदी मुस्लिम वोटर हैं। रामपुर को छोड़कर अन्य सीटों पर अनुसूचित जाति के वोटरों की तादाद भी अच्छी है। मायावती ने नगीना, अमरोहा व बिजनौर सीटें सपा से ले लीं और दलित-मुस्लिम समीकरण से जीत मिली। मुरादाबाद, संभल व रामपुर में इसी समीकरण से सपा विजयी रही। सपा को कई सीट ऐसी दी गईं जहां वह कभी जीती ही नहीं है। इनमें लखनऊ, वाराणसी, इलाहाबाद जैसी शहरी सीटें भी शामिल हैं।