झारखंड में अंतिम चरण में आज तीन लोकसभा सीटों पर मतदान है। साल 2014 में 'मोदी लहर' के बीच यहां कुल 14 सीटों में से भाजपा को 12 सीटें हासिल हुई थी। वहीं, विधानसभा चुनाव में भी राज्य में भाजपा ने किला फतह किया। इस बार भाजपा यहां की 13 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। केवल गिरीडीह सीट भाजपा की सहयोगी आॅल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन के हिस्से है। साल 2004 में कांग्रेस के गठबंधन में झारखंड मुक्ति मोर्चा और राजद के अलावे भाकपा भी शामिल थी और इस गठबंधन को 13 सीटें मिली थी। 2014 में ऐसी ही कामयाबी भाजपा की रही। 2004 में कांग्रेसनीत गठबंधन के पास खोने के लिए बहुत कुछ था, उसने खोया भी। इसी तरह वर्तमान स्थिति में भाजपा के पास खोने को बहुत कुछ है और कांग्रेस के पास पाने को। हालांकि दोनों ही के लिए राह इतनी आसान भी नहीं है।
झारखंड के मुखिया रघुवर दास के पास गुड गवर्नेंस और केंद्र की मोदी सरकार के विकास कार्यों के रूप में गिनाने को बहुत कुछ है, लेकिन आदिवासी बाहुल्य इस प्रदेश में कांग्रेस कुछ कानूनों को लेकर भाजपा को घेरने में कामयाब रही है। जैसे कि काश्तकारी कानून ने यहां आदिवासियों को अलग-थलग कर दिया है। जमीन अधिग्रहण में अब 70 प्रतिशत जमीन मालिकों की सहमति जरुरी नहीं रह गई है। आदिवासियों के लिए जल-जंगल-जमीन हमेशा से अहम मुद्दे रहे हैं और ऐसे में कांग्रेस इसी मुद्दे पर भाजपा सरकार के प्रति भड़का कर आदिवासी वोट बैंक को अपने पक्ष में करती दिखी है। कांग्रेस पर हमला करने के लिए भाजपा के पास झारखंड राज्य विशेष कोई खास मुद्दा नहीं रहा, जबकि कांग्रेस के पास कई मुद्दे थे। दूसरा अहम फैक्टर यहां यह है कि भाजपा का अहम चुनावी मुद्दा रही ध्रुवीकरण की राजनीति यहां नहीं चलने वाली। आदिवासियों का यहां एक धर्म विशेष के प्रति रुझान रहा है। अगस्त 2017 में धर्मांतरण विरोधी विधेयक से भी आदिवासियों के बीच नाराजगी रही।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने झारखंड में 23 अप्रैल को एक रोड शो से चुनावी अभियान की शुरुआत की थी। बड़ी संख्या में पीएम मोदी और भाजपा समर्थक इसमें शामिल हुए थे और इसके बाद पीएम मोदी की कई रैलियों में अपार भीड़ दिखी। भाजपा के लिए यह भीड़ वोट में कितना तब्दील हो पाती है, यह 23 मई को ही पता चल पाएगा।
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